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नींद के दौरान दिमाग भी सोता है। वह भी आराम करता है। अगले दिन के लिए रीचार्ज होता है। या नींद को धोखा दिया जा सकता है। आप कम सोएं या ज्यादा, इससे सेहत पर असर नहीं पड़ता। नींद-सोने की आदतों से जुड़े ये मिथक आपने सुने होंगे। अधिक लोगों के कहने पर शायद विश्वास भी कर लिया हो। लेकिन ये बातें पूरी तरह से सच नहीं है। नींद और सोने की आदतों का प्रभाव सीधे तौर पर शरीर पर पड़ता है। आज वर्ल्ड स्लीप डे (16 मार्च) है। नेशनल स्लीप फाउंडेशन ने इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए कुछ आम मिथकों की सूची तैयार की। फाउंडेशन ने इसके साथ उसमें स्पष्ट किया कि ये फर्जी हैं। नींद में बहुत लोगों को खर्राटे आते हैं। पहला मिथक है कि यह सेहत को नुकसान करते हैं। लेकिन ये सबके लिए हानिकारक नहीं है। ये एक किस्म का स्लीप डिसऑर्डर होता है, जिसे स्लीप एपनिया कहते हैं। यह खासकर उन लोगों को आता है, जो दिन में नींद पूरी करते हैं। स्लीप एपनिया में इंसान रुक-रुक कर सांस ले पाता है।
उम्र बढ़ने के साथ नींद भी कम पड़ती है। यह मिथक भी ढेर सारे में लोगों के बीच फैला है, जबकि सच यह है कि बुजुर्ग भले ही जल्दी (कम वक्त में) उठ जाते हों। मगर वे भी युवाओं उतनी ही नींद पूरी करते हैं। चूंकि वे दिन में अपनी नींद का कुछ हिस्सा पूरा करते हैं। लोग यह भी कहते हैं कि नींद के समय को अपने हिसाब से मैनेज किया जा सकता है। लेकिन नींद पूरी न करने की भरपाई बाद में चुकानी पड़ती है। यह समस्या आगे चलकर जटिल हो सकती है। मसलन मोटापा, उच्च रक्तचाप और नकारात्मक मूड और बर्ताव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। -
सोते वक्त दिमाग आराम करता है। यह तथ्य गलत है। नींद के दौरान शरीर आराम करता है। न कि दिमाग। यह उस वक्त भी सक्रिय रहता है। रीचार्ज होता है और शरीर की बाकी प्रक्रियाओं पर काबू रखता है, जिसमें सांस लेना भी शामिल है।
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क्लास में सोने वाले किशोर-किशोरियां आलसी होते हैं। ये मिथक भी लोगों के बीच आम है। जानकारों की मानें तो उन्हें कम से कम आठ से 10 घंटे की नींद लेनी चाहिए। वहीं, वयस्कों के लिए औसतन सात से नौ घंटे सोना अच्छा माना जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है, तब शरीर की बायोलॉजिकल घड़ी उन्हें शाम तक जगाए रखती है।
दिन में सोना यानी नींद न पूरी होना है। यह दावा भी अक्सर लोग करते हैं। लेकिन इसकी सच्चाई यह है कि दिन में अधिक नींद आने की स्थिति में लोगों को बार-बार जंभाई आ आती है। ऐसा रात में अधिक नींद ले लेने के कारण भी हो सकता है। दिन में सोना नुकसानदेह हो सकता है। यह किसी को भी मानसिक तौर पर बीमार बनाने के साथ अन्य बीमारियों की चपेट में भी ले सकता है। -
एक मिथक है कि नींद से स्वास्थ्य संबंधी मसलों का कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन इससे हॉर्मोन्स पर प्रभाव पड़ता है। मोटापा बढ़ने की आशंका रहती है। रिसर्च भी कहते हैं कि अधूरी नींद शरीर में इंसुलीन लेने की क्षमता को कम करने लगती है, जिससे मधुमेह होने और उसके स्तर के बढ़ने का खतरा रहता है।
