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आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वर्क लाइफ और पर्सनल लाइफ में बैलेंस करना काफी मुश्किल हो गया है। वहीं, कर्मचारियों को कई बार ऑफिस से घर लौटने के बाद भी कार्य करना पड़ता है। लेकिन इसी को लेकर ऑस्ट्रेलिया में एक नया कानून लागू किया गया है।
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इस कानून का नाम ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ यानी संपर्क में ना रहने का अधिकार है। ये कानून ऑस्ट्रेलिया के कर्मचारियों को ‘काम के घंटों के बाद बॉस की बात ना सुनने’ की इजाजत देता है।
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दरअसल, ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने कर्मचारियों के हितों को मद्देनजर रखते हुए उनकी हेल्थ की बेहतरी के लिए इस खास पहल की शुरुआत की है। ऑस्ट्रेलियाई संसद ने फेयर वर्क एक्ट 2009 में संशोधन करके फेयर वर्क अमेंडमेंट एक्ट 2024 लाया था।
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ये कानून इसी साल फरवरी में पारित हुआ था। इस कानून के तहत अगर कोई बॉस अपने कर्मचारी को शिफ्ट के बाद भी काम बताता है तो वह इसकी शिकायत कर सकता है। यह एक्ट ऑस्ट्रेलिया में 26 अगस्त 2024 को लागू हो जाएगा।
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लगभग हर नौकरी में कर्मचारियों पर काम के निर्धारित समय के बाद भी बड़े अधिकारियों के फोन उठाने का दबाव रहता है। कई बार फोन या ईमेल का जवाब न देने से आपकी प्रमोशन या नौकरी खतरे में पड़ जाती है।
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हालांकि वर्क टाइम के बाद हो रहे इस काम का वेतन कहीं नहीं मिलता। आपने भी कभी न कभी अपने बॉस या ऑफिस से ऐसे मैसेज, कॉल या ईमेल से जरूर दो चार हुए होंगे, लेकिन आस्ट्रेलिया के कर्मचारी अब नए कानून के मुताबिक छुट्टियों के दिनों में अपने बॉस के अनचाहे कॉल को नजरअंदाज कर सकते हैं।
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इसका मतलब है कि एक कर्मचारी अपने बॉस की कॉल, मैसेज और ईमेल का जवाब देने से इनकार कर सकता है। वह अपने बॉस का कॉल डिस्कनेक्ट कर सकेगा। इसके साथ ही कर्मचारी को ड्यूटी के बाद ऑफिस का कोई काम करना भी जरूरी नहीं होगा।
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ऑस्ट्रेलिया का यह नया कानून अब कर्मचारियों को अनपेड ओवरटाइम करने से भी रोकता है। वहीं, अगर किसी कर्मचारी ने अपने बॉस के खिलाफ शिकायत की है तो जांच के बाद उस बॉस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दोषी पाए जाने पर बॉस से मोटा हर्जाना वसूला जाएगा।
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आपको बता दें, ऑस्ट्रेलिया ऐसा कानून बनाने वाला पहला देश नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के अलावा फ्रांस,जर्मनी, इटली, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, चिली, लग्जमबर्ग, अर्जेंटिना समेत कई देशों में भी ऐसे कानून हैं, जो कर्मचारियों को काम के घंटों के बाद अपना मोबाइल बंद करने की इजाजत देते हैं।
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वहीं, नीदरलैंड, स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों में खुद ही एम्प्लॉयर और एम्पलॉयी ये तय कर लेते हैं कि काम का समय पूरा होने के बाद वे एक-दूसरे से संपर्क नहीं करेंगे। यहां के इस कल्चर की वजह से अलग कानून लाने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी। जबकि भारत में साल 2018 में सांसद सुप्रिया सुले ने ऐसे कानून का मुद्दा उठाया था, लेकिन चर्चा आगे नहीं बढ़ पाई।
(Photos Source: Pexels)
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