एस जयशंकर हों या फिर हरदीप पुरी। इनके अलावा भी नौकरशाही के बहुत से नाम हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद बीजेपी या दूसरे किसी राजीनितक दल से जुड़े। सभी ने राजनीतिक तौर पर अपने भविष्य को संवारा। किसी को कहीं से भी कोई दिक्कत नहीं हुई। ना बीजेपी और ना ही कांग्रेस समेत कोई दल। अलबत्ता केंद्र सरकार को इस बात से बेहद एलर्जी है कि कोई नौकरशाह सेवानिवृत्ति के बाद किताब न लिखने पाए।

सरकार ने पेंशन रूलों में बदलाव करके इस बात को सुनिश्चित कर लिया कि कैसे रिटायरमेंट के बाद कोई अधिकारी सोच समझ कर लिखे। खासतौर पर, वह अधिकारी किसी इंटेलीजेंस या सुरक्षा संबंधित संस्थान से रिटायर हुआ हो। केंद्र सरकार ने उनके लिए नियम तय कर दिए हैं। रिटायर होने वाले सरकारी कार्मिक लेख या किताब अपनी मर्जी से नहीं प्रकाशित कर सकते हैं।

किताब प्रकाशित करने के लिए उन्हें अपने संस्थान से पूर्व मंजूरी लेनी होगी, जहां से वे काम करके रिटायर हुए हैं। यह नोटिफिकेशन मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक ग्रीवेंस एंड पेंशन के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने जारी किया है। अगर रिटायरमेंट के बाद वह अंडरटेकिंग की शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो उनकी पेंशन रोकी जा सकती है।

सूत्र कहते हैं कि नौकरशाह अक्सर संवेदनशील मुद्दों से जुड़े होते हैं। उनके पास तमाम ऐसी जानकारियां भी होती हैं जो सार्वजनिक हो जाएं तो सरकार के लिए बखेड़ा भी खड़ा कर सकती हैं। या फिर राजनीतिक भूचाल ला सकती हैं। लिहाजा बहुत सोचसमझकर ही नए नियमों को गढ़ा गया। विगत में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं जब किसी शख्स ने किताब लिखी और उसके बाद बहुत से लोगों को परेशानी हुई।

द पॉलिएस्टर प्रिंस, हमीश मैक्डॉन्डलः 1998 में छपी यह किताब धीरूभाई अंबानी की बायोग्राफी थी। इस किताब को फेमस ऑस्ट्रेलियन जर्नलिस्ट हमीश मैक्डॉन्डल ने लिखा था। इसमें अंबानी के सरकार में प्रभाव को बताने की कोशिश की गई है। जिस कारण अंबानी परिवार की इमेज खराब करने के इल्जाम में इस किताब को बैन कर दिया गया।

जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडीपेंडेंस: जसवंत सिंह की लिखी किताब जिन्ना: इंडिया-पार्टिशन-इंडीपेंडेंस में मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर नरम रवैय्या अख्तियार किया गया था, साथ ही ये भी लिखा था वो देश टूटने के जिम्मेदार नहीं है। इस किताब में जिन्ना से ज्यादा जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।

द प्राइज ऑफ पॉवर (सेमर हर्श): सेमर हर्श की किताब द प्राइज ऑफ पॉवर में पूर्व पीएम मोरारजी देसाई को सीआईए का एजेंट बताया गया था। किताब में दावा किया गया था कि वो अपना ही पेशाब पीते हैं साथ ही भारत की खुफिया जानकारियां अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ साझा करते हैं। इस किताब पर भारत में बैन लगा दिया गया।