इस फिल्म में एक गाना है जिसके शुरुआती बोल हैं, ‘रायता फैल गया’। फिल्म में लगभग ऐसा ही होता है। करण जौहर मार्का यह फिल्म एक कॉमेडी के रूप में बनाई गई है। हंसने, हंसाने का पूरा सामान इकट्ठा किया गया है। लेकिन सवा दो घंटे हंसाने के लिए एक ठीक-ठाक कहानी भी तो होनी चाहिए। और यहीं कमजोर पड़ जाते हैं फिल्म के निर्देशक विकास बहल। उन्होंने कहानी से अधिक चुटकुलेबाजी पर जोर दिया है। -
हिंदी में शादी-ब्याह पर पहले भी फिल्में बनती रही हैं लेकिन ‘शानदार’ के निर्माताओं ने यह प्रचारित किया है कि ये पहली ‘डेस्टिनेशन वेडिंग’ यानी दूर जाकर विवाह करने की फिल्म है। यह सरासर जुमलेबाजी है क्योंकि हर शादी में कोई न कोई घर से दूर जाता है। आखिर हर बारात कहीं न कहीं, किसी न किसी ‘डेस्टिनेशन’ पर जाती है।
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फिल्म नसीरुद्दीन शाह के वॉयस ओवर और एनिमेशन से शुरू होती है और इसमे बताया गया है विपिन अरोड़ा एक छोटी सी अनाथ बच्ची को घर लाता है जिसे उसकी पत्नी तो पसंद नहीं करती लेकिन किसी तरह उसी घर में रहती है। बड़ी होकर वो आलिया (आलिया भट्ट) बन जाती है। विपिन अरोड़ा की बड़ी बेटी ईशा (सना कपूर) की शादी होने वाली है। शादी इंग्लैंड के किसी रमणीक स्थान पर हो रही है और वहां वेडिंग प्लानर के रूप में पहुंचा है जगिंदर जोगिंदर उर्फ जेजे (शाहिद कपूर)। ईशा की शादी हैरी फंडवाणी (संजय कपूर) नाम के सिंधी व्यापारी के भाई से होने रही है जा रही है।
हैरी एक फंटूस किस्म का शख्स है जो बात-बात पर रिवाल्वर चलाता है और क्वीन एलिजाबेथ से लेकर माइकल जैक्सन को सिंधी साबित करने पर तुला रहता है। शादी किसी और की हो रही है पर इश्क पनपता है जेजे और आलिया के बीच। दोनों को नींद न आने की बीमारी है इसलिए वे रात में जागते हैं और इधर-उधर घूमते रहते हैं। लेकिन आलिया को जब जेजे से इश्क होता है तो उसे नींद आने लगती है। लेकिन उधर जिस शादी के लिए सारे लोग इकट्टे हुए हैं उसमें दरार पड़ जाती है। शादी की तैयारियां चलती रही हैं लेकिन रायता फैलाने का माहौल भी बनता जाता है। फिल्म हंसी मजाक से लबाबब है। लेकिन इसका जजबाती पहलू या कहें कि रोमांटिक एंगल ठीक से विकसित नहीं हो पाया है। आलिया और जेजे के बीच जो प्रेम पनपता है वह कुछ-कुछ चुस्त फिकरेबाजी तक सीमित रहता है। एक रात जब आलिया किसी तालाब में नहा रही है तो जेजे वहां पहुंच जाता है और उसे शक है कि तालाब में कोई आत्महत्या के लिए कूदा है। इसी समय का एक संवाद है जिसमें जेजे आलिया से पूछता है -‘तुमने क्या कपड़े नहीं पहने है’ तो वह जवाब देती है-तुम क्या कपड़े पहन के नहाते हो’। हालांकि इसी दृश्य के आगे काल्पनिक रूप से चाय पीने की जो नाटकबाजी है वो जरूर दिलचस्प है। करण जौहर इस फिल्म के चार निर्माताओं में एक हैं। लेकिन उनकी विचारधारा की स्पष्ट छाप इस पर है। एक तो इस फिल्म में एक पात्र आखिर में घोषणा करता है-‘मैं समलैंगिग हूं’। स्पष्टत: यह करण जौहर वाद है। इसके अलावा करण ने इस फिल्म के एक लंबे दृश्य में अभिनय भी किया है। इसमें ‘मेहंदी विद करण’ की रस्म है जिसमें वे उसी तरह के सवाल-जवाब करते हैं जैसे ‘कॉफी विद करण’ में। हो सकता है कि इस फिल्म के बाद करण का यह दूसरा व्यवसाय भी चल निकले और पैसे वालों के यहां ‘मेहंदी विद करण’ की रस्म भी लोकप्रिय हो जाए। -
पंकज ने अपनी दमदार परफार्मेंस से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज भी उनकी अनिभय पारी थमी नहीं है।
