दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘मेरिट के जरिए कटआॅफ से छुटकारा’ वाले नए प्रयोग को लेकर कॉलेजों के रवैए ने इसकी साख पर बट्टा लगा दिया। कॉलेजों की सुस्ती से यह प्रयोग नाकाम रहा। कई कॉलेजों ने समय पर अपने यहां बची सीटों का ब्योरा जारी नहीं किया। छात्रों में उलझन है। इसलिए डीयू को शुक्रवार को दाखिले का समय बढ़ाने की घोषणा करनी पड़ी। डीन छात्र कल्याण ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि कई कॉलेज विश्वविद्यालय के दिशानिर्देश का पूरी तरह पालन नहीं कर सके। सूचना है कि कई कॉलेजों ने अपने यहां बची सीटों का ब्योरा समय पर जारी नहीं किया। लिहाजा 30 जुलाई को भी दाखिले लेने के निर्देश दिए गए हैं। बता दें कि इससे पहले 29 जुलाई को दाखिला बंद होना था।
कॉलेजों की स्थिति और चिंताजनक है। दरअसल मेरिट से दाखिले के प्रयोग के जरिए पांच कटआॅफ के बाद दाखिला प्रक्रिया से विश्वविद्यालय के हाथ खींचने वाले इस निर्णय ने केंद्रीकृत दाखिले की संकल्पना पर बट्टा लगा दिया है। साथ ही कॉलेजों का हस्तक्षेप बढ़ने से छात्रों की सिरदर्दी भी बढ़ी है। कई कॉलेजों ने बची सीटों का ब्योरा अपनी वेबसाइट पर समय पर नहीं डाला। इससे छात्र भटक रहे हैं और ऊहापोह की स्थिति में हैं।
तय समय तक कई कॉलेजों ने मेरिट लिस्ट जारी नहीं की। कॉलेजों में छात्र दाखिला लेने पहुंचे ही नहीं। दाखिला प्रक्रिया में लगे कॉलेज के अधिकारियों का कहना है कि शायद जानकारी का न मिलना इसका एक कारण हो। क्योंकि जब छात्र-अभिभावक वेबसाइट खंगाल रहे थे तो मेरिट लिस्ट की सूचना गायब थी और जब सूचना अपलोड की गई तो तब तक शायद छात्र निराश हो चुके थे! बहरहाल वजह जो हो, आंकड़े बताते हैं कि कॉलेजों में दाखिले लेने बहुत कम छात्र पहुंचे।
मसलन अरबिंदो कॉलेज में मेरिट की करीब 100 खाली सीटें खाली हैं। कमोबेश यही स्थिति दूसरे कॉलेजों में भी नजर आई। नॉर्थ कैंपस के हंसराज कॉलेज में कला व कॉमर्स की करीब सवा सौ खाली सीटों पर मात्र छह-सात ही दाखिले हुए। इसी तरह हिंदू कॉलेज में करीब 120 खाली सीटों पर करीब 20-25 दाखिले हुए हैं। लक्ष्मीबाई कॉलेज में मेरिट लिस्ट निकालने के बाद बीकॉम में तीन व बीए में दो ही दाखिला हुआ है। कॉलेज आॅफ वोकेशनल स्टडीज में सामान्य की 9 सीटों पर दो व आरक्षित कोटे की 260 सीटों पर सात ही दाखिले हुए। रामानुजन कॉलेज में करीब 100 खाली सीटों पर 5 से 6 दाखिले हुए हैं।
यहां यह बताना गैरवाजिब नहीं है कि इनमें से कोई कॉलेज ऐसा नहीं है जहां पांच हजार से ज्यादा छात्रों ने आवेदन नहीं किया हो। कॉलेजों को अब दूसरी मेरिट लिस्ट जारी करनी होगी। सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? खाली सीटों का ब्योरा कॉलेजों की वेबसाइटों पर भी घोषित किए जाने में आनाकानी क्यों हुई? बची सीटों की जानकारी छात्रों के लिए सबसे अहम थी। अगर कॉलेज हाईटेक नहीं हैं या कर्मचारी की कमी आदि की समस्या से जूझ रहे हैं तो विश्वविद्यालय को और समय देना चाहिए था। कटआॅफ से छुटकारा के लिए ‘मेरिट’ से दाखिला विश्वविद्यालय के दावे पर खरा नहीं उतरा। एक तरफ दाखिला पाने वालो की लंबी कतार है तो दूसरी तरफ सीटें खाली रह जा रही हैं।