राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि अब अढ़ाई दिन का झोपड़ा को लेकर विवाद सामने आया है। ऐतिहासिक मस्जिदों में शामिल अढ़ाई दिन का झोपड़ा के सर्वे की मांग की गई है। यह अजमेर शरीफ की दरगाह से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस स्थल का संरक्षण एएसआई के पास है। अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने एक बार फिर कहा कि आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले यह भवन मूल रूप से संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था।
हिंदू पक्ष ने क्या दिया दावा
अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन का बयान सामने आया है। उन्होंने दावा किया है कि यह झोपड़ा संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत मिले हैं। इसे आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया था। उन्होंने कहा कि नालंदा और तक्षशिला जैसे स्थलों को भी ध्वस्त किया गया था। इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि झोंपड़े के स्थान पर संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर था। एएसआई ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है। यहां अवैध गतिविधियां चल रही हैं और पार्किंग पर अतिक्रमण किया गया है। हम चाहते हैं कि ये गतिविधियां बंद हों।
नीरज जैन ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि एएसआई को झोंपड़े के अंदर रखी मूर्तियों को बाहर निकालना चाहिए और एक संग्रहालय स्थापित करना चाहिए। इसके लिए तो किसी सर्वे की भी जरूरत नहीं है। उन्होंने दावा किया कि एएसआई के पास इस स्थल की 250 से अधिक मूर्तियां हैं और उन्होंने इसके इस्लाम-पूर्व इतिहास के प्रमाण के रूप में स्वस्तिक, घंटियां और संस्कृत शिलालेखों की मौजूदगी की ओर इशारा किया।
मंदिर होने के पुख्ता सबूत मौजूद- जैन
जैन ने कहा कि जब कोरोना शुरू हुआ था उसी दौरान हमने मांग की थी कि संरक्षित स्थल पर गतिविधियों को रोका जाए और स्थल की मूल विरासत को बहाल किया जाए। तब महामारी का हवाला देकर इसे टाल दिया गया। एएसआई की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ एक मस्जिद है जिसे दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने 1199 ई. में बनवाया था। वेबसाइट पर लिखा है कि दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में बनी उस मस्जिद के समकालीन है जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के नाम से जाना जाता है। हालांकि इस परिसर के अंदर 11वीं और 12वीं सदी की कई मूर्तियां मौजूद हैं जो हिंदू मंदिर होने के अस्तित्व को दर्शाती हैं।
जैन साधु ने भी किया दावा
पीटीआई से बातचीत में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि अढ़ाई दिन का झोंपड़ा हमेशा से ही संस्कृत विद्यालय के रूप में लोगों के मन में अंकित रहा है। प्राचीन काल में सनातन संस्कृति में शिक्षा के रूप में इसका क्या महत्व था। इसके बाद कैसे एक विद्यालय से अढ़ाई दिन का झोंपड़ा बन गया, यह शोध का विषय है। बता दें कि एक जैन साधु ने दावा किया कि यह स्मारक पहले संस्कृत विद्यालय था और विद्यालय से पहले यहां एक जैन मंदिर था। इसी साल मई में जैन मुनियों का समूह विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के साथ अढ़ाई दिन का झोंपड़ा देखने गया था। इस पर अजमेर दरगाह के ‘अंजुमन’ के सचिव सरवर चिश्ती की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई थी।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसका नाम संभवतः इस तथ्य से पड़ा कि यहां ढाई दिन का मेला (उर्स) लगता था। हरबिलास सारदा ने एक किताब में लिखा सेठ वीरमदेव काला ने 660 ई. में जैन त्योहार पंच कल्याण महोत्सव के उपलक्ष्य में एक जैन मंदिर बनवाया था। चूंकि अजमेर में जैन पुरोहित वर्ग के रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए यह मंदिर बनवाया गया। 1192 में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व में गोर के अफगानों द्वारा कथित रूप से नष्ट कर दिया गया और इस संरचना को मस्जिद में बदल दिया गया था। आगे पढ़ें अजमेर शरीफ को लेकर एक किसाब में किया गया था बड़ा खुलासा