-
आज हमारे बीच ताउम्र गीतों के संगीतकार खय्याम नहीं रहे। 18 फरवरी 1927 में पंजाब में जन्मे खय्याम का सफर लंबी बीमारी के बाद 19 अगस्त रात 9:30 बजे थमा और वह हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए। खय्याम के निधन के बाद पीएम मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, लता मंगेशकर सहित तमाम जानी-मानी हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। खय्याम के जाने से हिंदी सिनेमा को एक बड़ा झटका लगा है जिन्होंने इंडस्ट्री को दिल छू जाने वाले संगीतों से सराबोर किया था। मैं पल दो पल का शायर हूं, मोहब्बत बड़े काम की चीज है, आजा रे आजा आजा मेरे दिलवर आजा, इन आंखों की मस्ती में, ऐ दिल-ए-नादान जैसे कई एवरग्रीन गीत खय्याम की ही देन हैं। ये वो गीत हैं जिनकी बदौलत खय्याम ने हिंदी सिनेमा में अपनी अनोखी पहचान बनाई थी। खय्याम पंजाब से मुंबई आए तो थे हीरो बनने लेकिन बाद में वह संगीतकार बन गए। यह प्रतिभा उनके अंदर छिपी हुई थी जिसे पहचान मुंबई में मिली। खय्याम के बारे में ऐसी तमाम बाते हैं जिनसे आप अंजान हैं। तो आइए डालते हैं खय्याम के सफर पर एक नजर। (All Pics- Express Archive)
-
खय्याम को बचपन से ही संगीत से लगाव था। वह अपनी पढ़ाई के दौरान ही संगीत सीखने दिल्ली आ गए थे। उस दौरान उनके माता-पिता उन पर अपनी शिक्षा पूरी करने पर जोर देते थे जबकि खय्याम की रुचि संगीत में थी। चूंकि पढ़ाई में खय्याम की ज्यादा रुचि नहीं थी इसलिए बाद में वह लाहौर जा पहुंचे, जहां पर उन्होंने मशहूर गुलाम अहमद चिश्ती से संगीत सीखा जो कि बाबा चिश्ती के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने चिश्ती से 6 माह तक ट्रेनिंग ली। खय्याम को महज 17 साल की उम्र में संगीत की बेहतर समझ हो चुकी थी।
-
संगीत के अलावा खय्याम हीरो बनने का सपना भी देखते थे जिसके लिए वह लाहौर गए ताकि उन्हें किसी फिल्म में अभिनय मिल जाए। हालांकि बहुत जल्द उन्हें समझ आ गया कि उनका करिअर म्यूजिक कंपोजिंग के क्षेत्र में ज्यादा बेहतर बन सकता है। इसीलिए उन्होंने बाबा चिश्ती के बाद दिल्ली में पंडित अमरनाथ से भी संगीत की ट्रेनिंग ली।
-
खय्याम की रगों में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून सवार था इसलिए उन्होंने कुछ वक्त ब्रिटिश आर्मी की ओर से बतौर सिपाही बनकर देश को अपनी सेवा दी थी।
-
बहुत कम लोग जानते हैं कि मशहूर संगीतकार ने फौजी बनकर सेकेंड वर्ल्ड वार में अपना अहम योगदान दिया था। बाद में वह 1948 में अपने सपने को साकार करने मायानगरी जा पहुंचे। उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत फिल्म हीर राझां में बतौर म्यूजिक कंपोजर के तौर पर की थी।
-
संगीत की दुनिया सरताज खय्याम ने उमराव जान, बाजार जैसी फिल्मों के हिंदी सिनेमा को अलग पहचान दी।
खय्याम को साल 1961 में रिलीज हुई फिल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें मशहूर कर दिया। -
खय्याम को 'त्रिशूल', 'नूरी', शोला और 'शबनम' जैसी फिल्मों में शानदार संगीत देने के लिये पहचाना जाता है। उन्हें 2007 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला था। खय्याम अपने म्यूजिक के लिए 3 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से नवाजे गए थे और 2011 में उन्हें पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा पद्मभूषण का सम्मान भी मिला था।
-
पिछले साल खय्याम महाराष्ट्र के सीएम द्वारा हृदयनाथ अवॉर्ड से सम्मानित किए गए थे।
-
तस्वीर में खय्याम अपनी पत्नी जगजीत कौर के साथ नजर आ रहे हैं।
