DLF Land Deal Case: कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और कारोबारी रॉबर्ट वाड्रा आज ईडी के सामने पेश हुए। प्रवर्तन निदेशालय ने लैंड डील और मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पूछताछ की है। वाड्रा ने इसे भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक प्रतिशोध बताया। बीजेपी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय से ही वाड्रा के खिलाफ भ्रष्टाचार और राजनीतिक सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगाए हैं। आइए अब जानते हैं कि आखिर ये मामला क्या है।

यह पूरा मामला वाड्रा की स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और रियल एस्टेट दिग्गज डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड के बीच हुई लैंड डील से संबंधित है। यह उस वक्त सामने आया जब हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने अक्टूबर 2012 में इसका म्यूटेशन रद्द कर दिया। भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले इस मुद्दे को उठाया था। इन चुनावों में वह जीत भी गई थी।

क्या था डीएलएफ लैंड डील केस?

वाड्रा ने 2007 में 1 लाख रुपये के साथ स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी की शुरुआत की थी। अगले साल कंपनी ने गुड़गांव के मानेसर-शिकोहपुर में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से 7.5 करोड़ रुपये में करीब 3.5 एकड़ जमीन खरीदी। अगले दिन प्लॉट का म्यूटेशन स्काईलाइट के पक्ष में हो गया और खरीद के 24 घंटे के अंदर जमीन का मालिकाना हक वाड्रा को ट्रांसफर कर दिया गया। इस प्रक्रिया में आमतौर पर कम से कम तीन महीने लगते हैं।

एक महीने बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को ज्यादातर जमीन हाउसिंग प्रोजेक्ट विकसित करने की इजाजत दे दी। इसकी वजह से जमीन के रेट में तत्काल बढ़ोतरी हो गई। जून 2008 में डीएलएफ ने 58 करोड़ रुपये में प्लॉट खरीदने पर सहमति जताई। इसका मतलब है कि कुछ ही महीनों में वाड्रा की प्रॉपर्टी का रेट 700 फीसदी बढ़ गया। वाड्रा को किश्तों में भुगतान किया गया और 2012 में ही जमीन पर कॉलोनी का लाइसेंस ट्रांसफर करने वाला म्यूटेशन डीएलएफ को ट्रांसफर किया गया।

ED ऑफिस में रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ खत्म

खेमका की भूमिका क्या थी?

चकबंदी अधिकारी खेमका ने 2012 में 3.531 एकड़ म्यूटेशन का दाखिल खारिज रद्द कर दिया था। इसके कुछ ही घंटों बाद 11 अक्टूबर 2012 को हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आदेश पर उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। हालांकि, खेमका ने जांच पूरी की और 15 अक्टूबर 2012 को म्यूटेशन को रद्द कर दिया और फिर चार्ज छोड़ दिया। उनके आदेश में कहा गया कि म्यूटेशन को मंजूरी देने वाले असिस्टेंट चकबंदी अधिकारी को ऐसा करने का अधिकार नहीं था।

हरियाणा सरकार ने क्या किया?

खेमका के आदेश के बाद विवाद बढ़ गया। इसके बाद हरियाणा सरकार ने मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की एक कमेटी का गठन किया। इसमें कृष्ण मोहन, राजन गुप्ता और केके जालान शामिल थे। अप्रैल 2013 में सरकार ने वाड्रा और डीएलएफ दोनों को क्लीन चिट दे दी और इसके बजाय खेमका पर अपने अधिकार से बाहर जाकर काम करने का आरोप लगाया।

क्या राजनीतिक पारी शुरू करने वाले हैं रॉबर्ट वाड्रा? 

2014 में सत्ता में आने के बाद मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने एक सदस्यीय जस्टिस ढींगरा जांच आयोग का गठन किया। आयोग ने 31 अगस्त 2016 को राज्य सरकार को 182 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी, लेकिन इसे कभी पब्लिक नहीं किया गया। 2016 में हुड्डा ने ढींगरा आयोग के गठन के फैसले को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का रुख किया। 23 नवंबर 2016 को सुनवाई के पहले दिन सरकार ने एक वचन दिया कि रिपोर्ट छापी नहीं जाएगी। हालांकि, सूत्रों ने कहा कि ढींगरा रिपोर्ट ने हुड्डा के खिलाफ जांच की सिफारिश की थी। 2018 में हुड्डा, वाड्रा और डीएलएफ तथा ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ कथित आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

ईडी कर रही मामले की जांच?

प्रवर्तन निदेशालय ने जांच अपने हाथ में ले ली और अब वह लैंड डील की जांच कर रहा है। 2023 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और हरप्रीत सिंह बरार की बेंच के सामने हरियाणा सरकार ने हलफनामा पेश किया कि डीएलएफ यूनिवर्सल को जमीन ट्रांसफर में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया।