लोकसभा और राज्यसभा में वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा हुई। चर्चा के दौरान राज्यसभा में सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि यह गीत बंगाल में अकाल की पृष्ठभूमि में लिखा गया था। उन्होंने कहा कि आनंदमठ की कहानी दमन के खिलाफ विद्रोह की है और जहां कहीं भी अत्याचार होता है, वहां विद्रोह होगा। सिब्बल ने कहा कि वंदे मातरम हमारा दमन के विरुद्ध अधिकार है। जब भी वंदे मातरम का जिक्र होता है, तब आनंद मठ की भी चर्चा होती है। लोग जानना चाहते हैं कि आनंदमठ क्या है और इसे क्यों लिखा गया था?
आनंद मठ के रचयिता हैं बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
आनंद मठ के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय हैं और इसी से वंदे मातरम गीत को भी लिया गया है। आनंदमठ को 1882 में लिखा गया था, जो एक बांग्ला उपन्यास है। यह उपन्यास 1770 के बंगाल अकाल और संन्यासी विद्रोह पर आधारित है। इसी आनंद मठ उपन्यास में प्रसिद्ध वंदे मातरम राष्ट्रगीत भी है।
आनंद मठ की हुई है आलोचना
हालांकि आनंद मठ उपन्यास की आलोचना भी हुई है। आलोचकों का मानना था कि इस उपन्यास में मुस्लिमों को देश के दुश्मन के रूप में चित्रित किया गया है जबकि संन्यासी धर्म को मुक्ति के मार्ग के रूप में पेश किया गया है। कई आलोचक यह भी कहते हैं कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय एक ब्रिटिश कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अंग्रेजों की आलोचना कम की लेकिन मुस्लिम नवाबों के पतन के कारण मुसलमान को मुख्य रूप से दुश्मन के रूप में अधिक दिखाया।
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बंगाल में आया था अकाल
सन 1773 में भारत के पूर्वी हिस्से यानी बंगाल में भयंकर अकाल का दौर था। उस वक्त साधु-संन्यासी अकाल से जूझ रहे थे। भुखमरी और महामारी के कारण 10 लाख लोगों की जान जा चुकी थी। इसके बाद बंगाल के संन्यासियों ने अत्याचार के विरुद्ध हाथों में हथियार थाम लिए। हथियार थामने का एक और कारण था, क्योंकि अंग्रेजों ने 150 संन्यासियों को बिना किसी कारण के एक ही दिन में फांसी पर चढ़ा दिया था। इस घटना को इतिहास की सबसे क्रूर घटनाओं में से एक माना जाता है।
आनंद मठ के पहले खंड में बंगाल के अकाल की कहानी
इसके बाद संन्यासी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं और यह युद्ध में बदल जाता है। इसे अंग्रेजों के विरुद्ध पहले जन आंदोलन के रूप में भी देखा जाता है। इसी घटना को लेकर बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने एक उपन्यास लिखा, जिसका नाम रखा गया आनंद मठ। आनंद मठ के पहले खंड में बंगाल के अकाल से ही कहानी शुरू होती है। जब लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे थे और अंग्रेज लगान का दबाव बनाकर उन्हें प्रताड़ित कर रहे थे, उस समय के दृश्य को शब्दों में चित्रित किया गया है।
जब अंग्रेज संन्यासियों पर अत्याचार करते हैं और लोगों को प्रताड़ित करते थे, तब दो संन्यासी भवानंद और जीवानंद जो प्रधान सत्यानंद के शिष्य थे, वह आनंद मठ में रहकर देश सेवा में लगे थे और आंदोलन को चला रहे थे। इसी मठ में अंग्रेजों से लूटे गए माल से प्रताड़ित लोगों के रहन-सहन की व्यवस्था की जाती थी। पढ़ें वन्दे मातरम: गुलामी के खिलाफ अलख जगाने वाले गीत का इतिहास
