UCC: समान नागरिक संहिता को लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है। सरकार इस मामले में तेजी से आगे बढ़ रही है। गुरुवार को मोदी सरकार ने इस मामले में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GoM) भी बना दिया। इसका अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री किरिण रिजिजू को बनाया गया है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, अर्जुन राम मेघवाल और जी किशन रेड्डी भी इस ग्रुप में शामिल है। दूसरी तरफ आर्टिकल-371 को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। पूर्वोत्तर राज्यों में यूसीसी को लागू कराना क्या केंद्र सरकार को लिए मुश्किल होगा? क्या संसद में कानून पास होने के बाद भी यह पूर्वोत्तर राज्यों में लागू नहीं है। ऐसे कई सवाल इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं।
पूर्वोत्तर में यूसीसी पर क्यों हो रही चर्चा?
लॉ कमीशन ने देश के नागरिकों से समान नागरिक संहिता पर राय मांगी है। पूर्वोत्तर राज्य की जनजातियां समान नागरिक संहिता को लेकर काफी आशंकित हैं। पूर्वोत्तर में 220 से अधिक जनजातीय बस्ती है। नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को आर्टिकल-371 के तहत संरक्षण प्राप्त है। वहां के लोगों को डर है कि उनको मिला संवैधानिक संरक्षण यूसीसी आने से खत्म ना हो जाए। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने यूसीसी का विरोध किया है और इसे मिजो समुदाय के हितों के विरुद्ध बताया है। 14 फरवरी 2023 को मिजोरम विधानसभा में यूसीसी के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया। इसे सभी पार्टियों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। मेघालय के मुख़्यमंत्री कॉनराड संगमा जो बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे है उन्होंने भी समान नागरिक संहिता का विरोध किया है। उनका कहना है कि मेघालय में कई जनजातियां पाई जाती है और इसके इतर कई उप-जनजातियां भी है जिनके शादी विवाह और तलाक को लेकर नियम काफी अलग है। अगर यूसीसी लाया जाता है तो उनकी स्वायत्ता खत्म हो जाएगी।
क्या है आर्टिकल-371?
आर्टिकल-371 के तहत देश के कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है और इन सभी राज्यों को सीमित स्वायत्ता दी गई है। मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम को विशेष स्वायत्ता प्रदान की गई है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मिजोरम में 94%, नागालैंड में 86% और मेघालय में 86% जनजातियां रहती है। इनके अलग अलग रीति रिवाज़ है जिनको आर्टिकल 371 के तहत कानूनी संरक्षण मिला हुआ है। यूसीसी को लेकर लोगों में डर है कि अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो बहुसंख्यक प्रथाएं और रीति रिवाज को इनपर थोप दिया जायेगा। इस प्रकार इनके धार्मिक और वैवाहिक स्वंत्रता पर खतरा पड़ने की आशंका है। बता दें कि आर्टिकल-370 सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लिए लाया गया था। 2019 में मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया। इसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।
क्या कहता है संविधान?
आर्टिकल-371 A के तहत संसद द्वारा बनाया गया कोई भी कानून नागालैंड के सांस्कृतिक और धार्मिक मसलों में लागू नहीं होगा। हालांकि राज्य सरकार चाहे तो उन कानूनों को लागू कर सकती है। यह फैसला सिर्फ राज्य सरकार के लिए होगा, केंद्र उसे फैसला मामने के लिए बाध्य नहीं कर सकेगा। नागा लोगों के पारंपरिक कानून को लेकर संसद या सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश लागू नहीं हो सकता है। नागालैंड में जमीन और संसाधन कोई गैर नागा लोग नहीं खरीद सकता है। दूसरे राज्य का नागरिक यहां जमीन नहीं खरीद सकता है। आर्टिकल-371 G के तहत मिजोरम में मिजो समुदाय को धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रथाओं पर संसद द्वारा पारित कोई भी कानून लागू नहीं होता है। मिजोरम में भी जमीन और संसाधन कोई गैर मिजो नहीं खरीद सकता है। दूसरे राज्य के नागरिक को यहां ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं है।
UCC पर क्या होगा असर?
अगर संसद से समान नागरिक संहिता कानून लागू भी हो जाता है तो नागालैंड में आर्टिकल-371 के तहत इसे लागू नहीं किया जा सकता है। अगर केंद्र सरकार को इसके प्रावधान नागालैंड में लागू कराने हैं तो पहले आर्टिकल-371 को खत्म करना होगा। इसे लेकर कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार चाहे तो यूसीसी को देशभर में लागू कर सकती है। नागालैंड की स्थित को लेकर बाद में विचार किया जा सकता है। केंद्र सरकार यूसीसी को लेकर जिस तेजी से आगे बढ़ रही है उससे साफ है कि आर्टिकल-371 से पहले समान नागरिक संहिता पर की कोई निर्णय होगा।