14 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 को लॉन्च किया जाना है। श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर में इसे लेकर तैयारी पूरी हो चुकी हैं। सिर्फ इसरो ही नहीं अन्य स्पेस एजेंसियों की भी इस पर नजर बनी हुई है। इस मिशन के जरिए इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश करेगा। 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद की सतह पर उतरने की कोशिश की थी लेकिन तकनीकी खामियों के कारण विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर क्रैश लैंडिंग हुई। इसरो पुरानी गलतियों को सुधार कर एक बार फिर सफल लैंडिंग करना चाहता है। चंद्रयान-3 की सफलता काफी हद तक इसे लेकर जाने वाले बाहुबली रॉकेट लॉन्चर एलवीएम-3 पर टिकी है।
क्यों कहा जाता है बाहुबली रॉकेट लॉन्चर?
लॉन्च व्हीकल मार्क-III को बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है। पिछले साल अक्टूबर में एलवीएम-3 ने 36 सैटेलाइट को लेकर उड़ान भरी थी। इसके बाद से ही इस रॉकेट लॉन्चर को बाहुबली रॉकेट लॉन्चर कहा जाने लगा। इसरो को इसे बनाने में 15 साल का समय लगा था। यह इसरो द्वारा बनाया गया सबसे ताकतवर रॉकेट है। इस रॉकेट का इस्तेमाल हैवी लिफ्ट लॉन्च में किया जाता है।
यह रॉकेट तीन चरण में काम करता है। इसमें पहली स्टेज के तहत थ्रस्ट के लिए दो सॉलिड फ्यूल बूस्टर लगाए गए है। वहीं कोर थ्रस्ट के लिए एक लिक्विड बूस्टर लगाया गया है। एलवीएम-3 रॉकेट 640 टन से अधिक वजन उठा सकता है। वहीं इसकी पेलोड क्षमता 4,000 किलो से अधिक है। इसकी लंबाई 43.5 मीटर है। इस रॉकेट का पुराना नाम जीएसएलवी-एमके-3 था जिसे पिछले साल बदल कर एलवीएम-3 रख दिया गया।
अब तक के सभी मिशन किए पूरे
इस रॉकेट ने अभी तक के सभी मिशन सफलतापूर्वक पूरे किए हैं। चंद्रयान-2 को भी इसी रॉकेट से लॉन्च किया गया था। चंद्रयान-3 इसका चौथा मिशन है। एलवीएम-3 का पहला मिशन G-SAT-19 कम्युनिकेशन सैटेलाइट को पृथ्वी के ऑर्बिट में पहुंचाना था। इसने अपने दूसरे मिशन एस्ट्रोसैट एस्ट्रोनॉमी सैटेलाइट को पृथ्वी के ऑर्बिट में सफलता से पहुंचाया था। इसरो के सबसे बड़े मिशन में से एक गगनयान को भी एलवीएम-3 रॉकेट लेकर जाएगा। बता दें कि इसे बनाने में कुल 3,000 करोड़ रुपये का खर्च आया था।