Maha Shivratri: इस साल की महाशिवरात्रि बेहद ही खास है और प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के समापन का प्रतीक है। महाशिवरात्रि हिंदू माह फाल्गुन के कृष्ण पक्ष के 14वें दिन मनाई जाती है। यह 26 फरवरी को थी। महाशिवरात्रि का मतलब है शिव की महान रात्रि। यह उत्सव सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों ही तौर पर काफी अहम है। इसको पूरे देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

सबसे लोकप्रिय मान्यता यह है कि इसी रात भगवान शिव ने शक्ति के एक रूप देवी पार्वती से विवाह किया था। शिव मंदिरों को सजाया जाता है और भक्त विवाह के जश्न में पूरी रात जागते हैं। कई हिंदू त्यौहारों में ईश्वरीयता को रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़ दिया जाता है। इसमें भक्त अपने देवताओं के जन्म और विवाह में भाग लेते हैं, लेकिन इसके मतलब के पीचे अक्सर एक गहरा आध्यात्मिक महत्व भी छिपा होता है। इस तरह शिव और शक्ति का विवाह चेतना और जीवन शक्ति का मिलन है।

महाशिवरात्रि को क्या खास बनाता है?

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के चीफ गिरिजा शंकर शास्त्री ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया , ‘महाशिवरात्रि की वह रात है जब शिव ने पार्वती से विवाह किया था, यह कहानी स्वाभाविक रूप से लोकप्रिय है। लेकिन इसके अलावा भी कई अन्य कारण हैं जो इस दिन को खास बनाते हैं।’ शास्त्री ने कहा कि लिंग पुराण में एक संस्करण मिलता है। इसके मुताबिक, यह वह दिन था जब शिव ने ज्योतिर्लिंग का रूप लिया था। लिंग इतना विशाल था कि भगवान ब्रह्मा अपने हंस पर और भगवान विष्णु अपने गरुड़ पर सवार होकर इसके मूल और अंत की खोज करने निकले, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इस तरह शिव असीम हैं। उनका ना तो कोई आरंभ है और ना ही कोई अंत है।

सम-सामयिक- महाकुंभ में गूंज रही है शंख और मंत्रों की ध्वनि

इतना ही नहीं शास्त्री ने दूसरा कारण भी बताया है। उन्होंने कहा कि यह दिन, फाल्गुन कृष्ण पक्ष का 14वां दिन भगवान शिव को बहुत ही प्यारा है और इस दिन उनकी पूजा करने से महान आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। भगवान शिव अपने माथे पर अर्धचंद्र धारण करते हैं, जो महा शिवरात्रि पर दिखने वाले चंद्रमा के समान है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास के रिटायर प्रोफेसर डीपी दुबे ने भी ब्रह्मा और विष्णु द्वारा लिंग की पूजा करने की पौराणिक कथा के बारे में बताया। डीपी दुबे ने कहा, ‘भारत में शिवलिंग की पूजा सिंधु घाटी सभ्यता के समय से होती आ रही है, जैसा कि राजस्थान के कालीबंगन में सिंधु घाटी स्थल पर शिवलिंग की खोज से पता चलता है।’

कश्मीर में महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि कश्मीर की शैव्य परंपरा का एक अहम त्यौहार है। कश्मीर में हिंदुओं की इस त्यौहार के बारे में अपनी अलग मान्यताएं हैं। इस त्यौहार को हर रात्रि कहा जाता है। इसे कश्मीरी में हेराथ कहा जाता है। साथ ही, यह देश के बाकी हिस्सों से एक दिन पहले मनाया जाता है।

कश्मीर के इतिहासकार उत्पल कौल ने बताया, ‘कश्मीर में शिव की पूजा उनके भैरव रूप से जुड़ी हुई है और ऐसा माना जाता है कि अलग-अलग भैरव राज्य की रक्षा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि हेराथ पर शिव एक उग्र रूप में प्रकाश के एक धधकते स्तंभ के तौर पर प्रकट हुए थे और वटुक भैरव और रमण भैरव ने उन्हें शांत करने की कोशिश की थी। इसलिए इस रात उनकी भी पूजा की जाती है। उन्हें बच्चे माना जाता है, इसलिए उन्हें एक शानदार दावत दी जाती है।’

तमिलनाडु में महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि से जुड़ी एक और खास परंपरा तमिलनाडु के चिदंबरम नटराज मंदिर में है । ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिव ने ‘आनंद तांडव’ किया था और इसलिए हर साल महाशिवरात्रि पर मंदिर में एक भव्य नृत्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ में प्रचार से ज्यादा होनी चाहिए थी व्यवस्था पढ़ें पूरी खबर