Emergency 1975: 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल लगा दिया था। उनकी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल मीडिया पर सेंसरशिप को लेकर नर्म रुख रखते थे। इसके चलते इंदिरा गांधी ने उन्हें योजना मंत्रालय की जिम्मेदारी देते हुए सूचना प्रसारण मंत्रालय विद्याचरण शुक्ल को दे दिया था।
इंद्र कुमार गुजराल बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने थे। उन्होंने इस पूरे प्रकरण के दशकों बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं एक पैकेज हैं। आप आंशिक रूप से लोकतांत्रिक और आंशिक रूप से गैर लोकतांत्रिक नहीं कर सकते हैं। उनका कहना था कि अगर आप लोकतंत्र की संस्थाओं के साथ समझौता करना शुरू कर देते हैं तो फिर आप कभी लोकतांत्रिक रह ही नहीं सकते हैं।
इंद्रकुमार गुजराल ने सुनाया ‘रेनकोट’ वाला किस्सा
इंद्र कुमार गुजराल के बजाए वीसी शुक्ला को अपनी बात मनवाने के लिए इंदिरा गांधी ज्यादा लचीला मानती थीं। 2000 के दशक की शुरुआत में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) को दिए गए एक साक्षात्कार में गुजराल ने एक घटना का जिक्र किया जिसके कारण उन्हें पद से हटा दिया गया।
गुजराल ने कहा था कि इंदिरा गांधी जयप्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन से निपटने के उनके तरीके से इतनी निराश थीं। जेपी की वजह से ही आपातकाल लगा था। उन्होंने पुरानी घटना याद करते हुए कहा कि गुजरात में एक सार्वजनिक रैली में उन्होंने (इंदिरा ने) उन्हें अपना रेनकोट देते हुए कहा था कि आप इसे पकड़िए क्योंकि आप कोई और काम तो कर नहीं सकते।
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मीडिया को दोषी ठहराती थीं इंदिरा
जेपी आंदोलन पर गुजराल ने कहा कि इंदिरा गांधी को समझ में नहीं आ रहा था कि इस बढ़ते गुस्से को कैसे संभाला जाए। वे गुजरात में भ्रष्टाचार के आरोपों का ठीक से जवाब नहीं दे रही थीं। जयप्रकाश नारायण बाद में उभरे। इसलिए, जितना ज़्यादा वे राजनीतिक रूप से बेबस महसूस करती थीं, उतना ही ज़्यादा वे मीडिया को दोषी ठहराती थीं।
बुलेटिन के शब्दों को लेकर भी होती थी चर्चा
एक बार इंदिरा गांधी ने मीडिया को कंट्रोल करने को लेकर जब गुजराल को चिट भेजी थी तो उन्होंने जवाब दिया, “इंदिरा जी, मीडिया अंतिम विश्लेषण में एक सीमांत गतिविधि है। किसी भी परिस्थिति में राजनीतिक कार्रवाई का विकल्प नहीं है। राजनीतिक लड़ाइयाँ राजनीतिक रूप से ही लड़ी जानी चाहिए।”
गुजराल ने इंटरव्यू में उस किस्से को भी याद किया कि जब आकाशवाणी ने घोषणा की कि जेपी की रैली से पहले आयोजित इंदिरा गांधी की रैली “विशाल” थी, तो प्रधानमंत्री ने उन्हें यह तर्क देने के लिए बुलाया कि क्या “बहुत बड़ा” या “अभूतपूर्व” के बजाय “विशाल” सही शब्द है, और अंत में वे इस बात से सहमत हुए कि समाचार बुलेटिन में प्रयुक्त शब्द ठीक था।
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इमरजेंसी लगते ही उड़ा दी गई थी बिजली
गुजराल ने 25 जून 1975 की रात को भी याद किया, जब देश में आपातकाल लागू होने की खबर सुनते ही बहादुर शाह जफर मार्ग पर बिजली काट दी गई थी, जिसके चलते अखबार न छप पाएं। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि आपातकाल लगा दिया गया है और उन्हें इस बारे में 26 जून को सुबह 6 बजे हुई कैबिनेट मीटिंग में ही पता चला। गुजराल ने कहा कि उन्हें रात में प्रधान सूचना अधिकारी द्वारा बिजली कटौती और गिरफ्तारियों के बारे में बताया गया था लेकिन उन्होंने तुरंत मामले की गंभीरता को नहीं समझा।
