दिल्ली में रायसीना डायलॉग समिट चल रही है। इस समिट में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि जब संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का निर्माण हुआ, तब इसमें लगभग 50 सदस्य थे। इस इनकी संख्या बढ़कर चार गुना से भी अधिक हो गई है। अगर आप पिछले 5 वर्षों को देखें तो सभी बड़ा मुद्दों के लिए हम बहुत अच्छे समाधान नहीं ढूंढ पाए हैं, इसलिए सुधार जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि कई मामलों में नियमों से खिलवाड़ भी किया गया है। ऐसे में सवाल है कि भारत इस वैश्विक संस्था को लेकर एक बार फिर क्यों सवाल उठा रहा हैं।

क्यों हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना?

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही कई देशों ने एकजुट होकर विश्व में शांति के किए एक वैश्विक संस्था की इच्छा जाहिर की। इसकी रूप रेखा के निर्माण के लिए बड़े राष्ट्रों के प्रतिनिधि का समाकलन 21 अगस्त 1944 को वाशिंगटन के दंबर्टन ओक्स भवन में किया गया जो 7 अक्टूबर 1944 तक चला। संयुक्त राष्ट्र के लिए मुख्य रूप से अमेरिका ने पहल की और अमेरिका के तत्कालिन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रुस्वेल्ट ने इसे यह नाम दिया। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संगठन के संस्थान सदन देशों की संख्या 51 थी। इस संगठन का मुख्यालय न्यूयॉर्क में शहर में है। इसका मुख्या मैनहट्टन में है। भारत इसके संस्थापक सदस्यों में एक है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) संयुक्त राष्ट्र (UN) के छह प्रमुख अंगों में से एक है। इसकी स्थापना भी इसके गठन के दौरान 24 अक्टूबर 1945 को की गई। इस पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने, महासभा में संयुक्त राष्ट्र के नए सदस्यों के प्रवेश की सिफारिश करने और संयुक्त राष्ट्र में किसी भी बदलाव को मंजूरी देने की जिम्मेदारी है। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस और चीन स्थाई सदस्य बनाए गए।

किन देशों को मिली वीटो पावर?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से स्थाई सदस्यों को वीटो पावर भी दे दी गई। अगर सुरक्षा परिषद में कोई प्रस्ताव आता है और अगर कोई एक स्थायी सदस्य देश इससे सहमत नहीं है तो ये प्रस्ताव पास नहीं होगा या अमल में नहीं आएगा। इसका अर्थ हुआ कि किसी भी प्रस्ताव को पास होने के लिए सभी 5 स्थाई देशों की सर्वसम्मति चाहिए। अगर किसी एक ने भी इसके लिए वोट नहीं दिया तो वह प्रस्ताव पास नहीं माना जाएगा। भारत कई सालों से स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा है। अमेरिका, फ्रांस, रूस के बाद अब ब्रिटेन ने भारत को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन किया है। हालांकि चीन हर बार इसमें रोड़ अटका देता है।