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कागज के नोटों का पहली बार प्रयोग चीन में तांग वंश (618-907 ईसवी) शुरू हुआ था। हालांकि तांग शासन में आम तौर पर निजी लेन-देन में कागज के बने बिल या एक्सचेंज नोट का इस्तेमाल होता था। इसके करीब 500 साल बाद यूरोप में 17वीं सदी में कागजी नोटों का इस्तेमाल शुरू हुआ। स्वीडन कागजी नोट इस्तेमाल करने वाला पहला यूरोपीय देश बना। लेकिन बाकी दुनिया में कागजी कई सौ साल बाद प्रचलित हुए। इस बीच चीन में कागजी नोटों का उत्पादन बढ़ गया था लेकिन उनका मूल्य काफी कम हो गया था। नतीजतन, चीन ने 1455 में कागजी नोट पूरी तरह बंद कर दिए। इसके बाद चीन ने कई सौ साल बाद दोबारा कागजी नोटों जारी करने शुरू किए।
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जिंबाब्वे में मुद्रास्फीति जब 23.1 करोड़ प्रतिशत पहुंच गई और एक मामूली ब्रेड की कीमत 300 अरब हो गई तो वहां की गठबंधन सरकार ने 2006 में दस खरब जिम्बाब्वे डॉलर का एक नोट निकाला। इस तरह ये नोट दुनिया की सबसे बड़ी राशि वाला नोट बन गया।
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कोकीन का नशा- दौलत को एक तरह का नशा मानने वालों की कमी नहीं है लेकिन नशे के लिए दौलत का इस्तेमाल करने में एक देश काफी आगे है। 2002 में किए गए एक शोध के अनुसार अमेरिकी डॉलर के 94 प्रतिशत नोटों पर कोकीन के अंश पाए गए। यानी इन नोटों को कभी न कभी किसी ने कोकीन लगे हाथों से छुआ गया था। इतना ही नहीं इसी अध्ययन में डॉलर पर टॉयलेट पेपर से ज्यादा जीवाणु पाए गए थे। डॉलर के नोट पर वायरस और बैक्टीरिया 48 घंटे तक जीवित रहते हैं। कागज के नोट पर फ्लू का वायरस 17 दिनों तक प्रभावित रह सकता है।
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अगर आप ये सोचते हैं कि जाली नोटों की समस्या से केवल भारत या तीसरी दुनिया के देश परेशान हैं तो आप गलत हैं। अमेरिकी गृह युद्ध के बाद अमेरिका में जाली नोटों का तेजी से प्रचलन बढ़ा। एक वक्त ये माना जाने लगा कि अमेरिका में प्रचलित करीब एक तिहाई डॉलर नोट जाली हैं। 1885 में अमेरिका में जाली नोटों पर रोकथाम के लिए एक विशेष विभाग बनाया गया। समय के साथ अमेरिकी में जाली नोटों पर काफी हद तक रोकथाम पाई गई लेकिन साल 2002 तक जाली नोटों की निगरानी वाले विभाग में 6500 कर्मचारी कार्यरत थे।
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अंग्रेजी कहावत थी कि ब्रिटिश हुकूमत का सूर्य कभी नहीं डूबता। इसका सीधा मतलब था कि किसी भी वक्त किसी ने किसी ब्रिटिश उपनिवेश में दिन रहता था। ब्रिटिश उपनिवेश की ही देन है कि ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ द्वितिय एकमात्र ऐसी शख्सियत हैं जिनकी तस्वीर 33 देशों की मुद्रा पर छप चुकी है। नोट पर एलिजाबेथ की पहली तस्वीर कनाडा ने छापी थी। तब वो नौ साल की थीं।
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हर नोट कभी न कभी नष्ट हो जाता है। नोट जिनता छोटा हो उतना ज्यादा उसका इस्तेमाल होता है। अगर बात दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्रा डॉलर की बातें करें तो टाइम मैगजीन के अनुसार एक डॉलर का नोट करीब 21 महीने तक चलता है। वहीं बड़े नोट सात साल तक चल सकते हैं।
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दुनिया का पहली पैसे निकालने वाली मशीन जॉन शेफर्ड ने बनाई थी। शेफर्ड ने नोट निकालने की मशीन को ब्रिटिश बैंक बार्कले के सामने पेश की। बैंक ने इसे तत्काल खरीद लिया। इस तरह दुनिया का पहला एटीएम 1967 में बार्कले बैंक ने लंदन में लगाई। एटीएम मशीन के शुरुआती मॉडल में पिन नहीं लगता था और इससे पैसे निकालने के लिए बैंक कोई शुल्क भी नहीं लेता था।
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बैंक ऑफ इंग्लैंड ने अब तक सबसे अधिक 10 लाख पाउंड का नोट जारी किया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक विशेष योजना के तहत ये नोट जारी किए गए थे। इस नोट का प्रयोग केवल अमेरिकी सरकार कर सकती थी। कुछ ही महीनों बाद ब्रितानी सरकार ने इन नोटों को बंद कर दिया फिर भी कुछ लोगों के पास ये बचे रहे गए। 2008 में एक नीलामी में 10 लाख पाउंड का बंद किया जा चुका एक नोट एक लाख बीस हजार पाउंड में बिका था। माना जाता है कि ऐसे अब बस दो ही नोट बचे हैं।
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आकार में अब तक का दुनिया का सबसे बड़ा नोट फिलीपींस सरकार ने 1998 में जारी किया था। ए-4 साइज के पेपर के आकार के बराबर इस नोट का मूल्य था एक लाख पेसो। इस नोट को स्पेन के उपनिवेश से आजादी के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में जारी किया गया था। हालांकि ये नोट लेन-देन के लिए नहीं था। इसे केवल संग्रह के लिए जारी किया गया था। सबसे मजेदार बात ये है कि एक लाख पेसो की कीमत एक लाख 80 हजार पेसो थी क्योंकि इन्हें सीमित संख्या में ही छापा गया था।
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इस समय भारत में नोटबंदी शायद सबसे अधिक चर्चित मुद्दा है। आपको बता दें कि भारत में पहला कागजी बैंक नोट ब्रितानी सरकार ने जारी किया। इतना ही नहीं बैंक नोट जारी करने वाले और छापने वाले भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना भी ब्रिटिश शासकों ने एक अप्रैल 1935 में की थी।