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साल 2020 में भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो झूल के पास हुई झड़प के बाद कैलास मानसरोवर यात्रा बंद कर दिया गया था। लेकिन पांच साल बाद अब एक बार फिर से कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होने जा रहा है। (Photo: Pexels)
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दोनों देशों के बीच हुई उच्च स्तरीय बातचीत के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने का फैसला किया गया। इसके साथ ही भारत और चीन इस यात्रा के लिए सीधी फ्लाइट भी फिर से शुरू करने पर समहत हुए हैं। (Photo: Pexels)
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कैलाश मानसरोवर कई धर्मों की आस्था का केंद्र है। इसे लेकर हिंदू धर्म, बौध धर्म और जैन धर्म की अलग-अलग मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं ऋग्वेद में क्या कहा गया है? (Photo: Pexels)
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मान्यताओएं के अनुसार, प्राचीनकला में इसी स्थान पर खई ऋषि, मुनि, देवता, दानव और योगियों ने तपस्या की थी। (Photo: Pexels) रोज करते होंगे गायत्री मंत्र का जाप, पता है किस वेद में लिखा है?
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बौद्ध धर्म की मान्यताएं
बौद्ध धर्म को मानने वाले कैलाश पर्वत को कां रिनपोचे और मेरु पर्वत के नाम से बुलाते हैं। बौध्द धर्म में कैलाश पर्वत को ज्ञान और निर्वाण का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही बौद्ध धर्म में ये मान्यताएं हैं कि इस पवित्र स्थल की 10 बार परिक्रमा करने से सारे पाप धुल दाते हैं और 108 बार परिक्रमा करने से निर्वाण की प्राप्ति होती है। (Photo: Pexels) -
जैन धर्म
जैन धर्म में कैलास मानसरोवर बेहद ही खास महत्व रखता है। जैन धर्म के लोगों का मानना है कि उनके पहले तीर्थकर ऋषभदेव को कैलाश मानसरोवर पर बी ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस वो अष्ठपद पर्वत कहते हैं। जैन धर्म के लोगों का मानना है कि ऋषभदेव ने सिर्फ 8 कदमों में 48 किलोमीटर में फैले कैलाश पर्वत की परिक्रमा की थी। (Photo: Pexels) -
हिंदू धर्म
हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शंकर का निवास स्थान बताया गया है जहां वो माता पार्वती के साथ रहते हैं। पुराणों में पहोड़ों से घिरी मानसरोवर धील को’ क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। हिंदू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत ब्राह्मांड की धूरी है। यहीं पर देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उनका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। (Photo: Pexels) -
क्या लिखा है ऋग्वेद में?
हिंदू धर्म के चार वेदों में से एक ऋग्वेद में भी कैलाश पर्वत का जिक्र किया गया है। ऋग्वेद में कुछ इस तरह लिखा गया है: यस्यमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः। यस्येमाः परदिशो यस्य बाहु कस्मै देवाय हविषाविधेम।। हिमवन्तो का इस्तेमाल हिमालय के लिए किया गया है और हिमालय के पवित्र शिखर को कैलाश नाम दिया गया है। (Photo: Pexels) माथे पर क्यों लगाते हैं तिलक? सिर्फ धार्मिक नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है
