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छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा पर्व है जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने वाली वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रियाओं से जुड़ा है। यह व्रत मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना के लिए किया जाता है, लेकिन इसके पीछे छुपी हैं प्राचीन वैज्ञानिक और चिकित्सीय बातें जो हमारे स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाती हैं। (Photo Source: Unsplash)
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व्रत और उपवास
छठ पूजा का पहला चरण उपवास और व्रत है। यह शरीर और मन को शुद्ध करने की प्रक्रिया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: उपवास शरीर में ऑटोफैगी प्रक्रिया को सक्रिय करता है। यह एक ऐसी क्रिया है जिसमें पुराने और क्षतिग्रस्त सेल्स को हटाकर नए सेल्स का निर्माण होता है। इसके साथ ही मानसिक शांति मिलती है और व्यक्ति ऊर्जा ग्रहण करने के लिए तैयार होता है। (Photo Source: Unsplash) -
जल में खड़े होना
व्रती नदी या जलाशय में खड़े रहते हैं। यह ऊर्जा की हानि रोकने और प्राण (जीवन ऊर्जा) के ऊपर की ओर प्रवाह में सहायक माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जल में खड़े होने से शरीर का जैव-विद्युत क्षेत्र स्थिर रहता है। यह प्रक्रिया नसों पर तनाव कम करती है और मानसिक एकाग्रता बढ़ाती है। आधुनिक तनाव-निवारण तकनीकों में भी इसी तरह के ग्राउंडिंग अभ्यास शामिल हैं। (Photo Source: Unsplash) -
सूर्य की किरणों का अवशोषण
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य देना और उसकी किरणों का सीधे नेत्रमार्ग से अवशोषण करना छठ पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: रेटीना सूर्य की किरणों के लिए प्राकृतिक मार्ग है। सुबह और शाम के समय में यह सुरक्षित होता है। इससे मस्तिष्क के पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथैलेमस ग्रंथियां सक्रिय होती हैं, जो नींद, मूड और हार्मोन संतुलन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती हैं। (Photo Source: Unsplash) -
त्रिवेणी तंत्र (Tri-Glandular Complex) का सक्रियण
सूर्य की रोशनी से पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथैलेमस ग्रंथियां संतुलित होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ये ग्रंथियां नींद, हार्मोन स्राव और मानसिक संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके सामंजस्य से मानसिक शांति और चेतना में वृद्धि होती है, जो व्रतियों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। (Photo Source: Unsplash)
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कुंडलिनी जागरण और ऊर्जा का प्रवाह
छठ पूजा के अंतिम चरण में कुंडलिनी शक्ति के जागरण की मान्यता है। यह ऊर्जा रीढ़ की हड्डी से ऊपर की ओर उठती है, जिससे चेतना का स्तर बढ़ता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मेडिटेशन और ऊर्जा अभ्यास से मस्तिष्क की विद्युत तरंगें सक्रिय होती हैं। इससे मानसिक स्पष्टता और शारीरिक ऊर्जा बढ़ती है। (Photo Source: Unsplash) -
ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संचार
अंतिम चरण में व्रती स्वयं ब्रह्मांडीय ऊर्जा का माध्यम बनते हैं और इसे पुनः विश्व में प्रवाहित करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: न्यूरोसाइंस इसे ‘फ्लो स्टेट’ कहती है। गहरी ध्यानावस्था में मस्तिष्क तरंगों का संतुलन एकता का अनुभव कराता है, जिससे शरीर, मन और आत्मा का सामंजस्य बनता है। (Photo Source: Unsplash) -
सूर्यास्त और सूर्योदय का महत्व
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें कम होती हैं। इससे सुरक्षित रूप से सूर्य की ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है। (Photo Source: Unsplash) -
शारीरिक और मानसिक लाभ
शारीरिक स्वास्थ्य: उपवास और जल में खड़े होने से शरीर शुद्ध होता है, सूर्य के संपर्क से विटामिन डी मिलता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
मानसिक शांति: ध्यान और सूर्य उपासना से मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक संतुलन और ध्यान में वृद्धि होती है।
आध्यात्मिक लाभ: आत्म-साक्षात्कार और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ाव का अनुभव होता है, जिससे व्रती को गहन आध्यात्मिक संतोष मिलता है। (Photo Source: Unsplash) -
वैज्ञानिक और औषधीय महत्व
सूर्य को जल अर्पित करने का विज्ञान भी रोचक है। सुबह सूर्य की किरणों से शरीर में रंग संतुलन स्थापित होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। छठ पूजा के प्रसाद में कैल्शियम और ग्लूकोज प्रचुर मात्रा में होता है, जो उपवास के बाद शरीर को ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है। अदरक और गुड़ से व्रत का समापन स्वास्थ्यवर्धक तरीके से होता है। (Photo Source: Unsplash)
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