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बेंगलुरु, जिसे ‘भारत की सिलिकॉन वैली’ कहा जाता है, अपनी टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट, कल्चरल डायवर्सिटी और ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस शहर का नाम बेंगलुरु कैसे पड़ा? इस शहर के नाम की उत्पत्ति को लेकर कई विवादित और रोचक सिद्धांत हैं, जिन पर आज भी वर्षों से बहस होती आ रही है। (Photo Soure:India Rail Info)
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सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक यह है कि होयसल वंश के राजा वीर बल्लाल द्वितीय को एक बूढ़ी महिला ने उबले हुए बीन्स (बेंदा कालु) खिलाए थे, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने इस जगह का नाम ‘बेंदा कालु ऊरु’ (उबले हुए बीन्स का शहर) रख दिया, जो धीरे-धीरे बेंगलुरु बन गया। (Photo Source: Pexels)
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हालांकि, इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि इस कहानी को महज लोककथा के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसके समर्थन में कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम बेंगलुरु के नाम की उत्पत्ति के विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों की जांच करें और सच्चाई को समझें। (Photo Source: Pexels)
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बेंगलुरु के नाम से जुड़ी अन्य ऐतिहासिक धारणाएं
इतिहासकारों के अनुसार, बेंगलुरु के नाम की उत्पत्ति को लेकर कई अन्य सिद्धांत भी हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
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1. बिलिया कल्लिना ऊरु (सफेद पत्थरों का शहर)
प्रसिद्ध इतिहासकार चिदानंद मूर्ति के अनुसार, बेंगलुरु का नाम क्षेत्र में पाई जाने वाली सफेद क्वार्ट्ज पत्थरों से जुड़ा हो सकता है। पुराने समय में शहर के बलेपेट, नागरथपेट और चिक्कापेटे क्षेत्रों में सफेद पत्थर अधिक मात्रा में पाए जाते थे। इसलिए, इसे ‘बिलिया कल्लिना ऊरु’ (सफेद पत्थरों का शहर) कहा जाता था, जो धीरे-धीरे बेंगलुरु बन गया। (Photo Source: Pexels) -
2. बेंगा-वलोरू (रखवालों का नगर)
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि बेंगलुरु का नाम ‘बेंगवालु’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ ‘रक्षक’ या ‘सुरक्षाकर्मी’ होता है। कहा जाता है कि होयसला साम्राज्य की बेंगवालु सेना (राजाओं की विशेष अंगरक्षक टुकड़ी) ने इस क्षेत्र में अपना डेरा बनाया था। इसलिए इस जगह को ‘बेंगवालु ऊरु’ (रखवालों का नगर) कहा जाने लगा, जो समय के साथ बेंगलुरु बन गया। (Photo Soure: @kamal_archives/instagram) -
3. वेनकनऊरु (भगवान वेंकटेश्वर से जुड़ा शहर)
इतिहासकार एस.के. अरुणि का एक अलग मत है। वे कहते हैं कि दक्षिण भारत में भगवान वेंकटेश्वर (वैंकटनाथ) की पूजा बहुत प्रचलित थी और बेंगलुरु में भी कई पुराने घरों और मंदिरों में वेंकटेश्वर का नाम लिया जाता था। संभव है कि इस क्षेत्र को पहले ‘वेंकटनऊरु’ कहा जाता था, जो धीरे-धीरे बेंगलुरु बन गया। (Photo Source: Pinterest) -
4. बेंगा वृक्ष
इतिहासकार राजेश एच.जी. का मानना है कि बेंगलुरु का नाम ‘बेंगा’ वृक्ष (Pterocarpus marsupium Roxb) से निकला हो सकता है। यह वृक्ष प्राचीन काल में बेंगलुरु क्षेत्र में अधिक मात्रा में पाया जाता था। इसलिए, इस क्षेत्र को पहले ‘बेंगन ऊरु’ (बेंगा वृक्षों का शहर) कहा जाता था, जो धीरे-धीरे बेंगलुरु बन गया। (Photo Source: Pexels) -
5. सबसे मजबूत ऐतिहासिक प्रमाण: 890 ईस्वी का ‘बेंगलुरु युद्ध’
हालांकि ऊपर दिए गए सभी सिद्धांत दिलचस्प हैं, लेकिन इनमें से कोई भी ऐतिहासिक साक्ष्यों द्वारा सिद्ध नहीं हो सका है। लेकिन एक प्रमाण ऐसा है जो बेंगलुरु नाम की उत्पत्ति को प्राचीन काल से जोड़ता है। (Photo Soure: @kamal_archives/instagram) -
बेंगलुरु के पास स्थित बेगूर गांव (लगभग 15 किमी दूर) में एक वीरगल्लु (Heroic Stone) या वीर स्तंभ पाया गया है, जो 890 ईस्वी का है। इस पत्थर पर ‘बेंगलुरु युद्ध’ का उल्लेख मिलता है। (Photo Soure: @kamal_archives/instagram)
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यह शिलालेख गंगा वंश के राजा एरेयप्पा के काल का है और इसमें बताया गया है कि एक योद्धा नगत्तारा ने राजा की ओर से युद्ध लड़ा और उनका बेटा बट्टानापति इस युद्ध में मारा गया। इसमें बेंगलुरु के आस-पास की 10 बस्तियों का भी उल्लेख किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह नाम प्राचीन समय से प्रचलित था। (Photo Source: Pexels)
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इतिहासकार सुरेश मूना का कहना है कि यह सबसे प्रामाणिक साक्ष्य है जो बताता है कि बेंगलुरु का अस्तित्व 800 ईस्वी में भी था। उनका मानना है कि बेंगलुरु के संस्थापक नादप्रभु हिरिया केंपेगौड़ा की मां पुराने बेंगलुरु गांव से थीं, इसलिए उन्होंने इस नाम को अपने नए शहर के लिए चुना। (Photo Source: Pexels)
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लोककथाओं और इतिहास में अंतर
इतिहासकारों का कहना है कि ‘बेंदा कालु ऊरु” (उबले हुए बीन्स का शहर) की कहानी भले ही रोचक हो, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। यह एक लोककथा है, जिसे समय के साथ प्रचारित किया गया और अब यह आम जनता के बीच लोकप्रिय हो गई है। (Photo Source: Pexels) -
दरअसल, बेगूर शिलालेख के अनुसार, बेंगलुरु का नाम 9वीं शताब्दी में ही अस्तित्व में आ चुका था, जबकि वीर बल्लाल द्वितीय का शासन 12वीं-13वीं शताब्दी में था। ऐसे में यह सिद्धांत ऐतिहासिक रूप से गलत साबित होता है। (Photo Source: Pexels)
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