कैबिनेट की बैठक में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन नवनियुक्त गृह सचिव एसएल खुराना से मंत्रियों को जानकारी देने के लिए कहा। स्वर्ण सिंह को छोड़कर सभी चुप रहे, जिन्होंने पूछा… ‘लेकिन पहले से ही आपातकाल है!’ क्योंकि (1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय घोषित आपातकाल औपचारिक रूप से वापस नहीं लिया गया था।) तो, इस पर गृह सचिव ने कहा कि वह एक बाहरी आपातकाल है, यह एक आंतरिक आपातकाल है।” गुजराल ने कहा, “इंदिरा गांधी शांत थीं, लेकिन चिंतित थीं। मुझे जो भी याद है, मैं यह नहीं कहूंगा कि वह खुश थीं।”
संजय गांधी देखना चाहते थे बुलेटिन
गुजराल ने याद किया कि कैबिनेट मीटिंग खत्म होने के बाद संजय गांधी ने शिक्षा मंत्री नूरुल हसन से कहा था कि मैं समझता हूं कि विश्वविद्यालय में जनसंघियों की बहुत सारी गतिविधियां हैं।” गुजराल ने याद किया कि हसन ने जवाब दिया, जिसकी लिस्ट उनके ऑफिस में भेजने की बात भी कही गई। संजय ने गुजराल से कहा कि वह समाचार बुलेटिन देखना चाहते हैं, जिस पर गुजराल ने कहा कि वह इसे तभी देख सकते हैं जब इसका प्रसारण हो। इंदिरा गांधी ने हस्तक्षेप किया और गुजराल को आश्वासन दिया कि मामला सुलझा लिया जाएगा।
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इंद्र कुमार गुजराल ने कहा कि उन्होंने 26 जून को प्रेस सेंसरशिप के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया था। उन्होंने साक्षात्कार में कहा। उनके पिता ने गुजराल से कहा कि उन्होंने यह दिन देखने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया था। उनके सूचना सचिव ए जमाल किदवई ने उनसे कहा कि सर आप राजनीति में हैं, आप इससे बाहर निकल जाइए। मैं एक नौकरशाह हूं मैं मिट जाऊंगा।
संजय गांधी ने बनाया था सेंसरशिप के लिए दबाव
गुजराल ने बताया कि उस सुबह (26 जून) करीब 11 बजे गुजराल को उनके पीए आरके धवन ने प्रधानमंत्री के आवास पर बुलाया था। प्रधानमंत्री वहां नहीं थे लेकिन संजय ने उनसे कहा, “देखिए, यह इस तरह से नहीं चलेगा।” गुजराल ने कहा था, जब तक मैं मंत्रालय में हूं, तब तक सब वैसा ही होगा जैसा मैं चाहता हूं… मैं प्रधानमंत्री के प्रति जवाबदेह हूं।” घर वापस आने पर उन्हें केंद्रीय मंत्री ओम मेहता का फ़ोन आया कि वे संजय को (प्रेस) सेंसर की सूची भेजें। उन्होंने उन्हें दफ़्तर के दस्तावेज़ भेजने से मना कर दिया और कहा कि वे सेंसरशिप नहीं लगा रहे हैं।
इंदिरा गांधी ने पद से हटाया
संजय गांधी से बातचीत के बाद गुजराल ने कहा कि जब वे अगली बार इंदिरा गांधी से मिले, तो वे सेंसरशिप से निपटने के उनके तरीके से खुश नहीं दिखीं। जब उन्होंने कहा, “इंदिरा जी, यह मेरे बस की बात नहीं है,” तो इंदिरा गांधी ने कहा, “हां, यही मैं आपको बताना चाहती थी। इसे और सख्ती से संभालने की जरूरत है और आप बहुत नरम हैं।”
उन्होंने तुरंत सहमति जताते हुए कहा, “इंदिरा जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप हमेशा मेरे प्रति बहुत दयालु रही हैं और मैं आपका बहुत आभारी हूं। लेकिन अब मैं आपसे आपके मंत्री के रूप में नहीं, बल्कि आपके मित्र के रूप में बात कर रहा हूं… जब मैं घर आया। मैंने लगभग 9 बजे रेडियो चालू किया। घोषणा हुई कि वीसी शुक्ला को सूचना मंत्री नियुक्त किया गया है।”
भारत का राजदूत बनाकर भेजा था मॉस्को
गुजराल ने कहा कि इसके तुरंत बाद उन्होंने कैबिनेट में एक बहुत ही दिलचस्प टिप्पणी की। कैबिनेट को नहीं पता था कि मुझे पद से मुक्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सूचना मंत्रीविश्वसनीयता के मामले में पागल थे। मुझे लगा कि यह तारीफ है, लेकिन उन्हें लगा कि यह निंदा है।
गुजराल ने कहा कि उन्हें इंदिरा गांधी ने उन्हें 1976 में भारत का राजदूत बनाकर मॉस्को भेजा था शायद इसलिए क्योंकि वे अब भी उनका व्यक्तिगत रूप से सम्मान करती थीं। गुजराल ने कहा कि उन्होंने उनसे यह भी पूछा कि उन्होंने नूरुल हसन जैसे कम्युनिस्ट को क्यों नहीं भेजा, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें मॉस्को में भारत का राजदूत चाहिए था, न कि मॉस्को में रूस का राजदूत।
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