सरकार की तरफ से अदालतों में पेश होने वाले वकीलों की फीस तय करने को लेकर तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने आदेश जारी किया तो मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी कार्तिकेयन को गुस्सा आ गया। सुनवाई के दौरान वो बोले कि वकीलों को भी सरकार ने कांट्रेक्ट वर्कर बना दिया। सरकार ऐसा करके वकालत के पेशे का अपमान कर रही है।
जस्टिस कार्तिकेयन यहीं पर नहीं रुके। उनका कहना था कि सरकार को सोचना चाहिए कि जो वकील उन्हें कोर्ट में बचाते हैं उनसे कम से कम कांट्रेक्ट वर्कर की तरह से सलूक तो न किया जाए। सरकार को चाहिए था कि उसकी नीतियों और उसको कोर्ट में डिफेंड करने वाले वकीलों की तारीफ में दो शब्द कहती। लेकिन यहां तो उलटा काम ही होता दिख रहा है।
हाईकोर्ट का कहना था कि GOM 339 को पढ़ने के बाद लगता है कि वकालत के पेशे को भी सरकार कांट्रेक्ट वर्कर में तब्दील कर रही है। ऐसा नहीं किया जा सकता और ऐसा होना भी नहीं चाहिए। उनका कहना था कि वकालत का पेशा बेहद उलझा हुआ है। एडवोकेट को किसी भी केस में पेशी से पहले तमाम तरह की तैयारियां करनी होती हैं। उसे बहुत सी चीजों को पढ़ना होता है। सरकार नॉलेज और स्किल के मामले में बेंचमार्क नहीं बना सकती।
GOM 339 में सीलिंग 10 लाख रुपये
स्टालिन सरकार ने अपने आदेश के तहत आर्बिट्रेशन केसेज, सिविल सूट्स, ओरिजनल पटीशंस, ओरिजनल साइड अपील, सिविल अपील और रेगुलर केसेज में सरकार की तरफ से पेश होने वाले वकीलों की फीस को लेकर नया नियम बना दिया है। इसमें अवार्ड\डिक्री का 1 फीसदी वकीलों को देने की बात कही गई है। इसमें एक सीलिंग तय की गई है जो 10,00,000 रुपये होगी। यानि इससे ज्यादा फीस अब वकीलों को नहीं मिलेगी।
सरकार के इस फैसले को एक सीनियर एडवोकेट ने चुनौती दी थी। ये शख्स पहले एडिशनल एडवोकेट जनरल के तौर पर काम कर चुका है। उसका कहना है कि वो तीन आर्बिट्रेशन केसेज में सरकार की तरफ से पैरवी कर चुका है। इसके लिए उसकी फीस 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है। सरकार ने ये आदेश आर्बिट्रेशन प्रोसीडिंग के बीच में जारी किया है।
स्टालिन सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी कर रहे एडिशनल एडवोकेट जनरल ने आदेश को सही करार दिया। उनका कहना था कि याचिकाकर्ता ने जो फीस क्लेम की है वो काफी ज्यादा है। वो ऐसा नहीं कर सकता। कोर्ट ने सरकार को वकील की मांग पर फैसला करने के लिए 12 हफ्ते का वक्त दिया है।