Sabarimala Temple Case in Hindi: केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने शुक्रवार को कहा कि सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। उच्चतम न्यायालय ने 4:1 की बहुमत से सुनाए इस फैसले में कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाना लैंगिक भेदभाव है। पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ की अगुआई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे। कोर्ट ने माना कि केरला हिंदू प्लेसेज ऑफ पब्लिक वर्कशिप (अथॉराइजेशन ऑफ एंट्री) रूल्स, 1965 का प्रावधान हिंदू महिलाओं के धर्म के पालन के अधिकार को सीमित करता है। इस बड़े फैसले के बाद आइए यह समझते हैं कि यह पूरा मामला है क्या?
पांच महिला वकीलों के एक समूह ने केरला हिंदू प्लेसेज ऑफ पब्लिक वर्कशिप (अथॉराइजेशन ऑफ एंट्री) रूल्स, 1965 के रूल 3 बी को चुनौती दी थी। यह नियम माहवारी वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने से रोकने का अधिकार देता है। वकीलों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त गुहार लगाई, जब हाई कोर्ट ने सदियों से चली आ रही इस बंदिश को कायम रखा। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि सिर्फ ‘तंत्री’ (पुजारी) ही परंपराओं पर फैसला लेने का अधिकारी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये प्रतिबंध संविधान के आर्टिकल 14, 15, 17 के खिलाफ है। उन्होंने दलील दी कि यह नियम भेदभाव करने वाला है और महिलाओं को अपनी पसंद के स्थान पर पूजा करने की आजादी मिलनी चाहिए।
जहां तक मंदिर प्रशासन का सवाल है, वह महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाए जाने पर कायम था। मंदिर प्रशासन का कहना था कि यह परंपरा भेदभाव करने वाला नहीं है क्योंकि यह उस विश्वास पर आधारित है, जिसके मुताबिक इस मंदिर में विराजने वाले भगवान ‘नैष्ठिक ब्रह्मचारी’ हैं। वहीं, महिला श्रद्धालुओं का एक समूह ऐसा भी था, जो इस पाबंदी के समर्थन में था। जब सोशल मीडिया पर इस बंदिश के खिलाफ #RightToPray अभियान चलाया गया तो इस समूह ने इसके खिलाफ #Readytowait चलाया। उनका कहना था कि सिर्फ निश्चित उम्र वाली महिलाओं को ही मंदिर में प्रवेश की आजादी नहीं है। ये महिलाएं मंदिर में दाखिल होने के लिए 50 साल की उम्र तक का इंतजार कर सकते हैं। जहां तक केरल सरकार के रुख का सवाल है, राज्य ने सुप्रीम कोर्ट को इस साल सुनवाई के दौरान कहा था कि वह महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने के पक्ष में है।