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यमुना नदी के उफान के कारण दिल्ली के कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं। लेकिन यह पहली बार नहीं है कि यमुना उफान पर आई है। इसका सबूत है यमुना नदी पर बना 150 साल पुराना पुल, जिसे ‘लोहा पुल’ और ‘ब्रिज नंबर 249’ के नाम से जाना जाता है। (PTI Photo)
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इस पुल ने साल 1978 में आई विनाशकारी बाढ़ भी देखी है। इस बाढ़ में देश की राजधानी दिल्ली का बड़ा हिस्सा डूब गया था। इससे पहले साल 1956, 1967, 1971, 1975 में भी इस पुल ने भयंकर बाढ़ का सामना किया था। (PTI Photo)
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लोहा पुल नाम से मशहूर यह पुल डेढ़ सदी से अधिक समय में इतनी बार बाढ़ का गवाह बना है कि इसे यमुना नदी में पानी के खतरे के स्तर को मापने का संदर्भ बिंदू भी माना जाने लगा है। (PTI Photo)
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इस ऐतिहासिक पुल को 1866 में पहली बार कोलकत्ता और दिल्ली को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए खोला गया था। इस पुल के नीचे की ओर पैदल मार्ग है जो आज भी काम कर रहा है। (PTI Photo)
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इतिहास पर नजर डालें तो लाल किले के पास स्थित इस पुल का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने शुरू कराया था। इसका निर्माण कार्य 1863 में शुरू हुआ जो 1866 में खत्म हुआ। (Photo By Indian Express)
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इस पुल के स्ट्रक्चरका निर्माण अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की मृत्यु के एक साल बाद शुरू हुआ। पुल के निर्माण की देखरेख ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के चीफ इंजीनियर जॉर्ज सिबली ने की थी। (PTI Photo)
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इसके निर्माण से पहले, लोग यमुना पार करने के लिए नावों में बैठकर या फिर पीपा से बने पुल का उपयोग करते थे। इस पुल का इस्तेमाल अंग्रेज भी करते थे। लेकिन जब मानसून के दौरान यमुना का जलस्तर बढ़ जाता है तो ये पुल नष्ट हो जाते थे। (PTI Photo)
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इतिहासकार स्वप्ना लिडल के अनुसार, “जब रेलवे नेटवर्क का निर्माण शुरू हुआ, तो अंग्रेजों ने फैसला किया कि वे नदी के ऊपर भी एक लाइन बनाना चाहते हैं।” (PTI Photo)
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स्वप्ना लिडल ने कहा, 19वीं शताब्दी में नदी की चौड़ाई को देखते हुए पुल का निर्माण करना आसान काम नहीं था। इस पुल का निर्माण करवाया जाना कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी। (PTI Photo)
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इतिहासकार ने आगे बताया कि यमुना को हम एक छोटी नदी के रूप में देखते हैं। लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसके स्वरूप को देखा जाए तो यह बहुत बड़ी और विशाल नदी है। एक विशाल नदी पर इस तरह का पुल बनाना तकनीकी रूप से बड़ी चुनौती के साथ-साथ काफी बड़ी उपलब्धि थी। 1866 में बनकर तैयार हुए इस पुल की कुल लंबाई 2640 फीट और 202.5 फीट की दूरी पर 12 स्पान थी। (PTI Photo)
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इस पुल की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई विनाशकारी बाढ़ और भूकंपों को झेल चुका ये पुल करीब डेढ़ सौ साल बाद आज भी मजबूती से खड़ा है और इस्तेमाल किया जा रहा है। (PTI Photo)
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