भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो ने गुरुवार को अपने सातवें नेविगेशन सेटेलाइट IRNSS-1G का सफलतापूर्वक टेस्‍ट किया। इसे PSLV-C33 लॉन्‍च व्‍हीकल के जरिए श्रीहरिकोटा स्‍थ‍ित केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। भारत द्वारा महज सात सेटेलाइट के जरिए नेविगेशन सिस्‍टम बनाना एक बड़ी कामयाबी है। भारत अब उन पांच देशों में शामिल हो गया है, जिनका अपना दिशासूचक सिस्‍टम या जीपीएस है।

सवाल यह उठ रहा है कि आखिर भारत को खुद का जीपीएस बनाने की क्‍या जरूरत थी? दुनिया की सबसे मशहूर अमेरिकी नेविगेशन प्रणाली GPS के अलावा रूस के नेविगेशन सिस्‍टम GLONASS और चीन का BeiDou चलन में है। बता दें कि इन तीनों पर ही वहां की सरकार और सेना का नियंत्रण है। रक्षा क्षेत्र में खुद का नेविगेशन सिस्‍टम भारत के लिए एक मील का पत्‍थर साबित होने वाला है। 1999 में कारगिल की जंग के बाद इसरो ने 1420 करोड़ का यह प्रोजेक्‍ट शुरू किया था। दरअसल, जंग में भारतीय सुरक्षा बलों को अमेरिकी जीपीएस सिस्‍टम का एक्‍सेस नहीं मिला। इसकी सहायता से वे जंग वाले इलाके में दुश्‍मनों के लोकेशन की सटीक लोकेशन के अलावा कई अन्‍य अहम जानकारी हासिल कर सकते थे। हालांकि, अमेरिका ने इसकी इजाजत नहीं दी, जिसके बाद खुद का नेविगेशन सिस्‍टम बनाने की ओर ध्‍यान गया।

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