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पठानकोट में एयर फोर्स बेस कैंप पर हुए आतंकी हमले में भारत मां के कई लाल अभी तक वतन पर अपनी जान न्योछावर कर चुके हैं। इनके नाम हैं- कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत चुके फतेह बहादुर सिंह, गरुण कमांडो गुरसेवक सिंह, हवलदार कुलवंत सिंह, जवान जगदीश सिंह, निरंजन कुमार हैं। इन सभी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बहादुरी के साथ आतंकियों का सामना किया। आइए जानते हैं इन्हीं सपूतों की कहानी…
जगदीश चांद: चंबा (हिमाचल प्रदेश) के रहने वाले 58 साल के जगदीश चांद ने शनिवार को पठानकोट एयरबेस पर हमला करने वाले आतंकियों का सामना सबसे पहले किया था। आतंकी की गोली का शिकार होने से पहले उन्होंने एक आतंकी को ढेर कर दिया था। चांद रिटायर्ड फौजी थे। रिटायरमेंट के बाद उन्हें डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्प्स (डीएससी) में बहाल किया गया था। दिसंबर में लेह से उनका तबादला किया गया था और उन्होंने पहली जनवरी को ही पठानकोट में ड्यूटी जॉइन की थी। चांद फौजी परिवार से थे। उनके पिता और कई करीबी रिश्तेदार भारतीय सेना में रह चुके हैं और अभी भी काम कर रहे हैं। उनके परिवार में पत्नी स्नेहलता और तीन बच्चे हैं। उनकी बेटियों के नाम किरण और तमन्ना हैं। बेटा रजत है। आगे पढ़ें, हवलदार कुलवंत सिंह के बारे में हवलदार कुलवंत सिंह: 49 साल के कुलवंत सिंह 20 साल भारतीय सेना में रहे और 11 साल से डिफेंस सिक्योरिटी कॉर्प्स (डीएससी) में थे। 30 साल में पहली बार उनके गृह राज्य पंजाब में उनकी पोस्टिंग हुई थी। वह गुरदासपुर जिले के चाक शरीफ गांव के रहने वाले थे। पत्नी हरभजन कौर बताती हैं कि पठानकोट में तैनाती के बाद उन्हें परिवार के करीब रहने की काफी खुशी थी। 24 से 28 दिसंबर तक घर पर छुट्टी बिता कर वह पठानकोट लौटे थे। हरभजन ने बताया कि इस बार छुट्टी के दौरान उन्होंने अपनी पोस्टर साइज फोटो बनवाई और कहा था कि इसे साथ रखूं। अब उसी तस्वीर पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। कुलवंत ने 1985 में 19 साल की उम्र में सेना जॉइन की थी। 2004 में रिटायरमेंट के बाद वह डीएससी में चले गए थे। उनके दो बेटे हैं। एक बारहवीं में पढ़ता है और दूसरा छठी में। वह गांव में पक्का घर बनवा रहे थे। उनकी बहन जसविंदर कौर ने बताया कि घर अभी अधूरा ही है। चार भाई-बहनों में से कुलवंत इकलौते थे जिन्होंने सेना की नौकरी की। पर वह अपने बड़े बेटे को सेना में अफसर बनाना चाहते थे। आगे पढ़ें, निरंजन कुमार के बारे में -
एनएसजी कमांडो लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार (FILE PHOTO)
अंबाला के गरनाला में सोमवार को गुरसेवक सिंह को अंतिम विदाई दी गई। उनकी शादी 45 दिन पहले ही हुई थी। हरियाणा सरकार ने उनके परिवार को 20 लाख रुपए की सहायता देने का एलान किया है। आगे पढ़ें, हवालदार फतेह सिंह के बारे में फतेह सिंह शनिवार को पठानकोट में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उन्होंने 1995 में पहली राष्ट्रमंडल निशानेबाजी चैंपियनशिप में भारत के लिए एक स्वर्ण और एक रजत जीता था। फतेह सिंह 51 बरस के थे और डिफेंस सुरक्षा कोर का हिस्सा थे। वे फिलहाल डोगरा रेजिमेंट के साथ थे। भारत में निशानेबाजी की संचालन संस्था भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआइ) ने पूर्व भारतीय अंतरराष्ट्रीय निशोनबाज फतेह सिंह के निधन पर शोक जताया है जिन्होंने मात्रभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
