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यूं ही भावुक नहीं हुए CJI: 2 करोड़ केस लंबित, 10 लाख पर सिर्फ 15 जज, जानें और FACTS

मुख्‍यमंत्रियों व हाईकोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िसों की बैठक में रविवार को भाषण देने के दौरान चीफ जस्‍ट‍िस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर भावुक हो गए। वे न्‍यायपालिका में जजों की संख्‍या और ज्‍यादा बढ़ाने पर जोर दे रहे थे। इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे। ठाकुर ने मांग की कि केसों की…

By: जनसत्ता ऑनलाइन
April 24, 2016 15:34 IST
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    1/10

    मुख्‍यमंत्रियों व हाईकोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िसों की बैठक में रविवार को भाषण देने के दौरान चीफ जस्‍ट‍िस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर भावुक हो गए। वे न्‍यायपालिका में जजों की संख्‍या और ज्‍यादा बढ़ाने पर जोर दे रहे थे। इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे। ठाकुर ने मांग की कि केसों की बढ़ती संख्‍या के मद्देनजर जजों की संख्‍या में बड़े पैमाने पर इजाफा किया जाना चाहिए। अपने भावुक भाषण में जस्‍ट‍िस ठाकुर ने आरोप लगाया कि मांग के बावजूद कई सरकारें इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रहीं। पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक बैठक का प्रस्ताव दिया है।

  • 2/10

    बेंगलुरु के स्‍वयं सेवी संगठन दक्ष की रिसर्च के मुताबिक, जिन उच्‍च न्‍यायालयों में मुकदमों की संख्‍या अपेक्षाकृत कम है, वहां भी जजों के पास एक केस की सुनवाई के लिए सिर्फ 15-16 मिनट रहते हैं, जबकि व्‍यस्‍ततम उच्‍च न्‍यायालयों में एक केस के लिए जज के पास औसतन 2.5 मिनट का ही समय होता है।

  • 3/10

    भारत में 10 लाख की आबादी पर करीब 15 जज हैं। इसके बाद जजों के पांच हजार पद खाली पड़े हैं।

  • 4/10

    नेशनल ज्‍यूडिशियल डाटा ग्रिड (NJDG[1) के आंकड़ों के मुताबिक, 5 अप्रैल 2016 तक देश की जिला अदालतों में 2 करोड़ मुकदमे लंबित पड़े हैं।

  • 5/10

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजस्थान हाई कोर्ट ने मामले में खुद नोटिस लेकर अपनी पावर अॉफ रिविजन का अतिक्रमण किया है।

  • 6/10

    देश में 73,000 लोगों पर सिर्फ एक जज है। यह स्थिति अमेरिका की तुलना में सात गुना बदतर है।

  • 7/10

    देशभर के आंकड़े के अनुसार, 73000 लोगों पर एक जज है, लेकिन दिल्‍ली की हालत सबसे ज्‍यादा खराब है। राजधानी में 5 लाख लोगों पर एक जज है। प्रत्‍येक जज के पास 1,350 मुकदमे लंबित पड़े हैं, जो कि 43 केसों का हर महीने निपटारा करते हैं।

  • 8/10

    जिला अदालतों में जिस रफ्तार से दीवानी मुकदमों की सुनवाई हो रही है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस श्रेणी के मुकदमों की सुनवाई कभी नहीं हो पाएगी, जबकि फौजदारी के मुकदमों के निपटारे में कम से कम 30 वर्ष का समय लगेगा।

  • 9/10

    राज्‍यों के हालात की बात करें तो महाराष्‍ट्र में जिस रफ्तार से मुकदमे दायर हो रहे हैं, उससे हर महीने लंबित केसों की संख्‍या में 1 लाख का इजाफा हो जाता है।

  • 10/10

    उत्‍तर प्रदेश में हर महीने करीब 44,500 लंबित मुकदमों का निपटारा किया जाता है। यूपी में प्रत्‍येक जज के पास 2,513 मुकदमे लंबित पड़े हैं। 6 लाख 31 हजार 290 केस पिछले 10 साल से लंबित पड़े हैं। केसों का निपटारा करने के मामले में उत्‍तर प्रदेश की रफ्तार राष्‍ट्रीय औसत से पांच गुना बेहतर है।

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