Khadija Khan

चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर पद के लिए 30 जनवरी को हुए चुनाव के नतीजों को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के मेयर उम्मीदवार को जीता हुआ घोषित किया। मंगलवार (20 फरवरी) को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया।

अपने आदेश में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि ऐसे मामले में यह अदालत कर्तव्य से बंधी है। यह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसके अधिकार क्षेत्र में आता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया को इस तरह के छल-कपट से विफल नहीं होने दिया जाए।”

संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?

अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट को दो पक्षों के बीच ‘पूर्ण न्याय’ करने की एक अद्वितीय शक्ति प्रदान करता है। इन स्थितियों में अदालत किसी विवाद को इस तरह से समाप्त करने के लिए आगे बढ़ सकती है जो मामले के तथ्यों के अनुरूप हो।

अनुच्छेद 142 के तहत अदालत ने स्पष्ट किया कि सामान्य कानूनों में निहित प्रावधानों पर सीमाओं पर प्रतिबंध वास्तव में संवैधानिक शक्तियों पर प्रतिबंध या सीमाओं के रूप में कार्य नहीं कर सकता है। अदालत ने तर्क दिया कि ऐसा करने से यह विचार आएगा कि वैधानिक प्रावधान एक संवैधानिक प्रावधान से आगे निकल जाते हैं।

अनुच्छेद 142 की आलोचना क्यों होती है?

अनुच्छेद 142 का विरोध भी होता है और कहा जाता है कि इसके आने से कोर्ट के पास मनमानी शक्तियां हैं। तर्क दिया गया है कि अदालत के पास व्यापक विवेकाधिकार है और यह ‘पूर्ण न्याय’ शब्द के लिए इसके मनमाने ढंग से प्रयोग या दुरुपयोग की संभावना भी हो सकती है। ‘पूर्ण न्याय’ शब्द की हर मामले में अलग-अलग व्याख्या होती है। इस प्रकार न्यायालय को खुद पर जांच लगानी होगी।

1998 में ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियां प्रकृति में पूरक हैं और इसका उपयोग किसी मूल कानून को बदलने या खत्म करने के लिए नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 142 द्वारा प्रदत्त शक्तियां बदल सकती हैं और उन्हें उन शक्तियों के रूप में नहीं समझा जा सकता है जो अदालत को उसके समक्ष लंबित मामले से निपटने के दौरान वादी के मूल अधिकारों की अनदेखी करने के लिए अधिकृत करती हैं।