Bohra and Agakhani Muslims: केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 में कई संशोधनों को लेकर एक बिल संसद में पेश कर दिया है। लोकसभा में यह बिल अटक गया है। इस बिल को संयुक्त संसद समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा। लोकसभा स्पीकर जल्द इस पर कमेटी का ऐलान कर सकते हैं। नए बिल में ना सिर्फ कलेक्टरों को कुछ अधिकार दिए गए हैं बल्कि महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। इसके अलावा जिसकी सबसे अधिक चर्चा हो रहा है वह बोहरा और आगाखानियों के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड बनाने तक के प्रस्ताव हैं। आखिर यह समुदाय कौन है और इसके लिए अलग बोर्ड क्यों बनाया जा रहा है? इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं।

क्यों हो रही औकाफ वक्फ की मांग?

बोहरा और आगाखानी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की मनमर्जी और संपत्ति हड़पने जैसे आरोप लग चुके हैं। यह पिछले कुछ समय से अपने लिए अलग बोर्ड की मांग कर रहे थे। आंध्रप्रदेश वक्फ बोर्ड ने साल 2023 में आगाखान शिया इमामी काउंसिल ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड आगा खानी मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को जबरन लेना चाहता है। इसे लेकर दोनों पक्षों में टकराव की स्थिति देखने को मिली थी। बता दें कि वक्फ बोर्ड में करीब ऐसे 30 वक्फ बोर्ड हैं जिनका संचालन राज्य या केंद्र शासित प्रदेश करते हैं। इसमें सबसे बड़ा बदलाव 1995 में किया गया।

कौन होते हैं बोहरा?

बोहरा शब्द गुजराती शब्द वोहरू से जुड़ा बताया जाता है। इसका अर्थ व्यापार करना होता है। बोहरा समुदाय के मुस्लिम भी व्यापार से जुड़े होते हैं। यह मुस्लिम तो होते हैं लेकिन आम मुस्लिमों से थोड़े अलग होते हैं। इस समुदाय के प्रमुख को सैयदना कहा जाता है। यह सबसे अधिक गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, चेन्नई आदि जगहों पर रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार अकेले गुजरात में इनकी जनसंख्या 9.64 लाख थी। देश में इनकी कुल आबादी 20 लाख से भी अधिक बताई जाती है। बोहरा समुदाय में भी शिया और सुन्नी दोनों तरह के मुस्लिम होते हैं। सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामिक कानून को मानते हैं तो वहीं दाऊदी बोहरा शियाओं से ज्यादा समानता रखते हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान, यूएसए, दुबई, अरब, यमन, ईराक आदि देशों में भी आबादी फैली है। दाऊदी बोहरा मुसलमान फातिमी इमामों से जुड़े हैं जो पैगंबर मोहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज हैं।

बोहरा समुदाय का पहनावा होता है अलग

बोहरा समुदाय की पोशाक थोड़ी अलग होती है। इस समुदाय के पुरुष पारंपरिक तौर पर तीन सफेद टुकड़ों वाले परिधान पहनते हैं। इसमें एक एक अंगरखा होता है जिसे ‘कुर्ता’ कहा जाता है। एक ओवरकोट होता है जिसे ‘साया’ कहा जाता है। इसके अलावा एक पैंट होती है जिसे ‘इज़ार’ कहा जाता है। इसके साथ ही पुरुष सफेद या गोल्डन रंग की टोपी भी पहनते हैं। बोहरा समुदाय के पुरुषों से पैग़म्बर मोहम्मद के अभ्यास का पालन करते हुए पूरी दाढ़ी बढ़ाने की उम्मीद की जाती है।

दूसरी तरफ महिलाओं का पहनावा थोड़ा अलग होता है। महिलाएं दोहरी पोशाक पहनती हैं जिसे ‘रिदा’ कहते हैं। रिदा अपने चमकीले रंग, सजावटी प्रतिरूप और फीते से तैयार होता है। रिदा से महिलाओं का चेहरा पूरी तरह से कवर नहीं होता है। इसमें एक पतली झिल्ली होती है, जिसे परदी कहते हैं। ये एक तरफ मुड़ा हुआ होता है ताकि खुद ही महिला का चेहरा ज्यादा न दिखे। खास बात यह है रिदा काले रंग के अलावा किसी भी रंग का हो सकता है।

बोहरा मुस्लिमों में हैं ये प्रथाएं

समुदाय में बाहर शादियां अब भी नहीं के बराबर होती हैं। इतना ही नहीं बोहराओं की मस्जिदों में आमतौर पर दूसरे लोग प्रवेश नहीं कर सकते। दाऊदी बोहरा समाज की महिलाएं आमतौर पर काफी पर काफी पढ़ी-लिखी होती हैं। हालांकि इसमें एक ऐसी प्रथा थी जिसे लेकर समाज दो भागों में बंट गया था। इस समुदाय में महिलाओं के खतने की प्रथा थी। खुद बोहरा महिलाओं का एक बड़ा तबका इसे अमानवीय कहता है। इस प्रथा में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या बोहरा समुदाय की भाषा में खफ्ज़ में लड़कियों के सात साल का होने पर उनकी क्लिटोरिस को काट दिया जाता है।

कौन होते हैं आगाखानी मुस्लिम?

आगाखानी मुस्लिम शिया मुस्लिमों की ही एक शाखा है। इस समुदाय के लोग इमाम जाफ़र अस सादिक के बेटे इस्माइल बिन जाफ़र के अनुयायी हैं। इनके धार्मिक रीति रिवाज भी अलग हैं। ये दिन में पांच बार नमाज नहीं पढ़ते हैं। इन मुसलमानों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इन्हें इस्माइली, खोजा मुस्लिम और निजारी मुस्लिम भी कहते हैं। इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से मध्य और दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। दुनियाभर में इनकी आबादी करीब 1.5 करोड़ है।

इस समुदाय के मुसलमान जमातखानों में इबादत करते हैं। खास बात यह है कि महिलाएं भी पुरुषों के साथ मिलकर इबादत करती हैं। आगाखानी मुसलमान रमजान के दौरान पूरे महीने रोजा नहीं रखते हैं। ये हज पर भी नहीं जाते हैं। कहा जाता है कि आगाखानी मुसलमान 950 साल पहले अफगानिस्तान के खैबर प्रांत से सिंध प्रांत आए और फिर भारत में आकर बस गए।