देश में हरित क्रांति की शुरुआत करने वाले महान कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) को केंद्र सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया है। वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथ ने देश को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए बड़ा काम किया था। स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल की ऐसी वेरायटी तैयार की थी जिससे न केवल पैदावार में इजाफा हुआ, बल्कि उनके प्रयासों से देश को सूखे से बचाने में भी मदद मिली। 1960 के दशक में भारत समेत पड़ोसी देशों को अकाल की स्थिति से बचाने में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया था।
देश को सूखे से बचाने पर किया था बड़ा काम
वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथ का पूरा नाम मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथ था। उनका जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था। वह कृषि वैज्ञानिक के साथ ही पादप आनुवंशिकीविद (Plant Geneticist) भी थे। उनको 1972 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का महानिदेशक बनाया गया और भारत सरकार के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में 1979 में वह प्रधान सचिव बनाए गए थे। वह योजना आयोग में भी रहे। देश को सूखे से बचाने पर उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया था।
यूरोप और अमेरिका के कई बड़े संस्थानों से जुड़े रहे
अपने करियर की शुरुआत सिविल सेवा से की, लेकिन उनकी रुचि कृषि में थी। इस वजह से उन्होंने इस क्षेत्र में रिसर्च करना शुरू कर दिया। यूरोप और अमेरिका के कई बड़े संस्थानों में उन्होंने अपने रिसर्च से महत्वपूर्ण खोजे कीं और उपलब्धियां हासिल कीं। 1954 में उन्होंने सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Rice Research Institute) कटक में जैपोनिका किस्मों से इंडिका किस्मों में फर्टिलाइजर रिस्पांस के लिए जीन ट्रांसफार्मर करने पर बड़ा काम किया।
उन्होंने इसे “उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने का पहला प्रयास बताया जो अच्छी मिट्टी की उर्वरता और अच्छे जल प्रबंधन का जवाब दे सकती हैं।”
इसकी आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि आज़ादी के बाद भारतीय कृषि बहुत अधिक उत्पादक नहीं थी। वर्षों के औपनिवेशिक शासन ने इसके विकास को प्रभावित किया और देश के पास इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए संसाधनों की कमी थी। हालत यह थी कि भोजन के लिए जरूरी फसलों को भी अमेरिका जैसे देशों से आयात करना पड़ता था।