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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले का समापन हो चुका है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के मौके पर समाप्त हुए महाकुंभ 2025 में करीब 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र डुबकी लगाई। (Photo: Indian Express)
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प्रयागराज के बाद अब अलगा कुंभ 2027 में महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित किया जाएगा जो त्र्यंबकेश्वर में लगेगा। (Photo: Indian Express)
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नासिक में कब लगता है कुंभ नासिक में ये कुंभ गोदावरी नदी के तट पर होगा। जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब नासिक में कुंभ मेले का आयोजन होता है। (Photo: Indian Express)
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नासिक कुंभ को सिंहस्थ कुंभ और त्र्यंबकेश्वर कुंभ भी कहा जाता है। (Photo: Indian Express)
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मान्यताओं के अनुसार, नासिक में कुंभ के दौरान गोदावरी नदी में स्नान किया जाता है जिसे आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। (Photo: Indian Express)
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भगवान राम और नासिक का संबंध मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान पंचवटी (नासिक) में कुछ समय के लिए रहे थे। (Photo: Indian Express) महाकुंभ के बाद नागा, अघोरी और साधु संत कहां जमाएंगे डेरा? यहां खेलेंगे ‘मसाने की होली’
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कैसे पड़ा नासिक नाम? ये भी मान्यता है कि यहीं पर लक्ष्मण ने रावण की बहन सुपर्णखा का नाक कटा था, जिससे इस स्थान का नाम ‘नासिक’ पड़ा। भगवान राम ने गोदावरी नदी में स्नान किया था, इसलिए इसे पवित्र माना जाता है। (Photo: Indian Express)
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साधु-संतों की मान्यता और शाही स्नान कुंभ मेले के दौरान विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत एकत्रित होते हैं और शाही स्नान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार शाही स्नान के दौरान नदी का जल अमृत तुल्य हो जाता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है। (Photo: Indian Express)
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मोक्ष प्राप्ति की मान्यता कुंभ मेले के दौरान नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करने से आत्मा को शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस समय देवता भी गोदावरी के जल में स्नान करने आते हैं। यह स्नान पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। (Photo: Indian Express)
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पिंडदान और पूर्वजों की शांति मान्यता है कि, त्र्यंबकेश्वर में कुंभ के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। यही वजह है कि नासिक कुंभ के दौरान हजारों लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान करते हैं। (Photo: Indian Express) साधु-संत महाकुंभ छोड़ने से पहले क्यों खाते हैं कढ़ी-पकोड़ा? क्या है मान्यता
