पांचवें Heart of Asia मिनिस्टिरियल कॉन्‍फ्रेंस के लिए सुषमा स्‍वराज 8 और 9 दिसंबर को इस्‍लामाबाद में रहेंगी। सुशांत सिंह इस सम्‍मेलन के एजेंडे और इसकी प्रासंगिकता के बारे में बता रहे हैं:

क्‍या है हार्ट ऑफ एशिया: यह ‘इस्‍तांबुल प्रॉसेस’ का हिस्‍सा है। यह मुख्‍य रूप से अफगानिस्‍तान को ध्‍यान में रखते हुए क्षेत्रीय सहयोग पर चर्चा का एक मंच है। अफगानिस्‍तान में शांति और विकास के लिए किस तरह सहयोग किया जाए और उसके परिणाम लाए जाएं, जिसके परिणामस्‍वरूप इस पूरे क्षेत्र में भी शांति बनी रहे, इसी पर चर्चा होती है।

कौन देश इसमें शामिल होते हैं: 14 सदस्‍य देश और उन्‍हें सहायता देने वाले 16 देशों के अलावा 12 क्षेत्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय संगठन। सदस्‍य देश ये हैं- अफगानिस्‍तान, अजरबाइजान, चीन, भारत, इरान, कजाकस्‍तान, किरगिज, पाकिस्‍तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्‍तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्‍तान और यूएई। अमेरिका, जापान, मिस्र, यूके, फ्रांस और जर्मनी इसे साथ देने वाले देशों में शामिल हैं। यूएन, नाटो, सार्क, एससीओ और ओआईसी सहयोगी संगठनों में शुमार हैं।

कॉन्‍फ्रेंस का जोर किस बात पर है: इस्‍तांबुल प्रॉसेस के तहत देशों के बीच इन मुद्दों पर सहमति बनी थी: 1) अफगानिस्‍तान और इसके पड़ोसियों को शामिल करते हुए राजनीतिक बातचीत करना। 2) विश्‍वास बहाली के उपायों (सीबीएम) पर अमल सुनिश्चित करने को लेकर बातचीत। 3) अफगानिस्‍तान से ताल्‍लुक रखने वाली संस्‍थाओं और क्षेत्रीय स्‍तर पर सहयोग का दायरा बढ़ाना

सीबीएम के तहत क्‍या आता है: आपदा प्रबंधन, आतंकवाद से लड़ना, ड्रग्‍स के अवैध व्‍यापार से निपटना, व्‍यापार-वाणिज्‍य-निवेश को बढ़ावा देना, बुनियादी सुविधाएं बढ़ाना, शिक्षा पर जोर देना

ये कॉन्‍फ्रेंस कहां-कहां हुआ है: 2011 में तुर्की, 2012 में काबुल, 2013 में अलमाटी (कजाकस्‍तान), 2014 में बीजिंग और अब 2015 में इस्‍लामाबाद। इस बार कॉन्‍फ्रेंस का आयोजन पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान मिल कर कर रहे हैं। कॉन्‍फ्रेंस के पहले दिन तमाम देशों के बड़े अफसर बात करेंगे। अगले दिन (9 दिसंबर) मंत्रियों के बीच चर्चा होगी।

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