आज जो लोग कर्नाटक और गोवा में बड़े पैमाने पर विधायकों के पाला बदलने से हैरान हैं उन्होंने शायद हरियाणा के दल-बदल की घटना के बारे में जानकारी ना हो। उस घटना के सामने आज कर्नाटक या गोवा की घटना कुछ भी नहीं है। 1 नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना था।
नवगठित राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीती। पार्टी के उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिली। कांग्रेस ने बहुत कम बहुमत से राज्य में सरकार बनाई थी। इस चुनाव में भारतीय जन संघ को 12 सीटें, स्वतंत्र पार्टी को 3 और रिपब्लिकन पार्टी को 2 सीटें मिली थीं।
16 सीटों जीतकर निर्दलीय विधायकों का धड़ा दूसरा सबसे बड़ा समूह था। कांग्रेस की तरफ से भागवत दयाल शर्मा ने मुख्यमंत्री के रूप में 10 मार्च 1967 में शपथ ली। एक सप्ताह के भीतर ही पार्टी के 12 विधायकों के दल बदल के कारण सरकार गिर गई। इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा में दलबदल के पहले पीड़ित थे।
1967 में जब वह संभावित रूप से दल बदलने वाले विधायकों से मिलने एमएलए हॉस्टल पहुंचे तो तभी एक सहयोगी दौड़ता हुआ उनके पास पहुंचा। उसने कहा, ‘साहिब, पंडित तुही राम भी चले गए।’ शर्मा ने पूछा, पंडित तुही राम? फोन लगाओ।
जब पंडिताइन पर ली चुटकीः इस पर सहयोगी ने कहा कि कोई उम्मीद नहीं है, रेडियो पर खबर आ चुकी है। अपनी वाकपटुता के लिए मशहूर शर्मा ने चुटकी ली, ‘जरा पता करो, हो सकता है पंडिताइन ने भी दल बदल लिया हो।’ पंडिताइन से उनका आशय अपनी पत्नी सावित्री देवी से था। इसके बाद विपक्षी गठबंधन संयुक्त विधायक दल के बैनर तले 24 मार्च को, राव बीरेंद्र सिंह (वर्तमान केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के पिता) ने हरियाणा के नए सीएम बने थे।
ओडिशा का राज्यपाल बनाए गएः पंडित भगवत दयाल शर्मा 23 सितंबर 1977 को ओडिशा के राज्यपाल नियुक्त किए गए। इससे पहले वे 1962-66 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य और श्रम व सहकारिता मंत्री भी रहे। 1968-74 तक भगवत दयाल शर्मा राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1977 में वह करनाल से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे।