आजादी के कई दशक बाद भी भुखमरी खत्म नहीं हुई है। जबकि बीते करीब आठ दशक से देश इस समस्या को खत्म करने का प्रयास कर रहा है। फिर भी पूरी तरह सफलता नहीं मिली है। भले हम विकास के कितने भी दंभ भरें या यह कहें कि हमने तकनीक के मामले में कितनी सफलता हासिल कर ली है। मगर बहुत सारे लोगों के खाली पेट आज भी एक ऐसी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। हालांकि भुखमरी की समस्या से केवल भारत ही नहीं जूझ रहा है, बल्कि दुनियाभर के लिए यह एक वैश्विक समस्या बन गई है।
वैश्विक खाद्य संकट पर 2025 की एक रपट के मुताबिक, दुनिया में 29.5 करोड़ लोग आज भी ऐसे हालात में जी रहे हैं, जहां उनके लिए एक वक्त का खाना भी जुटा पाना मुश्किल है। यह विचारणीय है कि इक्कीसवीं सदी में भी करोड़ों लोग भूखे क्यों जीवन गुजारते हैं? जबकि हर दिन लगभग एक अरब थालियों के बराबर खाद्य सामग्री बर्बाद कर दी जाती है। यह एक सच्चाई है कि जब दुनिया तकनीक, अंतरिक्ष यात्रा और कृत्रिम मेधा (एआइ) के साथ नई ऊंचाइयों को छू रही है, तब भी करोड़ों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है।
वर्तमान समय में प्रत्येक देश विकास के पथ पर आगे बढ़ने का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील देश बनना चाहते हैं, तो वहीं विकासशील देश विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए वहां की सरकारें प्रयास भी करती हैं और विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियां गिनाती हैं। यहां तक कि विकास दर के आंकड़े से यह अनुमान लगाया जाता है कि कोई देश किस तरह विकास कर रहा है और कैसे आगे बढ़ रहा है। जब कोई ऐसा आंकड़ा सामने आ जाए जो यह बताए कि अभी तो देश ‘भूख’ जैसी ‘समस्या को भी हल नहीं कर पाया है, तब विकास के आंकड़े सवालों के घेरे में लगते हैं।
यह कैसा विकास है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को भोजन भी उपलब्ध नहीं है। बड़ा सवाल है कि दुनिया में आधुनिक तकनीक एवं विज्ञान के सहारे जब भुखमरी के आंकड़े उजागर हो सकते हैं, तो ऐसी तकनीक क्यों नहीं विकसित होतीं जो भुखमरी को रोक सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मसले पर गहराई से नजर रखने वाली संस्थाओं, विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकी सहित उच्च स्तर की कई व्यवस्था मौजूद हैं, तो इसके दूरगामी हल के लिए ठोस नीतियां क्यों नहीं तैयार हो पातीं? क्यों नहीं भुखमरी पर नियंत्रण पाया जाता? जाहिर है यह समस्या लगातार गंभीर होती गई है।
हम अब भी दुनिया को भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से छुटकारा दिलाने के लक्ष्य की दिशा में वांछित रफ्तार से काफी पीछे हैं। दुनिया में स्वस्थ आहार तक पहुंच भी एक गंभीर मुद्दा है, जो दुनिया की एक बड़ी आबादी को प्रभावित कर रहा है। साफ है, भूख की समस्या को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
मगर गौर करने वाली बात यह है कि एक ओर घरों में रोज रात का बचा हुआ खाना बासी समझ कर सुबह फेंक दिया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर लाखों लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता। कमोबेश हर विकसित और विकासशील देश की यही कहानी है। दुनिया में पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में से करीब आधा हर वर्ष सड़ कर बेकार हो जाता है।
भारत में भी केंद्र और राज्य सरकारें खाद्य सुरक्षा के लिए तमाम योजनाएं चला रही हैं। मगर इनका पूरा लाभ गरीबों तक अब भी नहीं पहुंच पाता है। यही वजह है कि बड़े पैमाने पर लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा है। यह विडंबना ही है कि देश में अन्न का भंडार होने पर भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार होते हैं। अगर इसके कारणों की पड़ताल करें, तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट तंत्र और भंडारण क्षमता के अभाव जैसे कारक सामने आते हैं।
यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और सरकार इसका हल खोज पाने में असफल रही है। यह ऐसे देश की तस्वीर है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा अमीर लोग रहते है, उनके पास इतना पैसा है कि पूरे देश में खुशहाली लाई जा सकती है, लेकिन गरीब जीने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर सकता है।
फिर भी यहां भुखमरी और गरीबी पर गौर करना जरूरी नहीं समझा जाता। यही वजह है कि सरकार की तमाम नीतियां सवालों के घेरे में आ जाती हैं। यह सरकार के विकास के तौर-तरीकों पर भी सवाल है। यह वस्तुस्थिति आर्थिक प्रगति का दावा करने वाले अब तक के सभी सरकारी दावों पर सवाल खड़ा कर रही है। विकास के इस भयावह असंतुलन को दूर करने के लिए नीतियों और प्राथमिकता में बदलाव की जरूरत है। भारत की यह विरोधाभासी छवि सोचने पर बाध्य कर देती है।
देश में भुखमरी मिटाने पर जितना धन खर्च हुआ, वह कम नहीं है। केंद्र सरकार के प्रत्येक बजट का बड़ा हिस्सा आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए आबंटित किया जाता है, लेकिन अपेक्षित परिणाम दिखाई नहीं पड़ते। ऐसा लगता है कि प्रयासों में या तो प्रतिबद्धता नहीं है या उनकी दिशा ही गलत है। ऐसे में भारत जो वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने का सपना देख रहा है, उसे सबसे पहले भूख पर विजय प्राप्त करनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि देश में एक भी व्यक्ति भूखा नहीं सोए। साथ ही उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी समान रूप से नजर रखी जाए। खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है, जब सभी लोगों को पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्त्वों से युक्त खाद्यान्न मिले।
भूख आज भी दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या है। इसकी व्यापकता हर साल नए आंकड़ों के साथ हमारे सामने आती है, जिससे पता चलता है कि विश्वभर में भूख की समस्या कितनी गंभीर है। ऐसा नहीं है कि दुनिया के कई देशों में इसके लिए जरूरी संसाधनों की कोई कमी है। समस्या इच्छाशक्ति और सबसे ज्यादा आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण की है। आज हर देश विकास के पथ पर आगे बढ़ने का दावा करता है। अल्पविकसित देश विकासशील देश बनना चाहते हैं, तो वहीं विकासशील देश विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं।
इसके लिए उनकी सरकारें प्रयास भी करती हैं और विकास के संदर्भ में अपनी उपलब्धियां गिनाती हैं। यहां तक कि विकास दर के आंकड़े से अनुमान लगाया जाता है कि कोई देश किस तरह विकास कर रहा है और कैसे आगे बढ़ रहा है? ऐसे में जब कोई आंकड़ा यह बताए कि अभी तो देश ‘भूख’ जैसी ‘समस्या को भी हल नहीं कर पाया है, तब विकास के आंकड़े सवालों के घेरे में लगते हैं। यह कैसा विकास है जिसमें लोगों को भोजन भी उपलब्ध नहीं है?