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सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। यह महीना शिव भक्तों के लिए बेहद ही खास होता है। सावन के महीने में शिव भक्त मंदिरों में जाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं। सावन में ही कावड़ यात्रा भी निकाली जाती है जिसमें भक्त पवित्र स्थानों से गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। (Indian Express)
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लेकिन क्या आपको पता है कि कांवड़ यात्रा कितनी तरह की होती है और इसके नियम क्या होते हैं? इसमें से सबसे कठिन एक कांवड़ यात्रा होती है जो हर किसी के बस की बात नहीं होती है। (Indian Express)
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साधारण कांवड़
यह सबसे सामान्य कांवड़ यात्रा होती है। इसमें कांवड़िए जहां चाहे वहां आराम कर सकते हैं। इस यात्रा में दो बर्तनों में गंगाजल भरकर एक बांस की छड़ी पर लटकाया जाता है। इसे कांवड़िए अपने कंधे पर रखकर पैदल चलते हैं। ऐसे कांवड़ियों के लिए सामाजिक संगठन से जुड़े लोग पंडाल लगाते हैं जहां भोजन और विश्राम करने के बाद कांवड़िए अपनी यात्रा दोबारा शुरू करते हैं। (Indian Express) -
डाक कांवड़
ये सबसे कठिन कांवड़ यात्रा मानी जाती है। इसे तेजी से पूरा करना होता है। कांवड़िए बिना रुके तेजी से चलते हैं और निर्धारित समय में अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। डाक कांवड़ में कांवड़िए विश्राम नहीं कर सकते हैं। साथ ही गंगाजल का जमीन पर गिरना वर्जित होता है। (Indian Express) -
मान्यताओं के अनुसार डाक कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए मूत्र मल भी नहीं त्याग सकते हैं। नियमों को तोड़ने पर यह यात्रा खंडित हो जाती है। वहीं, डाक कांवड़ियों के लिए तामसिक भोजन करने की मनाही होती है और उन्हें सात्विक रहना होता है। (Indian Express)
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खड़ी कांवड़
खड़ी कांवड़ को भी काफी कठिन बताया जाता है। इसमें बांस की छड़ी सीधी खड़ी होती है और जल के बर्तन छड़ी के ऊपरी सिरे पर लगे होते हैं। इसे स्थिर स्थान पर रखते समय खड़ा रखा जाता है। (Indian Express) -
झूला कांवड़
झूला कांवड़ यात्रा में कांवड़ियों के कंधे पर बांस की छड़ी पर झूलते हुए बर्तन होते हैं। यह यात्रा खासकर बच्चों के लिए होती है। (Indian Express)
