हाल में 8091 मीटर ऊंचे अन्नपूर्णा पहाड़ पर गए दो पर्वतारोहियों के दुर्घटना का शिकार होने और फिर उन्हें बचा लिए जाने की खबरें आईं। भारतीय पर्वतारोही अनुराग मालू इस पर्वत की छह हजार मीटर की ऊंचाई से गिरने के बाद बर्फ के एक खड्ड में फंस गए थे। दूसरी पर्वतारोही बलजीत कौर और उनकी अन्य एक साथी आयरलैंड निवासी नोएल हना की मौत की खबर आई।

बाद में नोएल का शव मिल गया, लेकिन बलजीत के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि, हकीकत यह थी कि जिस समय दुनिया बलजीत कौर को मरा हुआ समझ चुकी थी उस समय वे ‘हाई आल्टीट्यूड सेरिब्रल एडिमा’ का शिकार हो चुकी थीं। अन्नपूर्णा पर्वत के मृत्यु क्षेत्र (डेथ जोन) में 27 घंटे से ज्यादा गुजारने के बाद खुद को नीचे घसीट कर लाने की जद्दोजहद में लगी हुई थीं। वे नीचे आने में सफल हो गईं और उन्हें एक हेलिकाप्टर से अन्नपूर्णा की 7600 मीटर ऊंचाई से बचा लिया गया, जहां तक वह खुद को घसीट कर ले जा चुकी थीं। अब उनका इलाज काठमांडो के एक अस्पताल में चल रहा है।

‘हाई आल्टीट्यूड सेरिब्रल एडिमा’ ऐसी हालत है, जिसमें ऊंचाई और आक्सीजन की कमी के कारण पर्वतारोही का दिमाग काम करना बंद कर देता है, उनमें सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है, वह होश खो बैठते हैं और कल्पना लोक में पहुंच जाते हैं। मानव शरीर समुद्र तल से 2100 मीटर तक की ऊंचाई पर रहने के लिए बना है। इससे अधिक ऊंचाई पर शरीर में आक्सीजन तेजी से कम होने लगता है और शरीर में नकारात्मक प्रभाव दिखने शुरू हो जाते हैं।

इतनी ऊंचाई पर आमतौर पर पर्वतारोही पोक्सिया (आक्सीजन की कमी) का शिकार हो जाते हैं। हाइपोक्सिया के साथ नब्ज तेज हो जाती है, खून गाढ़ा होकर जमने लगता है और शरीर के लकवाग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक खराब हालत में पर्वतारोही के फेफड़ों में पानी भर जाता है और वह ‘हाई आल्टीट्यूड सेरिब्रल एडिमा’ का शिकार हो सकते हैं।

वहां इंसानों को सांस लेने के लिए जरूरी आक्सीजन की कमी से जहां एल्टीट्यूड सिकनेस (ऊंचाई पर होने वाली बीमारी) की आशंका बढ़ जाती है। दूसरी ओर, इतनी ऊंचाई पर तेज हवाएं भी पर्वतारोहियों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। बेहद कम तापमान भी शरीर के किसी भी हिस्से में फ्रास्ट बाइट (बर्फ से कटने-गलने) का कारण बन सकता है। इतनी ऊंचाई पर मानव शरीर को होने वाली चिकित्सकीय परेशानियों के बारे में किए गए एक शोध के मुताबिक, पर्वतारोही को सेरेब्रल एडिमा, रेटिना हेमरेज, जबरदस्त सिरदर्द, बेचैनी, और नजर के धोखे आदि जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार मानव शरीर के बर्दाश्त करने की क्षमता 8000 मीटर है। इससे ऊपर जाने पर शरीर के सारे अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं। आठ हजार मीटर से ऊपर पहाड़ के मृत्यु क्षेत्र में कोई भी कुछ देर से ज्यादा नहीं सकती। यहां नींद या अधिक देर रुकने का मतलब मौत है। इसलिए शिविर चार में पहुंचने वाले पर्वतारोही सोते नहीं हैं।

कुछ देर सुस्ता कर चोटी पर पहुंचने की कोशिश करते हैं और जितनी जल्दी हो सके मृत्यु क्षेत्र से निकलने की कोशिश करते हैं। अन्नपूर्णा पहाड़ 8091 मीटर ऊंचा है और इसका मृत्यु क्षेत्र 91 मीटर है। मृत्यु क्षेत्र पहाड़ का वह हिस्सा होता है जो 8000 मीटर से ऊंचा हो। बलजीत ने इस खतरनाक क्षेत्र में 27 घंटे गुजारे। बलजीत को 16 अप्रैल को पहाड़ से वापसी के रास्ते पर खोजा गया और वह उस समय तक ठीक थे।

कुल चार दिन यानी लगभग 96 घंटे बाद अनुराग को बेहद गंभीर स्थिति में अन्नपूर्णा की खाई में से बचा लिया गया। बलजीत 7000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर 49 घंटे बिताने के बाद चिल ब्लेन (सर्दी से हाथ पैर का फट जाना) का शिकार हुई हैं जो फ्रास्ट बाइट की शुरुआती स्थिति है।