कर्णम मल्लेश्वरी
मुझे खुशी है कि मीराबाई चानू इन दिनों रियो ओलंपिक से पहले काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। अगर वह और ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो अच्छी बात है, लेकिन मैं ऐसा कह कर उस पर दबाव नहीं बनाना चाहती। अगर वह अपने वजन में ओलंपिक ट्रायल के प्रदर्शन को दोहरा देती हैं तो वह भी उपलब्धि होगी और उनका कुल 192 किलो वजन उठाने का प्रदर्शन भी देश को पदक दिलाने के लिए काफी होगा।
ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन होता है। यह खिलाड़ियों के लिए किसी युद्ध से कम नहीं होता। इस दौरान खिलाड़ियों को हर दिन शक्ति प्रदर्शन करना होता है। हर दिन इस बात का रोमांच बना रहता है कि पदक तालिका में कौन ऊपर आया और कौन नीचे लुढ़का।
भारतवासी अपने देश को पदक तालिका में देखकर गर्व का अनुभव करते हैं। ऐसे बड़े आयोजन का निश्चय ही खिलाड़ियों पर भी काफी दबाव रहता है। बस मैं यही उम्मीद करती हूं कि इस दबाव से हमारे खिलाड़ी दूर रहें तभी वे अपना स्वाभाविक प्रदर्शन कर पाएंगे। इसके लिए कोच की भूमिका काफी अहम हो जाती है। कोच विपक्षी खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नज़र रखने के साथ ही अपने खिलाड़ी के लिए रणनीति बनाता है जो कई बार कारगर होती है और कई बार उसका नुकसान भी खिलाड़ियों को उठाना पड़ता है।
मुझे वर्ष दो हजार के सिडनी ओलंपिक में इसी रणनीति का नुकसान उठाना पड़ा था। तब पहले दो स्थान पर रहने वाली खिलाड़ियों के शरीर का वजन मुझसे अधिक था। कोच ने मुझे क्लीन एंड जर्क के आखिरी प्रयास में 137 किलो वजन उठाने का निर्देश दिया जबकि सोने के पदक के लिए इतना वजन उठाने की जरूरत नहीं थी। ओलंपिक जैसे बड़े आयोजन में किसी भी खिलाड़ी पर जिस तरह का दबाव होता है, उसे समझा जा सकता है। अगर मेरे लिए क्लीन एंड जर्क में 137 की जगह 135 किलो वजन का लक्ष्य भी रखा जाता तो मेरा स्वर्ण पदक आ जाता। इसका मुझे आज तक दुख है। मैं कुल 240 किलो वजन के साथ कांस्य पदक जीत पाईं। हालांकि इसे भी बहुत बड़ी उपलब्धि माना गया क्योंकि मुझे ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव मिला, लेकिन अगर उस समय थोड़ी सूझबूझ दिखाई गई होती तो वह मेरा कांसे का पदक सोने में बदल सकता था। इसलिए मैं मौजूदा प्रशिक्षकों से यही कहूंगी कि वे सूझबूझ के साथ अपने खिलाड़ियों के लिए रणनीति बनाएं क्योंकि थोड़ी सी चूक काफी महंगी पड़ सकती है।
बाकी पुरुषों में एस. सतीश 77 किलो वजन में अपनी चुनौती रखेंगे। मुझे उनसे पदक की उम्मीद नहीं है लेकिन अगर उन्होंने अपने राष्ट्रीय रेकॉर्ड में और सुधार कर लिया तो वह भी काफी बड़ी उपलब्धि होगी। दरअसल ओलंपिक एक ऐसा आयोजन होता है जहां आप पहले से कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते। यह आयोजन चार साल में एक बार होता है। पुराने खिलाड़ी कैसा प्रदर्शन करेंगे, उनके बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन इन चार वर्षों में काफी नए खिलाड़ी आ जाते हैं। कई बार जिनसे उम्मीद कम होती है, वही चमक जाते हैं। ऐसे उलटफेर ही ओलंपिक के आयोजन में चार चांद लगा देते हैं।
(जैसा कि मनोज जोशी को बताया)
दबाव से दूर रहें खिलाड़ी
भारतवासी अपने देश को पदक तालिका में देखकर गर्व का अनुभव करते हैं। ऐसे बड़े आयोजन का निश्चय ही खिलाड़ियों पर भी काफी दबाव रहता है। बस मैं यही उम्मीद करती हूं कि इस दबाव से हमारे खिलाड़ी दूर रहें तभी वे अपना स्वाभाविक प्रदर्शन कर पाएंगे। इसके लिए कोच की भूमिका काफी अहम हो जाती है। कोच विपक्षी खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नज़र रखने के साथ ही अपने खिलाड़ी के लिए रणनीति बनाता है जो कई बार कारगर होती है।