-
पूर्वी सिंहभूम के मुटुरखंब गांव की जुमना टुडू को लोग ‘लेडी टार्जन’ के नाम से जानते हैं। ओडिशा में जन्मीं 38 वर्षीय जमुना टुडू ने जंगल बचाने की मुहिम चलाई। उन्हें वन एवं पर्यावरण के संवर्द्धन और संरक्षण के उल्लेखनीय कार्यों के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। जमुना टुडू पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। उन्होंने झारखंड के विभिन्न इलाकों में महिलाओं के कुल तीन सौ समूह बनाए हैं, जिसे वे ‘वन प्रबंधन रक्षा समिति’ कहती हैं। वे अपनी साथी महिलाओं के साथ झारखंड के विभिन्न इलाकों में जंगल माफिया से लोहा लेती हैं और पेड़ों की अवैध कटाई को रोकती हैं। झारखंड की इस लेडी टार्जन की कहानी पर फिल्म बनाने की तैयारी की जा रही है। बॉलीवुड फिल्म निर्माता-निर्देशक चिलुकुरी प्रसाद एवं कथा लेखक धर्मेंद्र बघेल ने पिछले हफ्ते ही जमुना टुडू पर बायोपिक बनाने की घोषणा की है। आइए जानते हैं जमुना टुडू के बारे में कुछ अनसुनी बातें। (All Pics- Facebook page of Jamuna Tudu)
जमुना टुडू के जंगल बचाने की इस अभियान की शुरुआत साल 2000 में हुई थी। वे ओडिशा के रायरंगपुर की रहने वाली हैं। उनके गांव में पेड़ बहुत कम थे, इसलिए उन्हें पेड़-पौधों का महत्त्व मालूम था। इसलिए जब उनका ब्याह हुआ और वे झारखंड के पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे घाटशिला के मुटुरखाम गांव आईं तो यहां के लोगों को जंगल को काटते हुए देखकर बेहद दुखी हुईं। वे घर-बाहर में जंगल बचाने की बात करने लगी। यह बात पूरे गांव में फैल गई। जंगल से लकड़ी काटकर लाने को परंपरा और जीवन-यापन का जरिया बताकर जमुना का विरोध किया जाने लगा। बावजूद इसके जंगल बचाने का प्रण ले चुकी जमुना अडिग रहीं। इसके बाद उन्होंने गांव की ही कुछ महिलाओं को एकत्रित किया और उन्हें जंगल बचाने के लिए प्रेरित करने लगी। जमुना महिलाओं को पेड़-पौधों के लाभ गिनाने लगी और इस तरह जंगल बचाने का अभियान शुरू हुआ। जमुना घर का काम खत्म कर अपनी महिला साथियों को लेकर जंगल में जातीं और वन माफियों को जंगल से भगातीं। माफिया से लड़ने और गांव के आसपास के 50 हेक्टेयर के जंगल की रक्षा करने के लिए वे और उनकी महिला साथी तीर, धनुष, डंडे लेकर जंगलों में गश्त लगातीं। शुरू में जहां इस मुहिम में उनके साथ सिर्फ पांच-छह महिलाएं थीं, वहीं अब उनके साथ पूरा गांव हो गया। 2004 में उन्होंने ‘वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति’ बनाई, जिससे गांव की 60 महिलाएं जुड़ीं। अब उनकी समिति की 300 से ज्यादा शाखाएं हैं। जमुना टुडू ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है इसका प्रमाण है एक समिति में कई महिला सदस्य का होना। ये सभी महिलाएं जंगलों में गश्ती कर पेड़-पौधों को बचाने का प्रयास करती हैं। जमुना और उनकी टीम अपनी जान पर खेल कर पेड़ों की रक्षा करती हैं। वनों को कटने से बचाने के साथ-साथ यह समिति नए पौधे लगाकर जंगलों को सघन बनाने में भी योगदान देती। 20 वर्षों में, उन्होंने झारखंड के 300 गांवों में 50 एकड़ से अधिक जंगल बचाए हैं। यही नहीं झारखंड सशस्त्र पुलिस उसके साथ जंगलों की सुरक्षा में काम करती है। जमुना टुडू को 2014 के श्री शक्ति पुरस्कार, और 2013 के गॉडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।