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क्या है ‘संतोष’ की कहानी?
‘संतोष’ एक ऐसी महिला की कहानी है जो उत्तर भारत के एक गांव में रहती है। उसके पति की मृत्यु के बाद, उसे पुलिस कांस्टेबल की नौकरी मिलती है—वही नौकरी जो पहले उसके पति के पास थी। यह अवसर आर्थिक रूप से स्थिरता दिलाने वाला लगता है, लेकिन धीरे-धीरे संतोष खुद को एक गहरे सामाजिक संघर्ष में फंसा पाती है। (Still From Film) -
पुलिस बल में एक महिला के रूप में, उसे न केवल पुरुष-प्रधान व्यवस्था से जूझना पड़ता है, बल्कि जातिवाद, पितृसत्ता और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों का भी सामना करना पड़ता है। जब एक दलित लड़की की हत्या का मामला सामने आता है, तो संतोष को यह समझ में आता है कि न्याय पाना आसान नहीं है। (Still From Film)
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यह केवल अपराध को हल करने की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की गहराई में उतरने की कहानी है जो इन अपराधों को होने देती है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह संतोष को एक पारंपरिक नायिका नहीं बनाती। (Still From Film)
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वह एक जटिल किरदार है, जो कभी-कभी अन्याय के खिलाफ खड़ी होती है, तो कभी इसी अन्यायपूर्ण व्यवस्था का हिस्सा बन जाती है। यह फिल्म हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम इस व्यवस्था में कहां खड़े हैं—क्या हम अन्याय से लड़ रहे हैं या उसकी चुप्पी का हिस्सा बन गए हैं? (Still From Film)
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भारत में बैन, लेकिन दुनिया में सराहना
जहां भारत में सेंसर बोर्ड ने संतोष को “विवादास्पद” बताकर प्रतिबंधित कर दिया, वहीं यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा रही है। इस फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल के Un Certain Regard सेक्शन में जगह बनाई। इसे UK कीओर से ऑफिशियल ऑस्कर एंट्री के रूप में चुना गया। (Still From Film) -
बाफ्टा अवॉर्ड्स में इसे सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म की श्रेणी में नामांकन मिला। नेशनल बोर्ड ऑफ रिव्यू ने इसे 2024 की टॉप पांच अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में स्थान दिया। इतनी वैश्विक सफलता के बावजूद, भारत में इसका बैन होना न केवल विरोधाभासी बल्कि चिंताजनक भी है। (Still From Film)
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शहाना गोस्वामी का दमदार अभिनय
इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली शहाना गोस्वामी ने संतोष के किरदार को जिस तरह से निभाया है, वह इसे और भी प्रभावशाली बनाता है। उन्होंने इस किरदार को चीख-चिल्लाहट और नाटकीयता के बजाय संयम, नजरों की भाषा और चुप्पी के जरिए जिया है। (Still From Film) -
उनकी इस शानदार परफॉर्मेंस के लिए उन्हें एशियन फिल्म अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार मिला। यह किरदार असहज करने वाला है—क्योंकि संतोष सही और गलत के बीच लगातार झूलती रहती है, जो उसे और अधिक वास्तविक बनाता है। शहाना ने खुद कहा कि वे सेंसर बोर्ड के सुझाए गए कट्स से सहमत नहीं हैं, और अब फिल्म की ओटीटी रिलीज़ की उम्मीद कर रही हैं। (Still From Film)
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‘संतोष’ क्यों जरूरी है, और क्यों इसे दबाया जा रहा है?
आज जब भारतीय समाज में असहमति को दबाया जा रहा है, सच्ची कहानियों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, तब संतोष जैसी फिल्में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। यह फिल्म केवल अपराध की गुत्थी नहीं सुलझाती, बल्कि यह दिखाती है कि इन अपराधों को होने देने वाली व्यवस्था कैसी है। (Still From Film) -
यह पुलिस प्रणाली, जातिवाद, और सत्ता के ढांचे को उस रूप में पेश करती है, जैसा वे वास्तव में हैं। यह दर्शाती है कि एक आम नागरिक भी कैसे कभी अन्याय से लड़ सकता है, तो कभी उसी का हिस्सा बन जाता है। संवेदनशील मुद्दों पर बात करने के बजाय, सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को ही रोक दिया। (Still From Film)
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भारतीय सेंसर बोर्ड ने फिल्म को क्यों रोका?
भारतीय सेंसर बोर्ड (CBFC) ने संतोष को पास करने से इनकार कर दिया। कारण बताए गए: 1. इसमें पुलिस बर्बरता का यथार्थ चित्रण किया गया है। 2. इसमें जातिगत भेदभाव और सत्ता के दमनकारी स्वरूप को उजागर किया गया है। 3. फिल्म महिलाओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को दिखाती है। (Still From Film) -
बोर्ड ने इतनी ज्यादा कटौती सुझाई कि फिल्म की पूरी आत्मा ही नष्ट हो जाती। इसके चलते निर्देशक संध्या सूरी को फिल्म को वापस लेना पड़ा। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वही सेंसर बोर्ड पुलिस हिरासत में मुठभेड़ दिखाने वाली फिल्मों को पास कर देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हमें किस तरह की कहानियां दिखाई जा रही हैं और कौन-सी कहानियां दबाई जा रही हैं। (Still From Film)
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