इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी भारत जैसे विकासशील देश से लेकर दुनिया की शक्तिशाली ताकतें कुदरती आपदाओं का सामना करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अविकसित या विकासशील देश के लोग मौसम की मार में ज्यादा तबाही झेलते हैं और विकसित देश आपदा प्रबंधन के जरिए जान-माल के नुकसान को कम कर लेते हैं। भारत और इसके जैसे कृषिप्रधान देश के लिए आज भी मौसम का मिजाज बहुत ज्यादा अहमियत रखता है। मौसम एवं विज्ञान केंद्र (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट) की जलवायु परिवर्तन विभाग की डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर विजेता रत्तानी का कहना है कि खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के आकलन के मुताबिक, विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र के तहत आने वाली फसलें, मवेशी, मत्स्यपालन देश की अर्थव्यवस्था में 22 फीसद का योगदान देती हैं। लेकिन मौसमी आपदाओं के कारण इन्हीं क्षेत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है।

विजेता आंकड़ों के हवाले से बताती हैं कि 2003 से लेकर 2013 के समय में एशिया और अफ्रीका मौसमी आपदाओं से सबसे प्रभावित होने वाले क्षेत्र रहे। वहीं यूएनईपी ने आशंका जताई है कि 2020 तक अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के कारण 75 से 250 करोड़ लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। वहीं आशंका जताई जा रही है कि इस सदी के अंत तक दक्षिण एशिया में धान की खेती में 50 फीसद तक की कमी आ सकती है। बारिश या अकाल जैसी मौसमी आपदाएं मानव सभ्यता की शुरुआत से इक्कीसवीं सदी तक उसके साथ है। जरूरत इस बात की है कि हम उससे निपटने का प्रबंधन सीखें। जानकारों का कहना है कि भारत में सूखे से निपटने के चीजें कागजों तक सिमटी रह जाती हैं। योजनाएं तो बन जाती हैं पर उसे खेती-किसानी तक नहीं पहुंचाया जाता है। एफएओ के मुताबिक विश्व के सभी महादेश पानी की कमी का सामना कर रहे हैं।

विश्व की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा इससे जूझ रहा है। भारत के साथ मध्य एशिया का बड़ा हिस्सा, पूर्वी व उत्तरी के साथ दक्षिण अफ्रीका का बड़ा हिस्सा, दक्षिणी-पूर्वी आॅस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के देश भी घोर जल संकट का सामना कर रहे हैं। 2015 में मानसून के कम बरसने के बाद रबी फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा था। अक्तूबर 2015 से फरवरी 2016 तक अल नीनो प्रभाव के कारण ज्यादा तापमान और कम बारिश का सामना करना पड़ा था। इससे चावल, मक्का और गेहूं जैसी फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ। एफएओ का खाद्य मूल्य सूचकांक भी यह बताता है कि 2015-16 में अल नीनो के प्रभाव से फसलों के नष्ट होने के कारण दुनिया भर में महंगाई बढ़ी। भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्टÑ, कर्नाटक, बिहार, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और तेलंगाना में कम बारिश के कारण फसलों का कम उत्पादन हुआ। भारत के अर्थशास्त्र व सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के अनुसार इन राज्यों में ही देश के दो तिहाई खाद्यान्नों का उत्पादन होता है। 2015 में पंजाब के 22 में से 14, हरियाणा के 21 में से 18 और उत्तर प्रदेश के 75 में से 54 जिलों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा था। 2014 में कम बारिश के कारण भारत के कुल खाद्यान्न उत्पादन में 5 फीसद की कमी आई थी।