छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ देश की पहली महिला कोबरा कमांडो उषा किरन चट्टान की तरह खड़ी हैं। केमेस्ट्री ग्रेजुएट उषा का सीआरफी में आने का सफर बेहद दिलचस्प है। कोई सोच सकता है कि केमेस्ट्री से ग्रेजुएट एक लड़की पुरुषों के बीच नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नकस्लियों के खिलाफ खड़ी होंगी।
उषा कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) की सबसे युवा और पहली महिला सदस्य हैं। उषा अपने दादा और पिता के बाद सीआरपीएफ में शामिल होने वाली परिवार की तीसरी पीढ़ी का हिस्सा हैं। साफ है कि सेना में शामिल होने का जुनून शुरू से उनके खून में ही था। उन्होंने अपने इस पूरे सफर की जानकारी सबके सामने रखी है।
उषा ने सीआरपीएफ में शामिल होने पर कहा है कि ‘कोबरा में शामिल होने का फैसला उनका खुद का था। सीआरपीएफ अकादमी कादरपुर गुरुग्राम में मेरे मूल प्रशिक्षण के दौरान ही मैंने इसमें शामिल होने का मन बना लिया था। अकादमी में ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैंने छत्तसीगढ़ में ही काम करने पर ध्यान केंद्रित किया और मुझे नक्सल प्रभावित बस्तर में काम करने का मौका भी मिला। वहां एक साल तक काम करने के दौरान मुझे सीआरपीएफ के काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन के बारे में जानकारी हासिल हुई। इसके साथ ही कोबरा में किस तरह से काम होता है इसकी भी जानकारी हासिल हुई। जिसके बाद ही मैंने इस महत्वपूर्ण कमांडो फोर्स से जुड़ने का मन बनाया।’
वह आगे बताती हैं ‘मेरे पिता मुझे गणतंत्र दिवस समारोह में हर साल राजपथ पर परेड दिखाने के लिए ले जाते थे। परेड में सेना की वर्दी मुझे काफी आकर्षित करती थी। लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई मुझे सेना के कामकाज के बारे में पता चलने लगा। मुझे यह भी पता लगा कि सेना को सिर्फ परेड ही नहीं बल्कि कई तरह के बलिदान देने होते हैं। उस दौरान सेना के जवान जो गर्व महसूस करते थे वह मैं भी महसूस करने लगी थी।’
कोबरा बटालियन में शामिल होना किसी भी महिला के लिए चुनौतीपूर्ण है। मैंने बहुत कड़ा फैसला लिया क्योंकि कोबरा एक 10 बटॉलियन कमांडो फोर्स होती है जिसमें कोई महिला जवान नहीं होती। लेकिन मेरा सौभाग्य है कि मुझे अच्छे सीनियर मिले हैं जिन्होंने मेरी काफी मदद की।’
कोबरा कमांडो की ट्रेनिंग पर वह कहती हैं ‘कोबरा एक स्पेशल कमांडो फोर्स है और इसमें हमें दूसरे कोबरा कमांडों ग्रुप के साथ काम करना होता है। ऐसे में हमें उनके जैसी ही फिटनेस की जरूरत होती है। महिला होने की वजह से आप ट्रेनिंग के दौरान टास्क में अतिरिक्त समय नहीं मांग सकती। मैं इस फोर्स में महिलाओं के लिए एक उदाहरण पेश करना चाहती हूं इसलिए मैं किसी भी मोर्चे पर फेल नहीं होना चाहती।’
टीम को कर रही हैं लीड
बता दें कि उषा बस्तर में नक्सल विरोधी अभियान में अपनी टीम की अगुआई कर रही हैं। शुरुआत में उनकी लीडरशिप पर पुरुष जवानों ने संदेह किया। लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने उनकी क्षमताओं के बारे में जाना तो उनका यह संदेह भी दूर हो गया।
कोबरा कमांडो घने जंगलों में रहकर नक्सलियों से निपटने और अपनी जांबाजी के लिए जाने जाते हैं। कोबरा कमांडो का काम नक्सलियों का काम तमाम करना है। यह कमांडो नक्सलियों पर चीते जैसी चाल, बाज जैसी नजर और कोबरा जैसा आक्रमण करते हैं।