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अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी सात दिवसीय भारत यात्रा पर हैं। अपनी यात्रा के दौरान वह दारुल उलूम देवबंद का दौरा करने पहुंचे थे जहां उन्हें देखने के लिए भारी संख्या में भीड़ जमा हुई थी। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित देवबंद कई बार चर्चा में रहा है। आइए जानते हैं देवबंद कैसे आम मदरसों से अलग है और यहां की पढ़ाई कितनी अलग है। (Photo: PTI) दुनिया के 57 इस्लामिक देशों में से किन-किन के पास है परमाणु हथियार, ईरान के पास है या नहीं?
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इस्लामिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र
दारुल उलूम देवबंद दुनिया के सबसे प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थानों में से एक है। इसे इस्लामिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र भी कह जाता है, जहां न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि विदेशों से भी युवा पढ़ने के लिए आते हैं। देवबंद में कई मदरसे हैं जहां दीनी तालीम दी जाती है। जिसके चलते देवबंद को तालीम की नगरी कहा जाता है। (Photo: PTI) -
दर्ज-ए-निजामी शिक्षा
दारुल उलूम देवबंद की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1866 में हुई थी। यहां पर दर्ज-ए-निजामी के तहत शिक्षा दी जाती है जो इस्लामी शिक्षा का एक पारंपरिक और प्राचीन पाठ्यक्रम है। दर्ज-ए-निजामी के तहत उर्दू, अरबी, फारसी, और इस्लामिक शास्त्रों की पढ़ाई कराई जाती है। यही कोर्स दक्षिणा एशिया के भी मदरसों में पढ़ाई जाती है। (Photo: Indian Express) -
शुरुआती पढ़ाई
दारुल उलूम देवबंद की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार पढ़ाई की शुरुआत कुरान से होती है। बच्चों को इसे सही उच्चारण के साथ पढ़ाया और याद कराया जाता है। साथ ही अरबी, उर्दू और फारसी भाषाओं की बुनियादी शिक्षा भी दी जाती है। इस स्तर को ‘मुतवस्सिता’ कहते हैं। इस दौरान छात्रों को इस्लाम की बुनियादी बातें नमाज, रोजा, जकात, इस्लामी इतिहास और नैतिक आचरण सिखाई जाती है। (Photo: Unsplash) क्या होता है ‘किरबा’ जिसमें इस्लामिक देशों के लोग रखते हैं घी, जानवरों के खाल का होता है इस्तेमाल -
यह भी पढ़ाते हैं
इसके बाद छात्रों को नह्व और सरफ (अरबी व्याकरण), तफसीर (कुरआन की व्याख्या), इस्लामी कानून (हदीस और फिकह) पढ़ाया जाता है। यहां पर तर्कशास्त्र (मंतिक), दर्शनशास्त्र (फलसफा) और उसूल-उल-फिकह (इस्लामी विधि के सिद्धांत) की भी पढ़ाई जाती है। (Photo: Unsplash) -
उच्च शिक्षा के लिए कोर्सेस
दारुल उलूम देवबंद की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार यहां पर उच्च शिक्षा के लिए कई कोर्स भी चलाए जाते हैं। जिसमें तखस्सुस फिल हदीस जिसमें हदीस की प्रमुख किताबें जैसे- बखारी, मुस्लिम आदि का गहन अध्ययन शामिल होता है। तकमील इफ्ता में इस्लामी कानून और फतवा लेखन में विशेषज्ञता, तखस्सुस फिल अदब-अरबी भाषा और साहित्य का अध्ययन और तकमील तफसी जिसमें कुरान की व्याख्या में गहराई से पढ़ाया जाता है। (Photo: Indian Express) -
मुफ्ती कैसे बनते हैं
इन कोर्सों को पूरा करने के बाद छात्रों को इस्लामी विद्वान यानी आलिम की उपाधि दी जाती है। इसके बाद इफ्ता की पढ़ाई करते हैं जिसके बाद वह मुफ्ती बनते हैं। मुफ्ती बनने के बाद धार्मिक फैसले (फतवे) देने का अधिकार होता है। (Photo: Unsplash) -
इसके अलावा दारुल उलूम देवबंद में पत्रकारिता, कंप्यूटर एप्लिकेशन, अंग्रेजी भाषा और कंपेरेटिव रेलिजन जैसे कोर्सेस भी पढ़ाए जाते हैं। (Photo: Indian Express)
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इस्लाम में दौर-ए-हदीस शरीफ का महत्व
इस्लामी शिक्षा में दौर-ए-हदीस शरीफ का बेहद ही खास महत्व है। दारुल उलूम का यह सबसे प्रतिष्ठित और अंतिम कोर्स कहलाता है। इसमें छात्रों इस्लाम की छह प्रमुख हदीस पुस्तकों (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, अबू दाऊद, तिर्मिजी, नसाई और इब्रा माजा) की गहराई से अध्ययन करना होता है। यह कोर्स पूरे करने वाले छात्रों को आलिम की डिग्री दी जाती है जिसे इस्लाम में सबसे सम्मानजनक माना जाता है। (Photo: Unsplash) मिडिल ईस्ट का सबसे ताकतवर इस्लामिक देश, जानें इन 10 देशों के पास कितनी है सेना
