जम्मू-कश्मीर के बाद असम, पश्चिम बंगाल और केरल में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। असम में बीजेपी, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और केरल में वामपंथियों को जीत मिली है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट गंवाने पड़े तो असम में AIUDF पर भी मुस्लिमों ने पिछले चुनाव की तुलना में कम भरोसा जताया है। आइए जानते हैं इन तीनों राज्यों में मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में किसी पार्टी मिले कितने प्रतिशत वोट और मिलीं कितनी सीटें।
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पश्चिम बंगाल में ममत बनर्जी को मिले सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट
-पश्चिम बंगाल में 65 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है।
– 2011 विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मुस्लिम बहुल इलाकों में 30 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। टीएमसी को 29.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
-2016 विधानसभा चुनाव में टीएमसी पर मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास और बढ़ा। इस बार पार्टी को मुस्लिम बहुल इलाकों में 38 सीटें पर जीत हासिल हुई। इन विधानसभा क्षेत्रों में टीएमसी 41 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही।
-कांग्रेस की बात करें तो 2011 विधानसभा चुनाव में उसे मुस्लिम बहुल इलाकों में 14.4 प्रतिशत वोटों के साथ 16 सीटें मिली थीं।
-2016 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल इलाकों में 19 प्रतिशत वोटों के साथ 18 सीटों पर जीत दर्ज की है।
-वामपंथी दलों की बात करें तो 2011 में उन्हें मुस्लिम बहुल इलाकों में 41.7 प्रतिशत वोटों के साथ 18 सीटों पर विजय हासिल हुई थी।
-2016 विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों का प्रदर्शन मुस्लिम इलाकों बेहद खराब रहा। इस बार उन्हें सिर्फ 24 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए और कुल 8 सीटों पर ही जीत मिल सकी।
-भारतीय जनता पार्टी को 2011 विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। पार्टी मुस्लिम बहुल इलाकों में सिर्फ 4.6 प्रतिशत वोट ही प्राप्त कर सकी थी।
-2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन सुधरा है। पार्टी को इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों में एक सीट पर जीत हासिल हुई है और उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 9.6 प्रतिशत हो गया है।
असम में मुस्लिम बहुल सीटों पर ये रहे समीकरण
-2011 में मुस्लिम के दबदबे वाले विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को 35 प्रतिशत वोटों के साथ 14 सीटों पर जीत मिली थी।
-2016 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट तीन प्रतिशत घटकर 32 पर आ गया। हालांकि, वोट घटने के बाद भी इस बार उसे 15 सीटों पर जीत मिली है। यानी पिछली बार से एक सीट ज्यादा।
-2011 में AIUDF ने मुस्लिम इलाकों में 29.7 प्रतिशत वोटों के साथ 17 सीटों पर विजय हासिल की थी।
-2016 विधानसभा चुनाव में AIUDF को पिछली बार की तुलना में 6 सीटों का नुकसान हुआ है। इस बार उसे 27 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 11 सीटों पर ही जीत मिली है।
-2011 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 8.3 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ एक सीट पर जीत नसीब हुई थी।
-2016 विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मुस्लिम बहुल इलाकों में 8 सीटें मिली हैं, जबकि उसका वोट प्रतिशत भी पिछली बर की तुलना में दोगुना हो गया है। बीजेपी को इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों में 16.5 प्रतिशत वोट मिले हैं।
-2011 विधानसभा चुनाव में असम गण परिषद को 12.2 प्रतिशत वोटों के साथ 2 सीटें मिली थी।
-2016 विधानसभा चुनाव में असम गण परिषद को सीटें तो 2 ही मिली हैं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत घटकर 9.7 रह गया है।
-2011 में मुस्लिम इलाकों में अन्य को 2 सीटें मिली थीं, जबकि 2016 में उन्हें कोई भी सीट पर जीत नहीं मिली हैं।
केरल की मुस्लिम बहुल सीटों में किस पार्टी को मिले कितने वोट और मिलीं कितनीं सीटें
-केरल में कुल 43 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाता राजनीतिक समीकरण बना और बिगाड़ सकते हैं।
-2011 में यहां एलडीएफ को 40.4 फीसदी मुस्लिम वोटों के साथ 14 सीटें मिली थीं।
-2016 विधानसभा चुनाव में एलडीएफ का वोट प्रतिशत (39.6) थोड़ा कम जरूर हुआ, लेकिन इस बार उसे 22 सीटें मिली हैं। पिछली बार की तुलना में एलडीएफ को 8 सीटों का फायदा हुआ है।
-यूडीएफ को 2011 विधानसभा चुनाव में 29 सीटों पर विजय मिली थी। वोट प्रतिशत की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में यूडीएफ को 47.8 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे।
-2016 विधानसभा चुनाव में यूडीएफ को नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी इस बार 21 सीटें जीती हैं। पिछली बार से 8 सीटें कम। यूडीएफ वोट प्रतिशत इस बार 38.4 रहा है, जो कि पिछले चुनाव की तुलना में करीब 11 प्रतिशत कम है।
– 2011 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 7.4 प्रतिशत वोट मिले थे। 2016 में यह आकंड़ा बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गया है। बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा जरूर है, लेकिन मुस्लिम इलाकों में पार्टी का खाता इस बार भी नहीं खुल पाया।
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