बंदूक, राइफल या फिर एके 47 जैसे शब्द सुन सबसे पहले मन में क्या ख्याल आता है? अगर बहुत दिमाग भी दौड़ाया जाए तो युद्ध का मैदान, जुर्म की दुनिया, गोलियों की तड़तड़ाहट आपको याद आएगी। लेकिन खेल के मैदान पर अगर बंदूकों का इस्तेमाल होने लगे और जश्न के नाम पर ‘गन सेलिब्रेशन’ को तवज्जो दी जाए तो स्पोर्टिंग स्प्रिट तार-तार हो जाएगी। ऐसा ही रविवार को एशिया कप में भारत बनाम पाकिस्तान मैच में देखने को मिला।
मैच में टॉस जीतकर भारत ने पहले गेंदबाजी का फैसला किया था, पाकिस्तान ने भी एक सधी हुई शुरुआत की और साहिबजादा फरहान ने अर्धशतक ठोका। फरहान ने अक्षर पटेल की गेंद पर छक्का मार अपना पचासा पूरा किया, लेकिन उसके बाद जश्न का जो अंदाज दिखाया, उसने पूरे पाकिस्तान को दुनिया के सामने एक्सपोज कर दिया, उसकी आतंकी सोच को फिर बेनकाब कर दिया। साहिबजादा फरहान ने अपने बल्ले को बंदूक के स्टाइल में पकड़ा और भारतीय खिलाड़ियों पर तान दिया।
इस घटिया हरकत के बाद भी पाकिस्तानी बाज नहीं आए और हारिस रऊफ ने फील्डिंग के दौरान पहले हाथों से जहाज बनाने का इशारा किया और फिर 6-0 दिखाने लगे। क्रिकेट के मैदान पर भी हारिस बेशर्मी के साथ पाकिस्तानी सेना का फर्जी प्रोपेगेंडा चला रहे थे। लगता है कि पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान की सेना ने अभी से ही नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इन लोगों को सिर्फ यूएन में में कश्मीर राग अलाप रोना नहीं है, इन्हें सिर्फ पूरी दुनिया के सामने खुद को एक पीड़ित की तरह पेश नहीं करना है, इन्हें तो अब क्रिकेट के मैदान पर अपने खिलाड़ियों को भी ‘हथियार’ की तरह इस्तेमाल करना है।
अब ऑपरेशन सिंदूर की खीज को कहीं तो निकालना है तो शायद यही तरीका अपनाया जा रहा है। लेकिन फरहान और हारिस ये बात भूल गए कि उनकी ये हरकत दुनिया के सामने पाकिस्तान के ही दोगलेपन को भी उजागर कर रही है। जो पाक खिलाड़ी भारत के साथ मैच खेलने की भीख मांगते रहते हैं, जो लगातार क्रिकेट के जरिए रिश्ते सुधारने की दुहाई देते हैं, उनसे जरा पूछा जाए- क्या बल्ले को बंदूक बनाकर, जहाज के इशारे कर वो ऐसा हासिल कर लेंगे? बात चाहे इंजमाम उल हक की हो, शाहिद अफ्रीदी की हो या फिर शोएब अख्तर की, समय-समय भारत-पाक मैच करवाने की बात ये सभी कर चुके हैं, बिना किसी शर्म के खेल भावना को भी आगे रखने की बात करते हैं।
लेकिन आज इन्हीं पाक खिलाड़ियों से पूछने की जरूरत है- क्या फरहान और हारिस ने जो किया, वो उन्हें सही लगता है? क्रिकेट के मैदान को युद्ध का मैदान बना देना क्या पाकिस्तान की नई पॉलिसी है? क्या नफरत की भावना ही अब पाकिस्तान के लिए नई खेल भावना बन चुकी है? अब इन सवालों के जवाब भी पाकिस्तान देगा, ऐसी उम्मीद करना ही सबसे बड़ी नाउम्मीदी होगी। वैसे सोशल मीडिया पर तो एक और सवाल पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) से पूछा जा रहा है। सवाल तो बड़ा मासूम है, लेकिन इसका जवाब भी वहां से कभी नहीं आने वाला है।
लोगों को याद आ रहा है कि एशिया कप में भारत-पाक का जो पहला मुकाबला हुआ था, तब सूर्य ब्रिगेड ने किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी से हाथ नहीं मिलाया। इस बात से पीसीबी और ACC प्रमुख मोहसिन नकवी इतने नाराज हो गए कि सीधे एशिया कप को ही बहिष्कार करने की बात कर दी। मैच रेफरी एंडी पायकॉफ्ट के खिलाफ भी हाथ धोकर पीछे पड़ गए। अब वहां तो पाकिस्तान की दाल नहीं गली, लेकिन सवाल तो वही है- क्या अब अपने ही खिलाड़ियों के खिलाफ भी पीसीबी एक्शन लेगी, क्या खेल भावना को जिंदा रखने के लिए वो उदाहरण सेट करना चाहेगी?
अब पाकिस्तान जवाब देना चाहे या नहीं, एक बात साफ है- साहिबजादा फरहान, हारिस रऊफ जैसे खिलाड़ी भी आतंकवाद के हमदर्द बने बैठे हैं। जिस तरह से पहलगाम हमले के इन सभी के मुंह में दही जम गया था, अब खेल के मैदान में भी इनकी हरकतों ने साबित कर दिया है कि पाकिस्तानियों के दिमाग में आतंकवाद पूरी तरह घुस चुका है। खेल भावना से इनका कोई लेना देना नहीं है, इन्हें तो बस पाक सेना की कठपुतली बन फर्जी प्रोपेगेंडा चलाना है।
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