प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव के लिए तीसरी बार नामांकन दाखिल किया है। इसमें उनके चार प्रस्ताव बनाए गए। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में बैजनाथ पटेल, गनेश्वर शास्त्री द्रविड़, संजय सोनकर और लालचंद कुशवाहा का नाम शामिल है। इससे पहले सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन में प्रस्तावक के हस्ताक्षरों में गड़बड़ी के कारण पर्चा रद्द हो गया अब सवाल है कि आखिर प्रस्ताव कौन होते हैं और नामांकन में इनका क्या काम होता है? क्या प्रस्तावकों के बिना कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकती है। इस रिपोर्ट में इसे विस्तार से समझते है।
कौन होते हैं प्रस्तावक?
प्रस्तावक का अंग्रेजी में अर्थ प्रपोजर होता है। चुनाव में किसी भी उम्मीदवार के नामांकन में इनकी अहम भूमिका होती है। चुनाव में यह शख्स रिटर्निंग ऑफिसर के सामने पेश होते हैं और उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। प्रस्तावक उसी निर्वाचन क्षेत्र के होने चाहिए जहां से उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा होता है। अगर कोई उम्मीदवार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल से है तो उसे न्यूनतम 1 प्रस्तावक की जरूरत होती है। अगर कोई प्रस्तावक गैर मान्यता प्राप्त दल या निर्दलीय चुनाव लड़ता है तो उसे कम से कम 10 प्रस्तावकों की जरूरत होती है।
क्या है इनकी भूमिका?
चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। प्रस्तावक ही बताता है कि यह हमारा उम्मीदवार है और यह इस सीट से यहां से चुनाव लड़ेगा। इनका काम है रिटर्निंग आफिॅसर के सामने अपने उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव देना। इसी कारण से इन्हें प्रस्तावक प्रपोजर कहते हैं।
एक अहम बात जो ध्यान रखना जरूरी है कि प्रास्तावक का उस सीट का निवासी होना अनिवार्य है। प्रस्तावक का नाम उस जगह के वोटर लिस्ट में शामिल होना जरूरी है। प्रस्तावक की संख्या में कम ज्यादा की बढ़ोतरी हो सकती है।
कौन बन सकता है प्रस्तावक?
प्रस्तावक बनने के लिए किसी भी शख्स को कोई डिग्री की जरूरत नहीं पड़ती है। मतलब प्रस्तावक का पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है वो अंगूठा लगाकर भी प्रस्तावक बन सकता है। प्रस्तावक बनने में सबसे अहम बात यह होता है कि उसको उस जगह का निवासी होना जरूरी है और उसका नाम स्थानीय वोटिंग लिस्ट में होना चाहिए। नामांकन के दौरान प्रस्तावकों को अपनी पूरी जानकारी देनी होती है। अगर कोई जानकारी गलत होती है तो उम्मीदवारों का नाम रद्द कर दिया जाता है।