भारत में इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच जो डिफेंस डील हुई है, उसका हम पर क्या असर पड़ेगा, क्या भारत को इससे परेशान होना चाहिए?
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुई डिफेंस डील पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अब्दुल अजीज अल सऊद और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में दस्तखत किए। शहबाज शरीफ पाकिस्तानी सेना के चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के साथ सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे।
डिफेंस डील में कहा गया है कि दोनों देशों में से अगर किसी के खिलाफ भी आक्रमण होता है तो उसे दोनों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा।
डिफेंस डील को लेकर आ गया विदेश मंत्रालय का बयान, जानिए क्या कहा?
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच यह डील कतर में इजरायल के द्वारा किए गए हमलों के 8 दिन बाद हुई है। भारत ने इसे लेकर कहा है कि वह सऊदी अरब से इस बात की उम्मीद करता है कि वह पारस्परिक हितों और संवेदनशीलता को ध्यान में रखेगा।
बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत को सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुई डिफेंस डील से परेशान होना चाहिए? आइए, इस पर बात करते हैं।
आर्थिक मदद और सैन्य सहायता का संबंध
पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्ते एक-दूसरे की जरूरत के आधार पर भी हैं। सऊदी अरब आर्थिक मदद देती है और पाकिस्तान सैन्य सहायता। पाकिस्तान सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सैन्य प्रयासों में प्रमुखता से शामिल रहा है।
2015 से ही पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ राहिल शरीफ Islamic Military Counter-Terrorism Coalition का नेतृत्व कर रहे हैं। 2018 में पाकिस्तान ने यमन में चल रही लड़ाई में सऊदी अरब की मदद के लिए अपने सैनिकों को भेजा था।
अनुमान है कि सऊदी अरब में पहले से ही पाकिस्तानी सेना के 1,200 से 2,000 जवान तैनात हैं। बदले में पाकिस्तान को सऊदी अरब से आर्थिक मदद मिलती रहेगी। पाकिस्तान को इस बात की उम्मीद है कि भविष्य में अगर कभी उसका भारत से टकराव हुआ तो सऊदी अरब उसका कुछ हद तक समर्थन करे।
क्या है पाकिस्तान-सऊदी अरब के बीच हुआ ‘स्ट्रेटेजी म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट’?
पाकिस्तान की तुलना में सऊदी अरब के साथ भारत की रक्षा साझेदारी अभी शुरुआती दौर में है। अगस्त 2025 में भारत-सऊदी अरब संयुक्त रक्षा सहयोग समिति की सातवीं बैठक में भारत ने सऊदी सशस्त्र बलों को ट्रेनिंग देने की पेशकश की जबकि पाकिस्तान ऐसा कई दशकों से करता आ रहा है।
पिछले कुछ महीनों में भारत और सऊदी अरब के बीच साझेदारी बढ़ी है। जैसे- दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास का होना और इस साल अप्रैल में रक्षा मंत्री स्तरीय समिति की स्थापना। इससे पता चलता है कि दोनों के रिश्ते मजबूत हुए हैं।
तटस्थ रहा सऊदी अरब
इसका फायदा यह हुआ है कि भारत पाकिस्तान के बीच जब-जब संघर्ष की स्थिति आई, सऊदी अरब किनारे हो गया। इसके अलावा कश्मीर में चल रहे भारत के डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट्स में अरब की भागीदारी है। इस साल मई में जब भारत और पाकिस्तान आमने-सामने आ गए थे तब सऊदी अरब ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की तो निंदा की लेकिन ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कोई बयान जारी नहीं किया।
सऊदी अरब के लिए भारत की अहमियत पाकिस्तान से ज्यादा है और भारत के साथ उसकी साझेदारी आर्थिक और रणनीतिक महत्व वाली है। सऊदी अरब के वरिष्ठ अफसरों ने पाकिस्तान के साथ डिफेंस डील होने के बाद भी इस बात को कहा है।
सऊदी अरब से भारत और पाकिस्तान के कैसे हैं रिश्ते?
भारत-पाकिस्तान के संघर्ष के दौरान सऊदी अरब ने जो रुख दिखाया, उससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने का काम किया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच डिफेंस डील होने से दक्षिण एशिया के परिदृश्य पर कोई खास असर पड़ेगा।
(बशीर अली अब्बास Council for Strategic and Defense Research नई दिल्ली में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं।)