संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है। गुरुवार को दिल्ली, लखनऊ में प्रदर्शनाकरियों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान लखनऊ में भीड़ ने पुलिसबल पर पथराव किया जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को काबू किया। वहीं यूपी बवाना इलाके में प्रदर्शनकारियों ने चार सरकारी बस में आग लगा दी। नेशनल रजिस्ट्रर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के खिलाफ पहले से मुखर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता अब सीएए के विरोध में जमकर डटी हुई हैं।

ममता ने मांग की है कि संयुक्त राष्ट्र या मानवाधिकार आयोग जैसी एक निष्पक्ष संस्था की तरह एक समिति बनाई जाए जो यह देख सके कि कितने लोग इन दोनों के पक्ष में और कितने खिलाफ हैं। उन्होंने कोलकाता रानी रशमोनी एवेन्यू में एक रैली के दौरान अपने संबोधन में यह मांग उठाई। ममता ने कहा अगर बीजेपी में हिम्मत है तो उसे संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी पर संयुक्त राष्ट्र या मानवाधिकार आयोग जैसी एक निष्पक्ष संस्था की तरह एक समिति का गठन करना चाहिए। जिससे हम यह देख सके कि कितने लोग इन दोनों के पक्ष में और कितने खिलाफ हैं।

उन्होंने कहा ‘हम इस देश में दूसरों की दया पर नहीं रह रहे हैं। बीजेपी अपने कैडरों के लिए टोपियां खरीद रही है जो इन्हें पहनकर एक खास समुदाय की छवि खराब करने के लिए तोड़फोड़ कर रहे हैं। अगर हिम्मत है तो सीएए और एनआरसी पर यूएन की निगरानी में जनमत संग्रह करवाकर दिखाए। इसमें जिसकी भी हार हो वह अपने पद से इस्तीफा दे दे और सत्ता छोड़ दे।’

उन्होंने आगे कहा ‘विवादास्पद कानून और प्रस्तावित एनआरसी को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई थी और वह नागरिकता दस्तावेज 1970 के मांग रही है। प्रदर्शनों को रोकने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में निषेधाज्ञा लागू करने के बावजूद बीजेपी सफल नहीं होगी।’

बता दें कि यह बिल संसद में पास हो चुका है। इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थी- हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। विपक्ष का कहना है कि यह कानून संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है।