सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून के तहत सिर्फ पुरुषों ही नहीं बल्कि महिलाओं पर भी मुकदमा चलाने को मंजूरी दी है। कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत अब कोई महिला किसी दूसरी महिला के खिलाफ भी घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा सकती है। साल 2005 के घरेलू हिंसा कानून की धारा 2(Q) के तहत सिर्फ ‘जवान पुरुष’ के खिलाफ ही कोई मुकदमा दायर किया जा सकता था । भले ही किसी महिला ने दूसरी महिला को प्रताड़ित किया हो। जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर एफ नरीमन की खंडपीठ ने इसे परिभाषित करते हुए टिप्पणी की कि इस कानून के तहत दूसरी महिला पर भी मुकदमा चलाया जा सकेगा जिसने किसी महिला को प्रताड़ित किया है।

पीठ ने कहा कि यदि सीमित व्याख्या की जाए तो जिस उद्देश्य के लिए इस अधिनियम को लागू किया गया है, वह पूरा नहीं हो पाएगा। पति या अन्य पुरुष सदस्यों के लिए इस उपाय को असफल करने के लिए बेहद आसान तरीका होगा कि वे परिवार की महिला सदस्य को हिंसा के लिए भड़काएंगे। अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए अदालत ने कहा कि परिजनों में न केवल परिवार के पुरुष सदस्य शामिल हैं बल्कि महिलाएँ भी इसके दायरे में आती हैं। पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों में पत्नी या विवाह जैसी प्रकृति में रह रही किसी महिला की शिकायत या आवेदन दायर करते समय परिवार की महिला सदस्यों को भी ध्यान में रखा गया था।

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शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, “अधिनियम की धारा 2 (Q) में उल्लिखित ‘जवान पुरुष’ शब्द को हम काटते हैं और उसकी जगह ‘व्यक्ति’ रखते हैं क्योंकि यह शब्द महिला और पुरुष में भेदभाव करता है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 सभी को समानता का अधिकार देता है, इसलिए इस शब्द को फिर से परिभाषित किया जाता है। कोर्ट ने ये फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट के सैल 2014 के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने महिला के खिलाफ घरेलू हिंसा के तहत मुकदमा दायर करने पर रोक लगा दी थी।

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