Israel-Iran Conflict Updates: भारत की तरफ से पहली बार ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ वोट करने के 20 साल बाद, दिल्ली ने बैलेंस बनाने की कोशिश की है। एक तरफ तो इजरायल है और दूसरी तरफ ईरान है। वैसे तो भारत ने हमेशा कूटनीतिक तौर पर संयम बरतने की कोशिश की है , लेकिन ईरान के परमाणु हथियार को लेकर उसकी बेचैनी तब भी साफ थी। 24 सितंबर 2005 को भारत ने 21 अन्य देशों के साथ मिलकर IAEA के प्रस्ताव पर वोटिंग की थी। इसमें पाया गया कि ईरान सुरक्षा उपायों के एग्रीमेंट का पालन नहीं कर रहा है।

इसे अतीत के विचलन के तौर पर देखा गया। भारत ने अमेरिका और पश्चिमी गुट के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ मतदान किया था। यह वह समय था जब भारत ने अमेरिका के साथ अपने असैन्य परमाणु कार्यक्रम पर समझौते पर बातचीत शुरू ही की थी और वाशिंगटन तेहरान के खिलाफ वोट करने के लिए दिल्ली पर दबाव बनाने में सक्षम था। दिल्ली इस विचार के साथ चले गया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ मतदान करने से उसकी प्रतिष्ठा चमकेगी।

हालांकि, प्रस्ताव में इस मामले को तत्काल यूएनएससी को नहीं भेजा गया और भारत उन देशों में से एक था, जिसने यूरोपीय देशों के पश्चिमी ब्लॉक से इस मुद्दे को आईएईए में ही रखने का आग्रह किया था। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, उस समय भारत ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जबकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन के ज्यादातर सदस्य मतदान में शामिल नहीं हुए थे, क्योंकि उसने यूरोपीय संघ-3 पर इस मामले को तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भेजने से मना करने का दबाव डाला था। इसके बाद भारत को ऐसा करना जरूरी लगा।

भारत ने 2006 में लिया अमेरिका का पक्ष

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, महीनों बाद 4 फरवरी 2006 को भारत ने फिर से अमेरिका का पक्ष लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 17 फरवरी 2006 को संसद में कहा था, ‘एनपीटी पर साइन करने वाले देश के रूप में ईरान को अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और दायित्वों के मुताबिक न्यूक्लियर एनर्जी के शांतिपूर्ण उपयोग को विकसित करने का कानूनी अधिकार है। लेकिन ईरान के लिए यह जरूरी है कि वह इन अधिकारों का इस्तेमाल उन सुरक्षा उपायों के संदर्भ में करे, जिन्हें उसने आईएईए के तहत अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए स्वेच्छा से स्वीकार किया है।’

कूटनीति बनेगा हथियार या अमेरिकी ठिकाने होंगे ध्वस्त?

पिछले कुछ सालों में जब भारत अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत कर रहा था, तो दिल्ली तेहरान के खिलाफ वोट करने के दबाव से बाहर आ गया क्योंकि यह मुद्दा यूएनएससी में चला गया था। सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि एक बार मामला यूएनएससी में चला गया, तो भारत को 2007 से 2024 के बीच ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कोई रुख अपनाने की जरूरत नहीं थी।

बराक ओबामा ने की बातचीत

इस बीच, राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन ने 2015 में ईरान के साथ जेसीपीओए पर बातचीत की। जेसीपीओ और ईरान के बीच एक समझौता था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2017 में जेसीपीओए से बाहर चले गए और ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक बार फिर जांच के दायरे में आ गया। भारत को ईरान से तेल आयात बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा, हालांकि उसका चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट का विकास जारी था। हालांकि उसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ कोई सख्त रुख अपनाने की जरूरत नहीं थी, लेकिन पिछले साल जब अमेरिका ने ईरान के खिलाफ प्रस्ताव लाया तो यह बदल गया।

जून 2024 में, भारत ने ईरान के संबंध में IAEA में मतदान से खुद को अलग रखा। अमेरिका द्वारा शुरू किए गए इस मतदान का मकसद ईरान को उसके न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए दोषी ठहराना था। जबकि प्रस्ताव पारित हो गया, जिसमें 35 में से 19 बोर्ड सदस्यों ने ईरान की निंदा करने के लिए मतदान किया। भारत उन 16 देशों में शामिल था जिन्होंने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत का यह फैसला संतुलन बनाने को दिखाता है।

भारत ने 2024 में मतदान से परहेज किया

सितंबर 2024 में भारत ने फिर से IAEA बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया। इसमें ईरान को उसके परमाणु कार्यक्रम की जांच में सहयोग न करने के लिए फटकार लगाई गई थी। फ्रांस, यूके और जर्मनी के साथ-साथ अमेरिका द्वारा लाया गया यह प्रस्ताव IAEA की एक रिपोर्ट के बाद आया। इसमें ईरान के बढ़ते यूरेनियम संवर्धन के बारे में बताया गया है।

इस साल जून में भी भारत ने IAEA बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया था। इसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम की कड़ी आलोचना की गई थी और इसे 1974 के सुरक्षा समझौते का उल्लंघन बताया गया था। इस बार मतदान से दूर रहने के भारत के फैसले ने उसके संतुलित रुख को दिखाया। इसमें ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के अधिकार को मान्यता दी गई। ईरान बंद करेगा Strait Of Hormuz?