मुसद्दीलाल की हालत इन दिनों खराब है। अनमना, घबराया, चौंकन्ना और डरा हुआ-सा दीखता है। न खाने की सुध न ढंग से कपड़े पहनने की फुरसत। सदैव एक तनाव-सा बना रहता है। उसकी स्थिति इन दिनों पागलों की-सी है। इन सबके मूल में कारण देश में क्रिकेट के खेल का चलना है। मुसद्दी हर किसी से पूछता फिरता है-‘क्यों भाई क्या स्कोर चल रहा है?’
जब यही प्रश्न एक दिन मुसद्दीलाल ने मुझसे कर लिया तो मैंने उसे समझाया-‘इससे बढ़िया तो यह रहे कि तुम एक पाकेट रेडियो अपने साथ रखो।’
अपनी जेब से छोटा-सा रेडियो निकालकर मुझे दिखाते हुए मुसद्दी बोला-‘रेडियो तो मेरे पास है यार। मगर यह स्साला साब का बच्चा है न, कई बार टोक चुका है और फिर अंत में इसके सेल निकालकर रख लिए।’ इतनी-सी बात बताते हुए भी मुसद्दी के चेहरे पर गुस्से के भाव थे।
मैंने कहा -‘सच! मुसद्दी, ऐसे में आॅफिस का साब बीमार हो जाए।’
‘सही है, सन्निपात हो जाए। मरदुआ स्वयं कमेंट्री सुनता रहता है और आॅफिस के स्टॉफ को सुनने से रोकता है। कौन समझाए उसे कि इस देश की प्रतिष्ठा दांव पर लग रही है। भोंदू है पूरा।’ मुसद्दी अब भी गुस्से में था।
‘तुम्हारी क्या हालत हो रही होगी इस समय मुसद्दी? तेरा दर्द तो तू ही जाने।’ अपनी वाणी में अत्यंत सहानुभूति का पुट लगाए हुए मैंने उससे पूछा।
इतना सुनते ही तो मुसद्दी खुल पड़ा -‘क्या बताऊं भाई, उसे इसने खा लिया और घर की तो कुछ पूछो ही मत। पूरा कबाड़खाना है। जरा रेडियो हाथ में लिया नहीं कि श्रीमती का पारा आसमान छूने लगता है। कहेंगी, सब्जी लाओ, चक्की से आटा लाओ, बच्चों को पढ़ाओ, हाथ-मुंह धो लो, मकान के किराए का इंतजाम करो। उसे सारी बातें तब ही सूझती हैं जब मैं कमेंट्री सुनता हूं। सही बताऊं, दो रेडियो पहले उसके गुस्से को समर्पित हो चुके हैं। यह तो तीसरा है। इतना कहकर वह मुझसे बोला -‘जरा मालूम तो करो यार, क्या स्कोर चल रहा है?’
मैं किसी से कुछ पूछंू इससे पहले तो मुसद्दी ने एक सज्जन से पूछ लिया-‘ क्यों भाई साहब! क्या स्कोर चल रहा है?’
शायद यह सज्जन स्कोर, कमेंट्री और क्रिकेट तीनों से अनभिज्ञ थे, उन्होंने मुसद्दी का व्यंग्य अपने घर के प्रतिवर्ष बढ़ने वाले बच्चों के स्कोर की ओर समझा, इसलिए वह घूरते हुए बोले -‘आपको क्या आपत्ति है?’
‘आपत्ति किस बात की भाई! स्कोर बताने में तो आपको भी किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह तो राष्ट्रीय कार्यक्रम है।’
‘अरे लल्लू, मुझे क्या समझता है। मैं इमरजैंसी में ही इस राष्ट्रीय कार्यक्रम को नहीं अपना सका तो अब क्या अपनाऊंगा और सुनो, घर में कुल सात बच्चे हैं, कर लो, जो कुछ करना है।’ सज्जन इतने उत्त्ोजित हो चुके थे कि मुसद्दी को झुंझलाहट आ गई। वह भी गुस्से में चीखा -‘क्या तुम बता सकते हो इसमें कोई छक्का या चौका भी शामिल है क्या?’
