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भारत में तीर्थ यात्रा को जीवन का एक महत्वपूर्ण और पवित्र भाग माना जाता है। हर श्रद्धालु का सपना होता है कि वह जीवन में कम से कम एक बार तीर्थ स्थलों के दर्शन करे। लेकिन जब बात महिलाओं की आती है और उनके मासिक धर्म की, तो यह विषय अक्सर असमंजस और सामाजिक व धार्मिक नियमों से घिरा रहता है। (Photo Source: Pexels)
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ऐसे में जब महिलाएं पूरे मन से भगवान के दर्शन के लिए किसी पवित्र धाम पर जाती हैं और अचानक उन्हें मासिक धर्म शुरू हो जाता है, तो एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है – क्या इस अवस्था में भगवान के दर्शन करना उचित है? (Photo Source: Pexels)
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हमारे समाज में आज भी मासिक धर्म को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां और वर्जनाएं मौजूद हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक और स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है, जो प्रत्येक स्त्री के जीवन का सामान्य हिस्सा है। (Photo Source: Pexels)
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वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर बड़ा ही सुंदर और संतुलित उत्तर दिया है। एक महिला ने उनसे पूछा कि तीर्थ यात्रा पर आने के बाद यदि मासिक धर्म हो जाए तो क्या दर्शन करना चाहिए? इस पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि, “दर्शन करने का सौभाग्य तो नहीं छोड़ना चाहिए।” (Photo Source: Shri Hit Premanand Ji Maharaj/Facebook)
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प्रेमानंद जी का मानना है कि अगर कोई महिला हजारों किलोमीटर दूर से किसी तीर्थ स्थान पर पहुंची है, और अचानक उसे मासिक धर्म हो गया है, तो वह स्नान करके, चंदन, गंगाजल या भगवत प्रसाद का छिड़काव करके, शुद्ध होकर दूर से दर्शन कर सकती है। (Photo Source: Premanand Ji Maharaj/Facebook)
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हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस अवस्था में महिलाओं को सेवा कार्य, मंदिर की वस्तुओं को छूना या प्रसाद अर्पित करने से बचना चाहिए। लेकिन केवल इस कारण दर्शन से वंचित कर देना उचित नहीं है, क्योंकि हर किसी के पास बार-बार तीर्थ यात्रा का अवसर नहीं होता। (Photo Source: Pexels)
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उन्होंने कहा, “कोई आर्थिक कारणों से, कोई शारीरिक कठिनाइयों से जूझ कर वहां पहुंचता है, तो ऐसे में भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य क्यों गंवाया जाए?” प्रेमानंद जी ने मासिक धर्म से जुड़ी एक पुरानी धार्मिक कथा का भी उल्लेख किया, जो इस विषय को एक आध्यात्मिक दृष्टि से समझने में मदद करती है। (Photo Source: Pexels)
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पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर ब्रह्म हत्या का दोष पाया। जब ब्रह्म ऋषियों ने इस दोष को विभाजित किया, तो उसका एक भाग स्त्रियों के ऊपर आया – मासिक धर्म के रूप में। (Photo Source: Pexels)
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उन्होंने बताया कि नदी में यह दोष झाग या फेन के रूप में गया, वृक्षों में यह गोंद के रूप में गया, भूमि में यह ऊष्मा या बंजरता के रूप में गया, और स्त्रियों में यह मासिक धर्म के रूप में आया। इसलिए यह कोई पाप नहीं, बल्कि एक महान त्याग और सहनशीलता का प्रतीक है। (Photo Source: Pexels)
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उन्होंने कहा, “इन्होंने देवराज इंद्र के पाप को अपने ऊपर लिया है। ये कोई अपराधी नहीं हैं।” यदि एक महिला मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति समर्पित है, तो केवल एक शारीरिक प्रक्रिया के कारण उसे दर्शन से रोकना, धर्म के मूल तत्वों के विरुद्ध है। (Photo Source: Pexels)
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प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक, अगर ऐसी स्थिति आती है तो इस मौके पर पवित्रता बनाए रखना जरूरी है — स्नान, शुद्धता और मर्यादा का पालन करना चाहिए। लेकिन दूर से भगवान के दर्शन अवश्य करने चाहिए, ताकि वह आत्मिक आनंद, जो तीर्थ यात्रा का लक्ष्य है, पूरा हो सके। (Photo Source: Premanand Ji Maharaj/Facebook)
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