रविवार का दिन खेल जगत के लिए काफी उतार-चढ़ाव वाला साबित हुआ, भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) की नवनिर्वाचित संस्था को जैसे ही केंद्र सरकार ने सस्पेंड कर दिया, देखते ही देखते इसके बड़े सियासी मायने निकाले जाने लगे। 24 घंटे के अंदर में जिस तरह से पहले संजय सिंह की जीत हुई और फिर अगले ही दिन उनका सस्पेंशन भी कर दिया गया, सवाल कई उठे हैं, सियासी अटकलें भी तेज हो गई हैं।

साक्षी के आंसू और बीजेपी के खिलाफ नेरेटिव

सबसे पहले साक्षी मलिक के उस बयान को डीकोड करना जरूरी है जहां पर उन्होंने बड़ा फैसला लेते हुए कुश्ती से संन्यास का ऐलान कर दिया था। वो साक्षी मलिक जिन्होंने ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीता, जिन्होंने न जाने कितनी दूसरी युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा बनने का काम किया, सवासों करोड़ लोगों के सामने उनकी तरफ से संन्यास का ऐलान हुआ। आंखों में उनके आंसू थे, मेज पर पड़े उनकी मेहनत के प्रतीक वाले जूते थे और पूरा देश सिर्फ उन्हें सुन रहा था।

साक्षी ने कहा कि जो अब तक परदे के पीछे से होता था, अब खुले आम होगा, हम अपनी लड़ाई में कामयाब नहीं हो पाए। हमने हर किसी को अपनी बात बताई है। पूरे देश को पता होते हुए भी सही इंसान नहीं बना। मैं अपनी आने वाली पीढि़यों को कहना चाहती हूं कि शोषण के लिए तैयार रहिए। अब साक्षी मलिक का ये बयान सिर्फ कुश्ती करने वाली दूसरी महिलाओं तक सीमित नहीं रहने वाला था, इसका गलत संदेश देश की पूरी आधी आबादी तक जाता।

मोदी सरकार का महिला दांव और ये विवाद

इस समय मोदी सरकार की प्राथमिकता में महिलाएं काफी आगे चल रही हैं। हाल ही में दोनों सदनों से महिला आरक्षण बिल भी पारित करवाया गया है। महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़े, इस पर सबसे ज्यादा जोर चल रहा है। इसके ऊपर कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका सीधा फायदा भी महिलाओं को ही मिल रहा है। यानी कि बीजेपी हर कीमत पर 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी इन योजना रूपी कर्मों का फल खाना चाहती है।

लेकिन साक्षी मलिक के आसुंओं ने बीजेपी के उस मिशन पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। सीधा संदेश ये जा रहा था कि केंद्र सरकार ने एक यौन शोषण के आरोपी को बचाया है और महिला रेसलर के साथ अन्याय हुआ है। अब ये सच है कि हाल ही में हुए चुनाव में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन साक्षी की एक भावुक अपील ने जनता के बीच में एक अलग ही नेरेटिव सेट कर दिया था।

ये नेरेटिव पीएम मोदी के साथ-साथ पूरी बीजेपी के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता था। इसके ऊपर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने जिस तरह से साक्षी मलिक से मुलाकात की, ये स्पष्ट था कि पूरा विपक्ष इस मुद्दे के जरिए बीजेपी को घेरने का काम करेगा।

विवाद रेसलरों का…असर किसान से लेकर जाटों तक!

इस पूरे विवाद का एक सियासी पहलू ये भी है कि ज्यादातर रेसलर्स या तो किसान परिवार से आते हैं या फिर जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। अब एक सियासी नेरेटिव बीजेपी को सीधे-सीधे किसान विरोधी, खिलाड़ी विरोधी और जाट विरोधी बनाने की ताकत रखता है। यूपी-हरियाणा और पंजाब में तो बीजेपी को इसका सियासी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। अब ये सारे वो छिपे हुए फैक्टर हैं जो ये बताने के लिए काफी हैं कि बीजेपी इस पूरे विवातित घटनाक्रम से डर गई थी और हर कीमत पर समय रहते डैमेज कंट्रोल करना था। उसका सिर्फ एक मकसद था, किसी भी कीमत पर महिला वोटरों का मोह पार्टी से भंग ना हो जाए।