छक्का और चौका भी सज्जन की समझ से परे था। बोले -‘क्या होता है यह छक्का और चौका, तुम्हारा भेजा तो खराब नहीं है लाला ! गृहस्थी में फंसोगे तब पता चलेगा।’ गृहस्थी का नाम सुनते ही मुसद्दी के मुंह मे कड़वाहट भर गई। उसे अपने चौके का स्मरण हो गया। मेरी ओर मुखातिब होकर मुसद्दी बोला -‘देखा हाल, इसीलिए तो देश का विकास नहीं हो रहा है। सही मायने में तो जिन दिनों यह खेल शुरू हो, तब सरकारी स्तर पर अवकाश की व्यवस्था होनी आवश्यक है। मैं अपनी बताऊं, मैं साल भर छुट्टी लेने में इसीलिए कजूंसी बरतता रहता हूं कि पता नहीं क्रिकेट कब शुरू हो जाए।’
‘इसमें दिक्कत यह भी तो है मुसद्दी भाई, यह खेल अकसर दिसंबर में शुरू होता है और तब तक हमारी सीएल अंतिम सांसें लेने लगती हैं। असलियत में यह खेल के दर्शकों और कमेंट्री के श्रोताओं के साथ अन्याय है।’ मैंने मुसद्दी की भावनाओं को तूल दिया।
‘कैसा रहे अगर श्रोता और दर्शक मिलकर अपनी यूनियन बना लें और अपनी मांग फिर सरकार के सामने रखें। क्योंकि बिना सामूहिक प्रयास के आजकल कुछ होता भी तो नहीं। भैया जमाना प्यौर यूनियनबाजी का है।’ मुसद्दी भावनाओं में बहा जा रहा था।
‘और कैसा रहे, अगर यूनियन का प्रेसीडेंट तुम्हें बना दिया जाए?’
मुसद्दी का चेहरा खिल उठा, वह अपने दोनों कंधे उचकाकर बोला -‘मेरा प्रेसीडेंट बनना देश के क्रिकेट-प्रेमियों के सर्वथा हित में होगा। सबसे पहला काम मैं अपने दर्शक और श्रोताओं की संख्या में वृद्धि करूं जो लोग इसके बारे में नहीं समझते हैं, उनके लिए पार्ट टाइम कोर्सेज चलवाने की योजनाएं शुरू करवाऊं। सरकारी स्तर पर रेडियो सेट की सुविधाएं प्रेमियों को सुलभ करवाऊं। क्रिकेट के दिनों में कार्यालय का कामकाज ठप्प करा दूं। सिर्फ मेजों पर कमेंट्री सुनी जाती रहे और तो और, पत्नियों को मायके की राह दिखाऊं।’
मैंने मुसद्दी को भावनाओं में बहने से रोका और कहा-‘लेकिन इससे तो सुखी दाम्पत्य जीवन में जहर भी घुल सकता है।’
‘घुले तो घुले, या तो क्रिकेट का विकास कर लो या सुखी दाम्पत्य जीवन भोग लो। सच है, अभी लोग क्रिकेट को ‘सीरियसली’ नहीं ले रहे हैं और उससे होने वाले फायदों से अनभिज्ञ हैं।’ मुसद्दी बोला।
‘वैसे इसका मूल फायदा क्या है?’
‘फायदा, तुम भी अभी फिसड्डी हो। अरे भाई, क्रिकेट के बारे में जानकारी रखना और कमेंट्री सुनना लेटेस्ट फैशन है। फिर यह तो समझने की बात है कि लेटेस्ट फैशन हमारी प्रगतिशीलता का द्योतक है।’ मुसद्दी ने मुझे बिल्कुल व्यावहारिक रूप से समझाना चाहा। लेकिन तभी मुसद्दी को दौरा आया और वह चीखा- ‘लेकिन मुझे अभी बताओ, क्या स्कोर चल रहा है ?’
मुसद्दीलाल की चीख से दफ्तर में सन्नाटा छा गया और दफ्तर का साहब निकल आया। उसने मुसद्दी की चीख को पूरा सम्मान दिया और पास आकर बोला- ‘चिल्लाया मत करो मुसद्दी, भारत के चार पर चवालीस चल रहे हैं।’ मुसद्दी का चेहरा लटक गया और बॉस फिर अपने चैंबर में लौट गया। मैं मुसद्दीलाल के क्रिकेट-पे्रम पर नतमस्तक हो गया। मेरी आंखें श्रद्धा से श्रद्धांजलि रूप में मुसद्दीलाल के सामने झुक गई। ०