मनोविज्ञान कहता है कि जिस व्यक्ति में किसी चीज की कमी होती है, वह उस कमी को छिपाने के लिए बाहरी तौर पर कई प्रपंच रचता है। मसलन कमजोर व्यक्ति खुद को ताकतवर दिखाने के लिए जरूरत से अधिक तन पर चलता है। यहां तक कि कुछ कमजोर व्यक्ति खुद को ताकतवर और रौबीला दिखाने के लिए अपनी दोनों जेबों में रिवाल्वर या हाथ में तलवार लेकर घूमते नजर आ सकते हैं।
भले ही वे खुद उन हथियारों का वजन नहीं उठा पा रहे हों। दरअसल, खुद को औरों से अलहदा दिखाने की कोशिश में लोग तरह-तरह के जतन करते हैं। कुछ लोग रौबीली मूंछें रखते हैं और उनकी अच्छी देखभाल करते हैं, ताकि लोगों का ध्यान उनकी मूंछों पर जाए, शरीर पर नहीं। कुछ लोग शादी समारोह में भव्यता रच कर खूब गाजे-बाजे का शोर और वर निकासी में यातायात अवरुद्ध कर अपना रौब दिखाते हैं।
शहर के किसी भी अन्य व्यक्ति के यहां के समारोह की तुलना में अपना समारोह ‘बीस’ ही होना चाहिए। इसी में शान और रुतबा नजर आना चाहिए। खुशी का इजहार करने के लिए ‘हर्ष फायर’ यानी हवा में बंदूक भी चलनी चाहिए। भले ही यह नियम विरुद्ध हो। कुछ लोग मानते हैं कि सभी नियमों का पालन करते हुए जीना तो नीरस जीवन है। मजा तो नियमों को तोड़ कर जीने और यह साबित करने का प्रयास करने में है कि नियम-कायदे आपके लिए नहीं है और आप इन सबसे ऊपर हैं।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी सार्वजनिक स्थान पर लाइन में लगने और अपने नंबर का इंतजार करने में अपनी बेइज्जती समझते हैं। वे लाइन तोड़ कर आगे बढ़ कर अपना काम कराने में ही अपनी शान समझते हैं। यही भाव वहां भी व्यक्त होता है, जब लोग अपने निजी वाहनों पर किसी प्रभावशाली पद की पट्टी लगा कर रौब दिखाते हैं। जबकि यह कानून के खिलाफ है। कुछ लोग खुद को औरों से अलग और भिन्न दिखाने और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए गले में सोने की कई चेन डाले रहते हैं।
लो गों पर रौब जमानेऔर उन पर अपना दबदबा या खौफ कायम करने के लिए कभी राजा-महाराजा और नवाब अपने ड्राइंग रूम में किसी और के द्वारा मारे गए शेर की खाल के पास सैनिक वेशभूषा में खड़े होकर बड़े शौक से फोटो खिंचवाया करते थे। वे अवाम को यहीं संदेश देना चाहते थे कि वे कितने बहादुर जांबाज हैं। ऐसे नकली दिखावटी लोग इसी तरह अपना प्रभाव जताते हैं। भय, गुस्सा, अंधविश्वास, आतंक और श्राप का डर बता कर आने वाले भविष्य के प्रति घबराहट पैदा करने के बहाने कुछ लोग लोगों को कमजोर कर उन्हें मूर्ख बनाते हैं।
आडंबर, अंधविश्वास और आतंक की आड़ में वे लोगों को फुसलाते हैं और अपना वर्चस्व कायम करते हैं। अपनी गलती, कमजोरी और विकृति या हीनभावना छिपाने के लिए ही लोग ये उपक्रम करते हैं। वे चाहते हैं कि समाज उनकी इन्हीं हरकतों पर नजर रखे और असलियत न जान पाए। आदमी आदतन खताएं करता है, पर शान इसी में समझता है कि अपनी गलती न माने। एक शेर में बखूबी कहा गया है- ‘इंसान जीते जी करे तौबा खताओं से, मजबूरियों ने कितने फरिश्ते बनाए हैं।’
ऊपरी दिखावा तो महज आवरण है। असलियत आवरण के पीछे छिपी रहती है। आखिर यह क्यों जरूरी है कि लोग दिखावा करके खौफ और रौब बढ़ाएं? इसके बजाय अगर अपने किसी हुनर या गुण को लक्ष्य सामने रखकर चुपचाप बिना किसी दिखावे और शोर के पूरा किया जाए तो उसकी प्राप्ति से जो आनंद मिलेगा वह अतुलनीय होगा। लोग खुद ही आपका लोहा मानेंगे और आदर भी करेंगे। आक्रामक और हिंसक नजर आने वाले डरावने संदर्भों से कहीं ज्यादा सुकूनदेह और असरदार खुद-ब-खुद मिलने वाली पहचान और दूसरों से एकदम अलग स्थापित करने वाले सम्मान में है।
बाहरी साज-सज्जा और आडंबर के दम पर हम डर का माहौल तो बना सकते हैं, पर स्थायी पहचान कायम नहीं कर सकते। खुद को दूसरों से अलग खड़ा करने की खूबी बिना गुणवत्ता प्राप्त किए नहीं पैदा की जा सकती। और इसके लिए धैर्य, अनुशासन और लगन जरूरी है। यह एक धीमी प्रक्रिया है। कई बार अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। पर स्थितप्रज्ञ रह कर अपने लक्ष्य और अमेय के प्रति समर्पित बने रहने का लाभ अवश्य मिलता है। कृत्रिम आभामंडल अस्थायी होता है और बड़ी जल्दी बिखर जाता है।
अच्छा यही है कि हम अपने कार्य को ही अपना लक्ष्य बनाएं और उसी में प्रवीण बनने के उद्देश्य से पूरे मनोवेग से जुट जाएं। इसके बाद जो सफलता मिलेगी, वह खुद हमारी पहचान बनेगी। तब लोग खुद-ब-खुद हमसे प्रभावित होकर हमें सम्मान देंगे। हम जबरन खुद को दूसरों से बड़ा बताने की कोशिश में अपना ही वजूद छोटा करते हैं। हमारी उपलब्धि और काम ही लोगों को आपकी ओर आकर्षित करेगा। यही भाव स्थायी होगा। हम समझते हैं कि इन आडंबरों और दिखावी अलंकरणों से दूसरों को भ्रम में रख रहे हैं और उन्हें धोखा दे रहे हैं। लेकिन वास्तव में हम औरों को नहीं, खुद को ही धोखा देते हैं। हम अपनी असलियत अच्छी तरह से जान रहे होते हैं।